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Delhi के पॉश इलाके में लूट, पुलिस पर सवाल क्यों नहीं उठेंगे
शंकर जी विश्वकर्मा
दिल्ली। देश का शायद ही ऐसा कोई राज्य हो जहां पर चोरी की घटनाएं ना होती हों, शायद ही ऐसा कोई जिला या कस्बा हो, जहां चैन स्नैचिंग की घटनाएं ना होती हों,आमतौर पर ऐसी घटनाओं को जनता भी बहुत गंभीरता से नहीं लेती। शायद पुलिस भी इसीलिए ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाती, लेकिन लूट और डकैती की घटनाएं देश के किसी भी राज्य के किसी भी जिले में हुई हों तो उसे बड़ी घटना माना जाता है।
ऐसी घटनाओं के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठते हैं, फिर भी कुछ दिन बाद लोग भूल जाते हैं। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी घटना हो तो निश्चित तौर पर यह बड़ी घटना मानी जाएगी और घटना ऐसी जगह हुई हो जहां से मात्र दो या तीन किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास और संसद भवन के अलावा केंद्र सरकार के बड़े-बड़े मंत्रियों के आवास हों तो फिर सवाल ना सिर्फ पुलिस पर बल्कि पूरे सिस्टम पर उठता है। राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान के पास हुई लूट की घटना शायद ऐसी ही घटनाओं का एक जीता जागता उदाहरण है।
देश की राजधानी दिल्ली में प्रगति मैदान के पास एक नई अंडरग्राउंड सड़क बनाई गई है, जिसे प्रगति मैदान टनल कहते हैं। बीते शनिवार को इसी टनल वाली सड़क पर चार बदमाश दो मोटरसाइकिल से आते हैं। एक मोटरसाइकिल पर सवार दो बदमाश एक कार को ओवरटेक करते हुए कार के आगे जाकर बाइक रोक देते हैं। कार चालक भी अपनी गाड़ी को रोक देता है। तभी दूसरे मोटरसाइकिल पर सवार दो अन्य बदमाश हाथों में तमंचा लहराते हुए कार में बैठे लोगों से रुपयों से भरा बैग लूट लेते हैं, और बड़े आराम से वहां से फरार हो जाते हैं। हालांकि उस बैग में रुपए डेढ़ से दो लाख ही थे लेकिन सवाल ना तो आरोपियों को लेकर है और ना ही इस रकम को लेकर है।
चूंकि यह घटना दिल्ली में हुई है। दिल्ली की उस सड़क पर हुई है जिस सड़क पर हमेशा ही सैकड़ों वाहन आते-जाते रहते हैं। लूट की वारदात वहां हुई है, जहां थोड़ी-थोड़ी देर पर पुलिस की गाड़ियां गस्त करती रहती हैं। चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं बावजूद इसके बदमाशों ने इस लूट की वारदात को अंजाम दे दिया। अन्य घटनाओं की तरह इस घटना को भी भुलाया जा सकता है और शायद भुलाया जा भी सकता था, लेकिन यह वारदात देश की राजधानी दिल्ली में हुई है। इसलिए केंद्र का पूरा सिस्टम और दिल्ली की पुलिस सवालों से बच नहीं सकते। सवाल उठेंगे और उठते रहेंगे। हालांकि ऐसी घटनाओं को लेकर आमतौर पर राजनीति शुरू हो जाती है, वैसे ही यहां भी राजनीति शुरू हो गई है। दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने केंद्र की सरकार पर आरोप लगा दिया है। हालांकि उनके आरोप को राजनीति का एक हिस्सा बता दिया जाएगा, लेकिन उनका आरोप बहुत हद तक सही भी है।
अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से यहां तक कह दिया है कि दिल्ली की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके हाथों में सौंप दी जाए। वह सारी व्यवस्था ठीक कर देंगे। लेकिन अरविंद केजरीवाल के ऐसे सवाल का जवाब ना तो केंद्र की सरकार देगी और ना ही दिल्ली की पुलिस देगी। फिलहाल यह लूट की घटना जो दिल्ली में हुई है, इसकी चर्चा आज पूरे देश में हो रही होगी। देश के अन्य राज्यों की पुलिस शायद यह सोचने पर मजबूर हो रही होगी कि जब राजधानी की पुलिस का ही खौफ़ बदमाशों के दिल में नहीं है तो बाकी राज्यों में क्या होगा। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की पुलिस ने बदमाशों पर ऐसा शिकंजा कसा है कि आज की तारीख में बदमाश जो जेल में बंद है वह जमानत मिलने के बाद भी जेल से बाहर आने का नाम नहीं ले रहे हैं। योगी सरकार की पुलिस ने बदमाशों के दिल में एक दहशत पैदा कर रखी है। लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे देश की राजधानी दिल्ली की पुलिस जो शायद देश की टॉप तीन पुलिस सर्विसेज में से एक कहलाती है।
वह दिल्ली में बदमाशों के दिल में दहशत पैदा करने में नाकामयाब क्यों हो गई? राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास और केंद्र के तमाम मंत्रियों के आवास जहां पर हों वहां से महज दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर जब बदमाश इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं तो जरा सोचिए दिल्ली के उन पिछड़े इलाकों का क्या होगा जहां ना तो वीआईपी रहते हैं और ना ही बड़े-बड़े उद्योगपतियों का घर है। दिल्ली पुलिस को अपने नाम के हिसाब से काम करना ही पड़ेगा। यह लूट की जो घटना हुई है, इसके बाद दिल्ली पुलिस के माथे पर एक कलंक लग गया है। अगर दिल्ली पुलिस को इस कलंक को धोना है तो एक ऐसी व्यवस्था कायम करनी पड़ेगी, ताकि बदमाश ऐसी वारदात को अंजाम देने से पहले सौ बार नहीं कम से कम हजार बार सोचें।
सहभार - Sahara Samay Digital desk