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जनता से रिश्ता वेबडेसक | शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी गवाह का अदालत में ऐसे आरोपी की पहचान करना, जिसे उसने पहली बार मात्र अपराध के वक्त ही देखा था, एक कमजोर साक्ष्य है। अपराध होने व बयान दर्ज किए जाने की तारीखों के बीच यदि लंबा अंतराल हो तो यह और भी कमजोर हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि अपराध के वक्त आरोपियों को देख लेने भर को गवाही और सजा का पुख्ता आधार नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने केरल के एक मामले के चार आराेपियों को दोषमुक्त करार दे दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उन चार लोगों की अपील पर की, जिन्हें स्पिरिट के अवैध परिवहन के आरोप में केरल आबकारी अधिनियम की धारा 55 (ए) के तहत दोषी ठहराया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी गवाह का अदालत में ऐसे आरोपी की पहचान करना, जिसे उसने पहली बार मात्र अपराध के वक्त ही देखा था, एक कमजोर साक्ष्य है। अपराध होने व बयान दर्ज किए जाने की तारीखों के बीच यदि लंबा अंतराल हो तो यह और भी कमजोर हो जाता है।
केरल पुलिस का आरोप था कि चारों आरोपियों ने एक ट्रक में प्लास्टिक के 174 डिब्बों में 6,090 लीटर स्पिरिट का बगैर इजाजत अवैध रूप से परिवहन किया। अवैध परिवहन में इस्तेमाल ट्रक का रजिस्ट्रेशन नंबर नकली था। आरोपियों ने उन्हें दोषी ठहराए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
शीर्ष कोर्ट ने केस में एक गवाह की गवाही को खारिज कर दिया। इस गवाह ने कहा था कि वह ऐसे लोगों की पहचान करने में सक्षम नहीं है, जिन्हें उसने अपराध के वक्त 11 साल पहले देखा था। हालांकि गवाह ने दो आरोपियों को पहचान लिया था, जिन्हें उसने घटना के वक्त पहली बार देखा था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि किसी गवाह द्वारा अदालत में ऐसे आरोपियों की पहचान करना, जिसे उसने पहली बार अपराध के दौरान ही देखा हो, कमजोर साक्ष्य है। इसके साथ ही पीठ ने चारों आरोपियाें को बरी करते हुए कहा कि सरकारी पक्ष ने ट्रक का असली रजिस्ट्रेशन नंबर और उसके असली मालिक के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए, इसलिए पूरा मामला संदिग्ध हो जाता है।