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नरेंद्र सिंह तोमर ने कई राज्यों के कृषि मंत्री के साथ बैठक की
केंद्र सरकार की तैयारी अगर कारगर हुई तो दिल्ली-एनसीआर समेत आसपास के राज्यों के लोगों को धुएं और धुंध से राहत मिल सकती है। खेतों में पराली जलाने से होने वाले नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस बार पराली जलाने के मामलों को 'शून्य' करने का लक्ष्य तय किया है।
पराली जलाने से मिट्टी के स्वास्थ्य पर पड़ता है असर: कृषि मंत्री
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली की सरकारों ने अंतर-मंत्रालयीय बैठक में पराली जलाने से रोकने के लिए अपनी-अपनी कार्ययोजना एवं तैयारियों का ब्योरा दिया।
तोमर ने कहा कि धान की कटाई के बाद उसके अवशेषों को किसान खेतों में ही जला देते हैं। यह अक्टूबर और नवंबर में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में आम बात है। मौजूदा सत्र में इसे पूरी तरह बंद करने के लिए काम करने का लक्ष्य है, क्योंकि पराली जलाने से सिर्फ वायु प्रदूषण ही नहीं फैलता है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य एवं उर्वरता पर भी असर पड़ता है।
बायो-डीकंपोजर के इस्तेमाल को सुनिश्चित करने की जरूरत: नरेंद्र तोमर
तोमर ने बताया कि केंद्र सरकार की तरफ से चार राज्यों को फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) योजना के तहत पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में सभी राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को पराली प्रबंधन के लिए समय पर मशीन मिल सके। साथ ही मशीनों के समुचित उपयोग और बायो-डीकंपोजर के इस्तेमाल को भी सुनिश्चित करने की जरूरत है।
तोमर ने कहा कि पराली के व्यावसायिक उपयोग के साथ किसानों को जागरूक करने पर भी ध्यान देना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार यह भी मानती है कि पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी आ रही है।
बैठक में कई राज्यों के कृषि मंत्री थे मौजूद
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पराली एवं धान के भूसे के प्रबंधन को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत बताई और कहा कि इससे बिजली, जैव द्रव्यमान जैसे उद्योगों को कच्चा माल मिल सकता है। इस उच्च स्तरीय बैठक में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, पंजाब के कृषि मंत्री गुरुमीत सिंह खुडियन, हरियाणा के कृषि मंत्री जय प्रकाश दलाल और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय उपस्थित थे।