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![भाजपा पार्टी के कई नेताओं पर गिर सकती है गाज भाजपा पार्टी के कई नेताओं पर गिर सकती है गाज](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/12/08/2295394-30102020-bjpparty20986242.webp)
दिल्ली: एमसीडी चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के कई नेताओं पर गाज गिर सकती है। संगठन में भी बदलाव के संकेत दे दिए गए हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा चुनाव जीते या हारे अगले चुनावी मोड में उसी दिन से आ जाती है। प्रदेश नेतृत्व से लेकर संगठन स्तर पर भी बदलाव होगा।
केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश पदाधिकारियों और कार्यकारिणी में बदलाव पर मुहर लगा सकती है, बल्कि पार्टी के दावे और कार्य स्थिति की समीक्षा भी की जाएगी। इसे लेकर जल्द ही विशेष समिति का गठन किया जाएगा। टिकट वितरण में लगे आरोपों पर आलाकमान को मिली शिकायत को आधार बना कर समिति कार्य करेगी। चुनावी हार के बाद मंथन शुरु होगा कि पूर्वांचल, पंजाबी, झुग्गीवासी और महिलाओं का रुझान पार्टी की नीतियों के प्रति एमसीडी चुनाव में कम किस वजह से रहा।
नहीं बना पाए त्रिकोणीय मुकाबला: भाजपा त्रिकोणीय चुनाव बनाने के मूड में थी। लेकिन सीधी टक्कर इस बार आम आदमी पार्टी से ही रही। हालांकि, जहां कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना दमखम दिखाया वहां भाजपा प्रत्याशी मजबूत स्थिति में रहे। कांग्रेस के सहारे जीत की वैतरणी पार करने का सपना भाजपा का अधूरा ही रह गया। भाजपा को उम्मीद थी कि अल्पसंख्यक आप से छिटककर कांग्रेस की तरफ जाएंगे,लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ओवैसी की पार्टी (एआईएमआईएम) भी मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करने में विफल साबित हुई। भाजपा को इससे लाभ नहीं मिला।
सांसदों के लिए भी खतरे की घंटी: एमसीडी चुनाव में खराब परिणाम आना सांसदों के लिए भी खतरे की घंटी है। उनके क्षेत्रों में अपेक्षित सफलता नहीं मिले की वजह से सांसदों के कामकाज की समीक्षा तय है। भाजपा सांसदों को केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी की तरफ से कार्यकर्ताओं में उत्साह और जोश भरने की जिम्मेदारी दी थी। पार्टी के प्रति विश्वास मजबूत करने का निर्देश था। बावजूद हार मिली। पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर के संसदीय क्षेत्र में भाजपा मजबूत रही।
इसी तरह डॉ. हर्षवर्धन भी चुनावी जीत अपने संसदीय क्षेत्र में बेहतर रखने में कामयाब रहे। मनोज तिवारी का प्रदर्शन भी पार्टी पदाधिकारियों की नजर में बेहतर है। सबसे खराब प्रदर्शन मीनाक्षी लेखी, प्रवेश वर्मा और हंसराज हंस का माना जा रहा है। परिसीमन के बाद कई संसदीय क्षेत्र में वार्ड की संख्या 25 रह गई तो कहीं बढ़कर 41 तक पहुंच गई। वार्ड की संख्या में असमानता के बावजूद सांसदों को अपने इलाके में लोगों की समस्याओं को दूर करने से लेकर आप की खामियों को भी पुरजोर तरीके से रखने को कहा गया था।