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पंडित जवाहर लाल नेहरू पुण्यतिथि विशेष: जानिए किन हालातों में मिला था नेहरू को देश का नेतृत्व

Renuka Sahu
27 May 2022 1:47 AM GMT
Pandit Jawaharlal Nehru Death Anniversary Special: Know under what circumstances Nehru got the leadership of the country
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फाइल फोटो 

भारत की आजादी के समय देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बहुत की कठिन हालात मिले थे.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत की आजादी (Indian Independence) के समय देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को बहुत की कठिन हालात मिले थे. एक कर्मठ और गांधी जी के समर्पित अनुयायी होते हुए नेहरू ने 1947 में देश की बागडोर संभाली जब उन्हें देश में संवैधानिक ढांचे की स्थापना करने का काम करने के साथ देश के आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का भी हल करना था. इसके बाद देश ने कई तरह के बदलाव और चुनौती के उतार चढ़ाव भरे समय भी देखे. 27 मई को जवाहरलाल नेहरू की 48वीं पुण्यतिथि (Jawaharlal Nehru Death Anniversary) है.

विदेश में शिक्षा
पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को भारत के इलाहबाद में हुआ था उनके पिता मोतीलाल नेहरू अपने समय के सबसे अमीर और सफल वकील थे. जवाहरलाल नेहरू की स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज लंदन से और लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से हासिल की. इसका फायदा उन्हें बाद में देश की विदेश नीति को आकार देने में मिला.
आजादी से पहले
नेहरू को मुख्य रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में गांधी जी के अनुयायी और कर्मठ कांग्रेस नेता के तौर पर देखा गया है. वे स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल गए और कांग्रेस में युवाओं का प्रतिनिधित्व किया. आजादी के समय कांग्रेस और गांधी जी ने उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुना. जबकि उसी समय, आजादी से पहले ही देश बंटवारे के आग में जलना शुरू हो गया था.
आजादी के समय
भारत की आजादी के समय देश के हालात अच्छे नहीं थे. देश में कई जगह असमंजस की स्थिति थी. अंग्रेजों के जाने से कई रियासतों पर कोई भी असर नहीं हुआ था क्योंकि वे तब अंग्रेजों के अधीन नहीं थी. कई रियासतों ने आजाद रहने का फैसला किया था तो कुछ ने पाकिस्तान ने मिलना तय किया था. लेकिन नेहरू ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को पूरी जिम्मेदारी और छूट दी, जिनके प्रयासों से देश को एकीकृत आकार मिल सका.
बंटवारे का असमंजस

वहीं भारत पाकिस्तान का बंटवारे की सीमा रेखा भी आजादी के तीन तक स्पष्ट नहीं थी. इसलिए बहुत सारे लोग यह भी तय नहीं कर पा रहे थे कि वे भारत की आजादी का जश्न मनाएं या पाकिस्तान की. पंजाब प्रांत में तब हिंदु और मुस्लिम बहुल दोनों ही तरह के इलाके थे. इसी तरह से बंगाल में भी ऐसे ही हालात थे. ऐसे में यह तय होने में समय लग रहा था कि कौन सा हिस्सा पाकिस्तान में जाएगा कौन सा भारत में.
दंगों का दंश और संविधान की स्थापना की चुनौती
आजाद होते ही देश के बंटवारे की वजह से हिंदू मुस्लिम दंगों का दंश झेलना पड़ा. साम्रदायिक दंगे बंटवारे के कारण केवल सीमा पर ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में फैल रहे थे. इन तमाम चुनौतियों के बीच देश में सबसे बड़ी जरूरत लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू कर संविधान को लागू करने की थी.
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