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केरल हाईकोर्ट के देशद्रोह और यूएपीए के आरोपित को बरी करने के आदेश को SC ने किया रद्द

Kunti Dhruw
3 Nov 2021 1:59 PM GMT
केरल हाईकोर्ट के देशद्रोह और यूएपीए के आरोपित को बरी करने के आदेश को SC ने किया रद्द
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सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है.

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें उसने नक्सलियों से कथित संपर्को और आतंकरोधी कानून व गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत तीन मामलों में गिरफ्तार एक आरोपित को बरी कर दिया था।केरल सरकार और अन्य की ओर से दाखिल अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का सितंबर, 2019 का आदेश एकल जज ने पारित किया था जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) कानून और शीर्ष अदालत द्वारा पूर्व में निर्धारित कानून के तहत संवैधानिक प्रविधान के पूरी तरह उलट कहा जा सकता है।

राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ से कहा कि आरोपित को आरोपों से मुक्त करने से इन्कार करने संबंधी विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ आरोपित रूपेश की पुनरीक्षण याचिकाओं पर एनआइए अधिनियम की धारा 21 की उपधारा(2) के तहत अनिवार्य रूप से हाई कोर्ट की खंडपीठ को सुनवाई करनी चाहिए थी। पीठ ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, 'उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, ये सभी अपीलें सफल हुईं और हाई कोर्ट द्वारा आरोपित को आरोपमुक्त करने वाला सामान्य निर्णय और आदेश निरस्त किया जाता है। मामले को नए सिरे से खंडपीठ द्वारा कानून के अनुसार और गुण-दोष के आधार पर पुनरीक्षण याचिका पर निर्णय लेने के लिए हाई कोर्ट में भेजा जाता है।
नक्सलियों से संबंध को लेकर केरल में गिरफ्तार छात्रों की जमानत हुई मंजूर
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 28 अक्टूबर को नक्सलियों से संबंधों के कारण राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) द्वारा नवंबर 2019 में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किए गए दो छात्रों की जमानत मंजूर कर ली थी। शी र्ष कोर्ट ने कहा था कि एक आतंकी संगठन से सिर्फ संबंध रखना अधिनियम के कठोर प्रविधान का इस्तेमाल करने का पर्याप्त आधार नहीं है।जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा कि युवा उम्र के कारण आरोपित भाकपा (माओवादी) संगठन की ओर आकर्षित हो गए होंगे। पीठ ने एक नवंबर, 2019 को गिरफ्तार किए गए तवहा फैसल और अल्लन शोएब को राहत दे दी। पीठ ने कहा, 'सिर्फ एक आतंकी संगठन से जुड़ा होना धारा 38 (आतंकी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध) और सिर्फ आतंकी संगठन को समर्थन देना धारा 39 (आतंकी संगठन को समर्थन देने का अपराध) को लागू करने का पर्याप्त आधार नहीं है। संबंध और समर्थन का उद्देश्य आतंकी संगठन की गतिविधि को बढ़ाने वाला होना चाहिए।'
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