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सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 जनवरी को सुनाएगा फैसला
Rani Sahu
22 Dec 2022 5:55 PM GMT
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नई दिल्ली, (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला 2 जनवरी को सुनाएगा। न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 2 जनवरी को फैसला सुनाएगी। न्यायमूर्ति नजीर दो दिन बाद 4 जनवरी को सेवानिवृत्त होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को केंद्र और आरबीआई को निर्देश दिया था कि सरकार के 2016 के विमुद्रीकरण फैसले (नोटबंदी) से संबंधित फाइलों और दस्तावेज को अवलोकन के लिए रिकॉर्ड पर लाया जाए और फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ में शामिल जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्न ने कहा, "भारतीय संघ और भारतीय रिजर्व बैंक के वकील को प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया जाता है।"
केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने और आरबीआई का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने किया। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम और श्याम दीवान पेश हुए। एजी ने कहा कि वह संबंधित रिकॉर्ड सीलबंद लिफाफे में जमा करेंगे।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि चूंकि यह एक आर्थिक नीति से जुड़ा मामला है, इसलिए अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती। हम मानते हैं कि सरकार ने अच्छा सोचकर ही फैसला लिया होगा, लेकिन हम देखना चाहते हैं कि फैसला लेते समय रिकॉर्ड पर क्या था।"
एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने पूरे विश्वास के साथ निर्णय लिया, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेजों को अदालत के सामने रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार संसद के माध्यम से निर्णय लेने का मार्ग अपनाती तो सांसद इस नीति को रोक देते, इसलिए सरकार ने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।
चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में आरबीआई ने विमुद्रीकरण का विरोध किया था और तब विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया गया था। आरबीआई को अपना इतिहास जानना चाहिए, जो आरबीआई द्वारा प्रकाशित किया गया है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों की वैध मुद्रा को वापस लेने का निर्णय परिवर्तनकारी आर्थिक नीति कदमों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण कदमों में से एक था और यह निर्णय आरबीआई के साथ व्यापक परामर्श के बाद लिया गया था।
वित्त मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा है, "कुल मुद्रा मूल्य के एक महत्वपूर्ण हिस्से को वापस लेना एक सुविचारित निर्णय था। यह आरबीआई के साथ व्यापक परामर्श और अग्रिम तैयारियों के बाद लिया गया था।"
इसने आगे कहा कि नकली नोट, काला धन, आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए विमुद्रीकरण की रणनीति आर्थिक नीति का हिस्सा था। 08.11.2016 को जारी अधिसूचना नकली नोटों के खतरे से लड़ने, बेहिसाब संपत्ति के भंडारण और विध्वंसक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए एक बड़ा कदम था।
--आईएएनएस
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