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New Delhi: एक अधिकारी को बहादुरी के लिए 38 साल बाद इनाम मिलेगा
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अधिकारी को बहादुरी के लिए 38 साल बाद इनाम मिलेगा। राम यादव नाम के इस पुलिस अधिकारी ने 1986 में बांदा जिले में एक बस पर हमला करने वाले डकैतों का अकेले ही मुकाबला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को उन्हें 5 लाख रुपये का मानदेय देने का आदेश दिया है।
बस में अकेले डकैतों का किया था मुकाबला
राम यादव 1986 में यूपी पुलिस में स्टेशन ऑफिसर थे। 10 मार्च 1986 को वह एक रात की बस में सफर कर रहे थे। बांदा जिले में डकैतों ने बस को रोक लिया। डकैतों ने उन पर गोली चलाई। राम यादव ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से जवाबी फायरिंग की। इसमें डकैतों का सरगना मारा गया। बाकी डकैत डरकर भाग गए।
वीरता पदक के लिए की गई थी सिफारिश
बांदा के एसपी ने 1989 में यादव के नाम की सिफारिश राष्ट्रपति के वीरता पदक के लिए की थी। लेकिन यादव को यह सम्मान नहीं मिला। समय बीतता गया और सरकार ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यादव ने इसके लिए अपने सीनियर अधिकारियों को कई चिट्ठियां भी लिखीं। दशकों बाद यादव को पता चला कि एसपी की 1989 की सिफारिश वाली फाइल खो गई है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चार दशक बीत चुके हैं, इसलिए यह याचिका समय सीमा के बाहर है। फिर यादव सुप्रीम कोर्ट गए।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से मांगा जवाब
इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जवल भुयन की बेंच ने यूपी सरकार से जवाब मांगा। बेंच ने सीनियर वकील राणा मुखर्जी को इस मामले के समाधान के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया। बुधवार को यूपी सरकार की वकील रुचिरा गोयल ने बेंच को बताया कि डीजीपी ने यादव के दस्तावेजों की जांच के बाद उन्हें प्रशस्ति पत्र देने पर सहमति जताई है।
कोर्ट ने 5 लाख रुपये मानदेय देने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यादव ने ईमानदारी से सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें सिर्फ अपनी बहादुरी की पहचान चाहिए, पैसा नहीं। लेकिन बेंच ने महसूस किया कि यादव को उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए। 38 साल तक उनकी बहादुरी को पहचान नहीं मिली। अपने विवेकाधीन अधिकारों का उपयोग करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को यादव को 5 लाख रुपये का मानदेय देने का निर्देश दिया।