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Noida: कोर्ट के आदेशों के बावजूद पाम ओलंपिया सोसायटी में निर्माण जारी
नॉएडा: पाम ओलंपिया आवासीय सोसायटी के निवासियों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुका निर्माण कार्य अब और भी विवादों में घिर गया है। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) द्वारा दिए गए निर्देशों और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मौखिक आदेशों के बावजूद पाम ओलंपिया परियोजना के दूसरे चरण का निर्माण कार्य लगातार जारी है, जिससे निवासियों में गहरा असंतोष है।
GNIDA के निर्देशों की अनदेखी और कोर्ट के आदेशों पर बहस GNIDA ने 31 जुलाई को सैम इंडिया अभिमन्यु हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड को पत्र जारी कर पाम ओलंपिया में सभी निर्माण कार्यों को तत्काल रोकने का आदेश दिया था। इसी दिन, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी मौखिक रूप से GNIDA को निर्देश दिया था कि वह पाम ओलंपिया की स्वीकृत “निर्माण योजना” में किसी भी प्रकार का बदलाव न होने दे और निर्माण कार्य पर रोक लगाए। लेकिन इन आदेशों के बावजूद, परियोजना पर काम जारी है, जो न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि निवासियों की समस्याओं को और बढ़ा रहा है।
निवासियों की अदालत में गुहार: समानता के अधिकार का उल्लंघन पाम ओलंपिया के निवासियों ने 23 जुलाई को उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की थी कि बिल्डर को बिना उनकी सहमति के सोसायटी के लेआउट में बदलाव करने और आगे निर्माण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि यह उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट अधिनियम, 2010 और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने इस याचिका पर मौखिक टिप्पणी करते हुए GNIDA को निर्माण कार्य रोकने के निर्देश दिए थे।
GNIDA और बिल्डर के बीच टकराव: मौखिक संवाद का बहाना GNIDA की महाप्रबंधक (योजना एवं वास्तुकला) लीनू सहगल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मौखिक रूप से पाम ओलंपिया में निर्माण कार्य रोकने की बात कही थी, लेकिन यह आदेश लिखित में नहीं दिया गया। इसके बावजूद GNIDA ने सैम इंडिया को पत्र जारी कर निर्माण रोकने का निर्देश दिया था। सहगल ने कहा, “हमें जानकारी नहीं थी कि वहां अब भी काम चल रहा है। हम तुरंत मोबाइल स्क्वाड भेजेंगे और बिल्डर को निर्माण रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगे।”
दूसरी ओर, सैम इंडिया के प्रबंध निदेशक का कहना है कि अदालत के मौखिक निर्देशों का कोई कानूनी आधार नहीं होता है। उन्होंने कहा, “हमने GNIDA से यह पूछा है कि अदालत ने अपने आदेश में निर्माण कार्य रोकने के बारे में कहां उल्लेख किया है। जब तक हमें कोई स्पष्ट आदेश नहीं मिलता, हम निर्माण कार्य बंद नहीं करेंगे।”
निवासियों की नाराजगी: सुविधाओं का वादा अधूरा: खुले स्थानों की कमी निवासियों का आरोप है कि बिल्डर ने बिना किसी परामर्श के सोसायटी के लेआउट में अचानक संशोधन कर दिया और निर्माण कार्य शुरू कर दिया। इस बदलाव से सोसायटी के खुले स्थान और हवादार माहौल में कमी आ गई है। एक निवासी ने शिकायत करते हुए कहा, “हमने 2010 में फ्लैट बुक किया था और तब बिल्डर ने हमें पर्याप्त खुली जगह, स्पोर्ट्स कोर्ट और पार्क के सामने वाले फ्लैटों का वादा किया था, जिसके लिए अतिरिक्त शुल्क भी लिया गया। लेकिन आज तक न तो हमें पैसे वापस मिले और न ही पार्क बनाया गया।”
कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ? कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार
अदालत के मौखिक आदेशों का पालन करना आवश्यक होता है, भले ही यह लिखित में न हो। मौखिक आदेशों का उल्लंघन करना अदालत की अवमानना के दायरे में आ सकता है। निवासियों की याचिका पर उच्च न्यायालय का अंतिम फैसला आना अभी बाकी है, लेकिन तब तक निर्माण कार्य का जारी रहना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकता है।
आगे का रास्ता: GNIDA की कार्रवाई और अदालत का फैसला
अहम GNIDA द्वारा भेजे गए मोबाइल स्क्वाड की रिपोर्ट और उच्च न्यायालय का अंतिम आदेश इस मामले में अहम भूमिका निभाएगा। यदि GNIDA सख्ती से निर्माण कार्य को रोकने के लिए कदम उठाता है, तो निवासियों को राहत मिल सकती है। वहीं, बिल्डर की ओर से अदालत के निर्देशों की अनदेखी करना उसे मुश्किल में डाल सकता है।