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बाढ़ के पानी से दिल्लीवासियों की प्यास बुझाने की तैयारी

Admin Delhi 1
2 Jun 2022 4:25 PM GMT
बाढ़ के पानी से दिल्लीवासियों की प्यास बुझाने की तैयारी
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दिल्ली न्यूज़: दिल्ली सरकार अब बाढ़ के पानी से दिल्लीवासियों की प्यास बुझाने की तैयारी कर रही है। इसी क्रम में वीरवार को डीजेबी उपाध्यक्ष ने पल्ला फ्लड प्लेन परियोजना का निरीक्षण किया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाढ़ का संचित पानी बाढ़ खत्म होने के बाद वापस जमीन में लौटाना है, जिससे भूजल का स्तर न सिर्फ रिचार्ज होगा बल्कि बेहतर होकर पानी का स्तर और ऊपर आ जाएगा। गौरतलब है कि राजधानी से गुजरने वाली यमुना नदी में मॉनसून के दौरान लगभग हर साल बाढ़ आती है। बाढ़ का प्रकोप ज्यादा हो तो उसका नुकसान दिल्ली को झेलना पड़ता है। ऐसे में दिल्ली सरकार ने तीन साल पहले मानसून के मौसम में नदी से बाढ़ के अतिरिक्त पानी को इक_ा करने के लिए यमुना बाढ़ के मैदान में पर्यावरण के अनुकूल पल्ला प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत 26 एकड़ का एक तालाब बनाया गया, जहां बाढ़ के पानी का संचय होता है, जिसका उपयोग राष्ट्रीय राजधानी में भूजल को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। भूजल स्तर में बढ़ोतरी की मात्रा का पता लगाने के लिए 33 पीजोमीटर भी लगाए गए हैं।

डीजेबी उपाध्यक्ष ने बताया कि पल्ला फ्लड प्लेन केजरीवाल सरकार की प्रमुख परियोजनाओं में से एक है। इसका उद्देश्य दिल्ली में स्वच्छ पानी की आपूर्ति को बढ़ावा देना है। पल्ला से वजीराबाद के बीच करीब 20-25 किमी लंबे इस स्ट्रेच पर प्राकृतिक तौर पर गड्ढ़े (जलभृत) बनाए गए हैं। मानसून या बाढ़ आने पर पानी इसमें भर जाता है। नदी का पानी जब उतरता है, तो गड्ढ़ों में पानी बचा रहता है। इससे भूजल स्तर में सुधार हुआ है। जहां पहले लाखों गैलन पानी नदी में बह जाता था, अब वो व्यर्थ नहीं बहेगा। पल्ला फ्लड प्लेन परियोजना के कार्यान्वयन के तत्काल परिणाम में बेहतर परिणाम सामने आए थे। 2020 और 2021 में 2.9 मिलियन क्यूबिक मीटर और 4.6 मिलियन क्यूबिक मीटर अंडरग्राउंड वाटर बड़े पैमाने पर रिचार्ज किया गया। इसके बाद भी यह देखा गया कि पल्ला परियोजना क्षेत्र में पिछले वर्ष का भूजल स्तर, अनुमान से निकाले गए 3.6 मिलियन क्यूबिक मीटर भूजल से अधिक था। इस परियोजना ने न केवल पानी की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया है, बल्कि गड्ढ़ो (जलभृतों) में पानी की बढ़ोतरी भी हुई है। परियोजना क्षेत्र में पीजोमीटर में भूजल-स्तर में 0.5 मीटर से 2.5 मीटर की औसत वृद्धि देखी गई।

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