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New Delhi: राजधानी में खूंखार कुत्तों का आतंक, हर दिन 800 से ज्यादा लोग हो रहे घायल

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कुत्तों का आतंक दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। श्वानों की बढ़ती संख्या से दिल्ली के हर इलाके के लोग हलकान हो उठे हैं। आए दिन ये आवारा कुत्ते लोगों पर हमला करते हैं और उनकी बाइट जान पर बन आती है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में हर रोज कुत्तों के काटने से एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाने वालों की तादात बढ़ती जा रही है। मरीजों की शिकायत यह भी होती है कि नगर निगम इसके लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठाता है। पालतू कुत्ते भी लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं।
रोजाना आठ सौ से ज्यादा हो रहे शिकार: सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या को देखते हुए अनुमान ये है कि दिल्ली में रोजाना आठ सौ से अधिक लोगों को कुत्ते काट रहे हैं। इनमें से काफी मरीज गंभीर होते हैं, जिन्हें तुरंत टीका लगाने की जरूरत होती है। विशेषज्ञों की मानें तो एलएनजेपी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, जीटीबी सहित दिल्ली के अन्य सरकारी अस्पतालों में रोजाना आठ सौ से अधिक लोग रेबीज का टीका लगवाने आते हैं। इनमें करीब आधे पुराने मरीज होते हैं। सबसे अधिक लोग एलएनजेपी और जीटीबी अस्पताल में रेबीज का टीका लगवाने पहुच रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार कुत्ता काटने के मामलों में 60 फीसदी मरीज बच्चे होते हैं।
राजधानी में 11 लाख से अधिक कुत्ते: अकेले दिल्ली में 11 लाख से अधिक कुत्ते हैं। तकरीबन आठ सौ कुत्ते रोज किसी न किसी को काट रहे हैं। सितम ये है कि कुत्तों की नसबंदी नहीं हो रही है। हालांकि, सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज इन्जेक्शन की भरपूर मात्रा है। कुछेक अस्पतालों में इसके रखरखाव में लापरवाही जरूर बताई जाती है। हालांकि, म्यूनिसपल कार्पोरेशन ने कुल 12-15 प्राइवेट गैर सरकारी संगठनों के ऊपर Sterilization का काम छोड़ रखा है। कायदे से यह काम एमसीडी को अपने हाथों में ले लेना चाहिए। दिल्ली में दिल्ली सरकार के सत्तर वैरटेरनरी केंद्र हैं, उनमें भी sterilization का काम होना चाहिए जो कि नहीं हो रहा है। दरअसल, रैबीज से मरने वालों की एक-तिहाई संख्या हिंदुस्तान में है। हर साल 60 लाख कुत्तों के काटने के मामले देश में आते हैं। दूसरे देशों में कुत्तों को सड़कों पर घूमने की अनुमति नहीं है और सार्वजनिक स्थानों पर जानवरों को खाना खिलाना प्रतिबंधित है।
पालतू कुत्तों से भी खतरा: पेट्स स्टेटस सिंबल बनते जा रहे हैं। खतरनाक पिटबुल से लेकर अन्य नस्लों के कुत्ते पालने में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। आवारा कुत्तों के अलावा ये पालतू कुत्ते भी खतरनाक साबित हो रहे हैं। कई बार तो यह अपने स्वामी को ही काट लेते हैं। नियम-कानून का कड़ाई से पालन होता ही नहीं।
स्ट्रीट डॉग को लेकर क्या कहता है कानून: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 38 के तहत इन्हें सुरक्षा दी गई है। कुत्तों को उनके इलाके से अचानक हटाया नहीं जा सकता। उनके साथ बुरा व्यवहार करने पर आईपीसी की धारा 428 और 429 के तहत जुर्म है। पुलिस मामला दर्ज कर सकती है और जेल भी हो सकती है। इसमें पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। कुत्ते को बांधकर रखने या भूखे रखने पर भी तीन माह की सजा का प्रावधान है। कुत्ता विषैला है तो भी उसे मारा नहीं जा सकता। इसके लिए पशु कल्याण संगठन से संपर्क करना होगा। लोकल बाडीज से संपर्क करना होगा।
कुत्ता पालने के क्या हैं नियम?
अगर कोई व्यक्ति कुत्ता पालने का शौक रखता है तो उसे नियमित टीकाकरण करवाना होगा। लाइसेंस लेना होगा। सोसायटी, पार्क में घुमाते समय सुनिश्चित करना होगा कि उसके मुंह पर मास्क लगा हो। गले में पट्टा हो। उस पर रजिस्ट्रेशन की जानकारी अंकित हो। दरवाजे पर कुत्ते से सावधान का बोर्ड लगाने का नियम भी मानना होगा।
ये नस्लें हैं काफी खतरनाक
कुत्तों की 23 नस्लों जिसमें मिक्स और क्रॉस ब्रीड भी शामिल हैं जो इंसानों की जिंदगी के लिए आक्रमक और खतरनाक साबित हो सकते हैं। इनमें पिटबुल टेरियर, टोसा इनु, अमेरिकन स्टैफोर्डशायर टेरियर, फिला ब्रासीलीरो, डोगो अर्जेंटीनो, अमेरिकन बुलडॉग, बोअरबोएल कांगल, मध्य एशियाई शेफर्ड डॉग और कोकेशियान शेफर्ड डॉग उन नस्लों में से हैं जिन्हें केंद्र से प्रतिबंधित करने की मांग की गई है। अन्य नस्लों में दक्षिण रूसी शेफर्ड, टॉर्नजैक, सरप्लानिनैक, जापानी टोसा और अकिता, मास्टिफ, टेरियर्स, रोडेशियन रिजबैक, वुल्फ डॉग, कैनारियो, अकबाश डॉग, मॉस्को गार्ड डॉग, केन कोरसो और बैनडॉग शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को कुत्ता, बिल्ली, गीदड़, भेड़िया, लोमड़ी, रैकून, चमगादड़ या अन्य जानवर काट लें तो उसे रेबीज का टीका लगवाने की जरूरत होती है।
टीके की चार डोज जरूरी
कुत्ते के काटने के बाद टीके की चार डोज जरूरी हैं। पहली डोज तुरंत, दूसरी तीन दिन पर, तीसरी सात दिन पर और चौथी डोज 28 दिन पर दी जाती है। साथ ही मरीज को पहली डोज के साथ एंटी रेबीज सीरम (एआरएस) भी दिया जाता है। दिल्ली के सरकारी अस्पताल में चारों डोज दोनों कंधे पर दी जाती है।
दिल्ली में 90 फीसद पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रे शन ही नहीं
राष्ट्रीय राजधानी दिल्लीफ की बात करें तो अकेली दिल्लीि में 8 लाख से ज्या दा स्ट्रीाट डॉग्स हैं, लेकिन इनमें से 20 हजार भी वैक्सीबनेटेड नहीं हैं. और इसी तरह मुश्किल से 10 फीसद पालतू कुत्तोंन का रजिस्रेदि शन भी दिल्लीन में नहीं हुआ है। यानी दिल्ली में जिन कुत्तोंर को लोग घरों में पालते हैं, वे 90 फीसद ऐसे हैं, जिनका रजिस्ट्रेइशन ही नहीं करवाया गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 60,000 से अधिक आवारा कुत्ते है।
भोजन की है गारंटी
दिल्ली हाई कोर्ट के 2021 में आए एक ऐतिहासिक फैसले में आवारा कुत्तों को भोजन के अधिकार की गारंटी दी है। साथ ही इसमें चेतावनी भी दी गई है कि इस अधिकार को सुनिश्चित करने में सावधानी बरती जानी चाहिए। यह बाकी नागरिकों के अधिकारों का हनन न करे। इससे बाकी लोगों या समाज को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. ये भी नहीं होना चाहिए कि आवारा कुत्तों के भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने की वजह से बाकी लोगों को किसी भी तरह की दिक्कतत हो।
आवारा कुत्तों को लेकर क्या कहता है कानून
आवारा कुत्तों को 1960 के पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा-38 के तहत संरक्षित किया जाता है। इसके अलावा पशु जन्म नियंत्रण (डॉग्सध) नियम, 2001 के अनुसार, कुत्तों को उनके क्षेत्र से स्थानांतरित या हटाया भी नहीं जा सकता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा-428 और 429 के तहत, कुत्तों समेत किसी भी आवारा जानवर को छेड़ना या उसके साथ बुरा व्यवहार करना अपराध है।
एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डाक्टर सुरेश कुमार ने कहा कि कुत्तों के काटने से मरीजों की संख्या में इजाफा जरूर हुआ है किंतु अस्पतालों में वैक्सीन की पर्याप्त व्यवस्था है। हर मरीज को चार डोज जरूरी होती है। वरना हाइड्रोफोबिया का डर रहता है। इसलिए, कुत्ता काटने पर तुरंत चिकित्सालय में संपर्क करना चाहिए।
