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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता:सुप्रीम कोर्ट
Rani Sahu
3 Jan 2023 12:23 PM GMT

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नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने मंगलवार को कहा कि किसी नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरथ्ना की संविधान पीठ ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बुलंदशहर में 2016 के सामूहिक बलात्कार के एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान (Aajam Khan) के बयान से जुड़े एक मामले की सुनवाई के बाद बहुमत का फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति नागरथ्ना ने बहुमत के फैसले से अलग मत रखते हुए अलग फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यन ने बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने की स्वतंत्रता के खिलाफ कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। साथ ही यह भी कहा कि मंत्री स्वयं बयान के लिए उत्तरदायी है। एक मंत्री के बयान को सरकार के लिए वैकल्पिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति नागरथ्ना ने अपने अलग फैसले में कहा कि अभद्र भाषा समानता और बंधुत्व की जड़ पर प्रहार करती है। साथ ही यह भी कहा कि मौलिक कर्तव्यों का उपयोग अपमानजनक भाषणों की जांच करने और नागरिकों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। न्यायमूर्ति नागरत्थना ने कहा,"यह राजनीतिक दलों के लिए है कि वे अपने मंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को नियंत्रित करें। यह एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है। कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक पदाधिकारी के अभद्र भाषा से आहत महसूस करता है, वह नागरिक उपचार के लिए अदालत दरवाजा खटखटा सकता है।"
एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और बेटी के साथ जुलाई, 2016 में बुलंदशहर के पास एक राजमार्ग पर कथित रूप से सामूहिक बलात्कार के मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने और आजम खान को अपने विवादास्पद बयान पर प्राथमिकी दर्ज करने की गुहार लगाई थी। श्री खान ने हालांकि, सामूहिक बलात्कार मामले में पीड़िता मां-बेटी के इरादों को जिम्मेदार ठहराने वाले अपने बयान के लिए माफी मांग ली थी। इस मामले में शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने पांच अक्टूबर, 2017 को मामले को संविधान पीठ को विभिन्न पहलुओं पर निर्णय लेने के लिए भेजा था। तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसले में विचार के लिए भेजे गए पहलुओं में यह भी शामिल था कि क्या कोई सार्वजनिक पदाधिकारी या मंत्री संवेदनशील मामलों में विचार व्यक्त करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा कर सकता है, जिस मामले की जांच चल रही है।
Source : Hamara Mahanagar
{जनता से रिश्ता इस खबर की पुष्टि नहीं करता है ये खबर जनसरोकार के माध्यम से मिली है और ये खबर सोशल मीडिया में वायरलहो रही थी जिसके चलते इस खबर को प्रकाशित की जा रही है। इस पर जनता से रिश्ता खबर की सच्चाई को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता है।}
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