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पढ़ें ये पूरी रिपोर्ट, कोरोना काल में क्यों मरीजों को Dolo 650 ही लिखते थे डॉक्टर

Admin4
20 Aug 2022 1:10 PM GMT
पढ़ें ये पूरी रिपोर्ट, कोरोना काल में क्यों मरीजों को Dolo 650 ही लिखते थे डॉक्टर
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न्यूज़क्रेडिट: newsnationtv

नई दिल्ली: डोलो 650, ये नाम तो आपने सुना ही होगा, जी हां. कोरोना काल में मरीजों को सबसे ज्यादा दी जाने वाली दवाई थी डोलो 650. अब इसको लेकर फिर से विवाद छिड़ गया है. कोरोना काल में मरीज अपनी जान बचाने के लिए कई तरह की दवाएं खा रहे थे. चूंकि, इसका इलाज या दवाई अब तक नहीं बनी है, इसलिए इस घातक संक्रमण से बचने के लिए मरीज वो सारी दवाएं ले रहे थे, जो डॉक्टर उन्हें प्रिस्क्राइब कर रहे थे. इसी दौरान एक दवा डोलो 650 की बिक्री खूब होने लगी. डॉक्टर उन मरीजों को तो इस दवा को प्रिस्क्राइब कर ही रहे थे, जो कोरोना का शिकार हुए थे, बल्कि वो लोग भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के इस दवा का सेवन कर रहे थे, जो सिर्फ अपनी इम्युनिटी को कमजोर समझ रहे थे. अब यही डोलो 650 विवादों में है. आखिर क्यूं, ये हम आपको बताते हैं.

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान जब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने डोलो-650 का नाम लेकर कहा कि 'कोरोना में मुझे भी डोलो-650 खाने का सुझाव दिया गया था. जो आप कह रहे हैं ये सुनने में अजीब लग रहा है, पर ये गंभीर मामला है. तब ये दवा एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है. डोलो-650 बनाने वाली दवा कंपनी ने डॉक्टरों को फ़्री-बी (मुफ़्त उपहार) देने के लिए 1000 करोड़ रुपये ख़र्च किया है. इन रिपोर्ट्स का आधार इनकम टैक्स की तरफ़ से जारी एक प्रेस रिलीज़ थी, जिसका हवाला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दिया गया.डोलो-650, 'माइक्रो लैब्स लिमिटेड' बनाती है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में जिस याचिका पर सुनवाई के दौरान डोलो दवा का जिक्र हुआ, उस याचिका को डोलो के लिए दाखिल नहीं किया गया था. चूंकि, ये दवा कोरोना महामारी के बाद घर-घर में इस्तेमाल हुई, इस वजह से जहां भी इसका जिक्र आता है, आम लोगों की दिलचस्पी इसमें बढ़ जाती है.

यही जानने के लिए हमने दिल्ली में हेल्थ स्ट्रैटजिस्ट डॉक्टर अंशुमान से बात की तो पता चला कि कैसे डोलो 650 को बड़ी मार्केटिंग कंपनियों ने अपने फायदे के लिए बेफिजूल की ब्रांडिंग करके इसे बेचा. उन्होंने कहा कि जिस याचिका की सुनवाई के दौरान डोलो दवा का जिक्र हुआ वो याचिका फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेज़ेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने दायर की थी. याचिका इस बारे में है कि दवा कंपनियों के लिए मार्केटिंग प्रैक्टिस और फॉर्मूलेशन के लिए यूनिफॉर्म कोड लाया जाए जिसकी वैधानिक मान्यता हो यानी उनको मानना अनिवार्य हो.

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अगर सरकार इस पर क़ानून नहीं ला रही तो सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल दे और केंद्र को इस बारे में निर्देशित करे. याचिकाकर्ता की दलील थी कि दवा कंपनियां अपनी दवाइयों को प्रमोट करने के लिए मार्केटिंग पर काफी खर्च करती हैं, जिसके दबाव में डॉक्टर इन दवाओं को मरीजों को प्रिस्क्राइब करते हैं. इस वजह से हम दवा की खीमतों और फ़ॉर्मूलेशन दोनों के लिए यूनिफॉर्म कोर्ड की बात कर रहे हैं. हम ये मांग साल 2008-2009 से कर रहे हैं.

इसको लेकर टीम न्यूज़ नेशन ने दिल्ली के गोयल हॉस्पिटल में डारेक्टर डॉ. अनिल गोयल से बात की तो उन्होंने हमें बताया कि कैसे कुछ झोलाछाप डॉक्टर्स फ्री बी के चक्कर में ऐसी दवाइयों की डिमांड बढ़वा देते हैं. डॉ. अनिल गोयल ने कहा कि डोलो-650 के निर्माताओं पर भी आरोप है कि उन्होंने डॉक्टरों को 1000 करोड़ की फ़्री-बी (मुफ़्त उपहार) बांटी है. ये खबर इनकम टैक्स की 13 जुलाई की एक प्रेस रिलीज के हवाले से छपी थी. इस रिलीज में इनकम टैक्स ने माइक्रो लैब्स का नाम बिना लिए लिखा था कि बेंगलुरु की एक बड़ी फॉर्मा कंपनी पर इनकम टैक्स की रेड हुई. रेड में सेल्स और प्रमोशन के नाम पर डॉक्टरों को 1000 करोड़ तक बांटे जाना का पता चला है. पूरे मामले में जांच जारी है.

ये जरूरी नहीं कि अगर कोई डॉक्टर आपको डोलो 650 prescrib करे तो वही असर दिखाए, आप दूसरे किसी ब्रांड की दवा जैसे क्रोसिन, केलपोल और अन्य दवाइयों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि सभी में paracetamol का ही फार्मूला शामिल होता है, बशर्ते उसकी मात्रा कम ज्यादा हो सकती है.

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