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राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त 'उपहार' देने के वादे के खिलाफ SC में जनहित याचिका दायर
Deepa Sahu
22 Jan 2022 11:28 AM GMT
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राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिझाने के लिए सार्वजनिक कोष से अतार्किक मुफ्त 'उपहारों' के वादे का वितरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को एक जनहित याचिका दायर की गई है।
राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिझाने के लिए सार्वजनिक कोष से अतार्किक मुफ्त 'उपहारों' के वादे का वितरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को एक जनहित याचिका दायर की गई है। भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के समय 'उपहार' की घोषणा से मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता प्रभावित होती है। इस तरह के 'प्रलोभन' ने निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख दिया है।
चुनाव चिन्ह जब्त करने व पंजीकरण रद्द करने की मांग
याचिका में राजनीतिक दलों के ऐसे फैसलों को संविधान के अनुच्छेद-14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है। याचिका में चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह को जब्त करने और पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की-है, जिन्होंने सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त 'उपहार' वितरित करने का वादा किया था। याचिका में दावा किया गया है कि राजनीतिक दल गलत लाभ के लिए मनमाने ढंग से या तर्कहीन 'उपहार' का वादा करते हैं और मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाते हैं, जो रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है।
पंजाब पर हर साल बढ़ता जा रहा कर्ज का बोझ
याचिका में उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अगर आम आदमी पार्टी( आप) पंजाब में सत्ता में आती है तो उसे राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपए की जरूरत है। वहीं, शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में आने पर प्रति माह 25,000 करोड़ रुपए और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी, जबकि जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ रुपए है। याचिका में कहा गया है कि वास्तव में कर्ज चुकाने के बाद पंजाब सरकार वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है तो वह 'उपहार' कैसे देगी? कड़वा सच यह है कि पंजाब का कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है। राज्य का बकाया कर्ज बढ़कर 77,000 करोड़ रुपए हो गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में ही 30,000 करोड़ रुपए जमा हो रहे हैं। याचिकाकर्ता उपाध्याय ने कहा कि वह समय दूर नहीं है जब एक राजनीतिक दल कहेगा कि 'हम आपके आवास में आपके लिए खाना बनाएंगे' और दूसरा यह कहेगा कि 'हम न केवल खाना बनाएंगे, बल्कि आपको खिलाएंगे।' 'सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में है।
Deepa Sahu
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