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New Delhi : भारत में भीषण गर्मी से परेशान,अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञानी ने बताए यह कारण

Tara Tandi
21 Jun 2024 5:09 AM GMT
New Delhi : भारत में भीषण गर्मी से परेशान,अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञानी ने बताए यह कारण
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New Delhi नई दिल्ली: पूरा उत्तर और पश्चिमोत्तर भारत इस वक्त भीषण गर्मी से परेशान है। गर्मी भी ऐसी, न कभी देखी, न सुनी, न कभी महसूस की। दिन में प्रचंड लू के थपेड़े परेशान कर रहे हैं तो असाधारण गर्म रातें भी हैरान कर रही हैं। यही सवाल जेहन में बार-बार आ रहा है कि इस साल इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मौसम की इस तल्खी से मौसम वैज्ञानिक भी अचरज में हैं। इस साल इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है, यह सवाल हमने जब नेशनल क्लाइमेट सेंटर के पूर्व चेयरमैन, मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व निदेशक और आईएमडी के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. एके
श्रीवास्तव से पूछा तो उनका उत्तर चौंकाने वाला था।
फिलहाल तो उन्होंने इस साल उत्तर और पश्चिमोत्तर भारत में पड़ रही गर्मी के लिए फौरी तौर पर इस साल अप्रत्याशित रूप से पश्चिमी विक्षोभों (वेस्टर्न डिस्टरबेंसेज) में आई कमी और आसमान में बने उच्च वायुदाब को माना। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि इस साल एक और असामान्य बात देखी गई कि मई से लेकर जून के तीसरे हफ्ते तक लगातार उत्तर भारत और पश्चिमोत्तर भारत के आकाशीय वातावरण में उच्च वायु दाब बना रहा। इससे धरती से आसमान में रात को लौट जाने वाली गर्मी आसमान में नहीं पहुंच पाई। लिहाजा रात को भी असाधारण गर्मी झेलनी पड़ रही है।
गणित जैसा नहीं है मौसम विज्ञान
अंतरराष्ट्रीय मौसम वैज्ञानिक डॉ. एके श्रीवास्तव कहते हैं कि सामान्य लोग मौसम की सही भविष्यवाणी न कर पाने की वजह से वैज्ञानिकों को कोसने लगते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि मौसम विज्ञान गणितीय फॉर्मूले पर नहीं चलता। मौसम के बहुत से रहस्य अभी भी मानव के लिए अबूझ पहेली ही बने हुए हैं। सैटेलाइटों, उपग्रहों, वैज्ञानिक उपकरणों और अनुभव के आधार पर तैयार मॉडलों से हम कुछ हदतक मौसम की सटीक भविष्य कर पाते हैं। समुद्री तूफानों, भारी बारिश आदि की एक सप्ताह पूर्व सही भविष्यवाणी तो की जा सकती है। इसका लाभ हमने देखा भी है। लेकिन मौसम कब अपना मिजाज बदल दे इसकी भविष्यवाणी अभी तक सटीक तौर पर नहीं की जा सकती। यह मौसम विज्ञान के साथ ही मानव प्रज्ञा की सीमा भी है।
खुद को संतुलित भी करती है प्रकृति
वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते हैं कि हर बार प्रकृति उथल-पुथल ही करे या तबाही ही मचाए ऐसा नहीं होता। दरअसल प्रकृति में खुद को संतुलित करने की भी अनूठी शक्ति है। इसका उदाहरण है कि ओजोन लेयर के छिद्र का भरना। एक समय ओजोन लेयर में छिद्र का बढ़ना दुनिया की चिंता का सबसे बड़ा सबब बना हुआ था। हमने पर्यावरण की शुद्धता के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया। लेकिन कुदरत ने इसे खुद भरना शुरू किया। अब यह छिद्र छोटा होता जा रहा है। यह धरती कई बार असाधारण रूप से गर्म हुई है, कई बार इस पर हिमयुग भी आया है। लेकिन प्रकृति संरक्षण की दिशा में मानव जो कर सकता है उसे जरूर करना चाहिए। वृक्षारोपण, कार्बन उत्सर्जन में कमी के जरिए हम कुदरत के मददगार बन सकते हैं।
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