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नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार को दो महीने के अंदर क्षेत्रीय त्वरित परिवहन प्रणाली (आरआरटीएस) के लिए 415 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया। जस्टिस एस। के। कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले तीन वर्षों में विज्ञापनों पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च किए, तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी फंड किया जा सकता है।
पिछली सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने फंड की कमी के चलते रीजनल रैपिड ट्रांजिस्ट सिस्टम के फंड देने में असमर्थता जाहिर की थी। इसपर जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अगर दिल्ली सरकार पिछले 3 वित्तीय वर्षों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है तो बुनियादी परियोजनाओं में भी योगदान दे सकती है।
दिल्ली सरकार की तरफ से मौजूद वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को आश्वासन दिया कि रीजनल रैपिड ट्रांजिस्ट सिस्टम भुगतान किया जाएगा, लेकिन इसे किश्तों में करने की अनुमति दी जाएगी। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि जीएसटी कंपेसेशन प्रोग्राम के जून 2022 में बंद होने के चलते सरकार को फंड जुटाने में मुश्किल आ रही है।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों पर अपने खर्च का विस्तृत ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया था। इसको लेकर दिल्ली सरकार ने कोर्ट के सामने एक हलफनामा भी दाखिल किया है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में विज्ञापन पर खर्च की गई कुल राशि लगभग 1073 करोड़ रुपये है।
सरकार ने हलफनामे में बताया कि जनता तक सरकारी नीतियों की अधिक पहुंच हो। इसके लिए विज्ञापनों के लिए फंड आवंटित किया गया है। यह सरकार की नीतियों के बारे में जनता को जागरूक करने का सबसे उचित, किफायती और कुशल तरीका है।
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