- Home
- /
- दिल्ली-एनसीआर
- /
- कानून व्यवस्था ध्वस्त,...
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और मणिपुर सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य पुलिस ‘जांच करने में अक्षम’ है और इस पूर्वोत्तर राज्य में ‘कोई कानून-व्यवस्था नहीं बची है।’
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की, “जांच इतनी सुस्त क्यों है। संवैधानिक तंत्र इस हद तक टूट गया है कि एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकी। शायद यह सही है कि पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी, क्योंकि वह इलाके में प्रवेश नहीं कर सकती थी। राज्य में कानून- व्यवस्था की मशीनरी पूरी तरह से टूट गई थी।” पीठ ने मणिपुर पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने और पीड़ितों के बयान दर्ज करने में देरी पर भी सवाल उठाए।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 7 अगस्त को मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को तलब किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने उन पुलिस अधिकारियों से पूछताछ न करने पर सवाल उठाए, जिन्होंने कथित तौर पर वायरल वीडियो में दिखीं पीड़िताओं को सीआरपीसी की धारा 161 (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) के तहत दर्ज किए गए उनके बयानों के अनुसार भीड़ को सौंप दिया था। पीठ ने पूछा, “अगर कानून-व्यवस्था तंत्र उनकी रक्षा नहीं कर सकता तो लोगों का क्या होगा?”
जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्थिति सामान्य हो रही है और सीबीआई ने अपने द्वारा दर्ज की गई एफआईआर की जांच शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि अन्य मामले भी सीबीआई को ट्रांसफर किए जा सकते हैं।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “क्या सीबीआई 6,000 से अधिक एफआईआर की जांच कर सकती है? 4 मई से 27 जुलाई तक पुलिस प्रभारी क्या कर रहे थे? या तो वे कार्रवाई करने में असमर्थ थे या अनिच्छुक थे। हमें इसे सुलझाने के लिए कोई नया तंत्र स्थापित करना होगा। दर्ज 6,500 एफआईआर पर जांच शुरू करवाएं। हम इन सभी एफआईआर को सीबीआई पर नहीं डाल सकते।”
मणिपुर सरकार द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट से संकेत मिला है कि अब तक दर्ज 6,253 एफआईआर में केवल 252 गिरफ्तारियां हुई हैं।
शीर्ष अदालत ने राज्य पुलिस को हत्या, दुष्कर्म, आगजनी, लूटपाट, महिलाओं का अपमान, धार्मिक पूजास्थलों को नष्ट करने और गंभीर चोट पहुंचाने जैसे गंभीर अपराधों से जुड़ी एफआईआर की पहचान करने का निर्देश दिया।
साथ ही, इसने घटना की तारीख, जीरो एफआईआर दर्ज करने की तारीख, नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख, गवाहों के बयान दर्ज किए जाने की तारीख, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज किए जाने की तारीख और केस-वार ब्योरा मांगा, जिस आधार पर गिरफ्तारियां की गईं।
पीठ ने केंद्र सरकार से पुनर्वास उद्देश्यों के लिए प्रदान किए जाने वाले मुआवजे से संबंधित जानकारी भी देने को कहा।
इससे पहले दिन में, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वह मणिपुर में नग्न परेड और यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िताओं के बयान दर्ज करने से दूर रहे। शीर्ष अदालत ने आज दोपहर 2 बजे मामले की सुनवाई शुरू की। हालांकि, सुनवाई के अंत में पीठ ने सीबीआई को पीड़िता के बयान दर्ज करना जारी रखने की अनुमति दे दी।
सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ पूर्वोत्तर राज्य में जातीय झड़पों से संबंधित याचिकाओं के साथ-साथ परेशान करने वाली घटना के संबंध में दो आदिवासी महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संकेत दिया था कि वह हिंसा प्रभावित राज्य में पीड़ितों के बयान दर्ज करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और विषय विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर सकता है।
इसने लगभग 6000 प्राथमिकियों को विभाजित करने की मांग की है जो हिंसा प्रभावित राज्य में दर्ज की गई थीं। इसने केंद्र और राज्य से शून्य एफआईआर, की गई कार्रवाई, कानूनी सहायता की स्थिति, पीड़ितों और गवाहों के बयान दर्ज करने की स्थिति पर विवरण मांगे थे।
सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने एफआईआर दर्ज करने में 18 दिन से ज्यादा की देरी पर हैरानी जताई। पीठ ने एसजी मेहता से पूछा, “पुलिस को 4 मई को तुरंत एफआईआर दर्ज करने में क्या बाधा थी?”
नग्न अवस्था में घुमाए जाने की पीड़ा झेलने वाली महिलाओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जांच सीबीआई को सौंपेे जाने का विरोध किया है, क्योंकि पीडि़ताओं को केंद्रीय एजेंसी की निष्पक्षता पर संदेह है और लैंगिक हिंसा के मामलों की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) के गठन की मांग की है।
अदालत ने स्पष्ट किया है, “हमारे हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। अगर सरकार ने जो किया है, उससे हम संतुष्ट होंगे, तो हम हस्तक्षेप भी नहीं करेंगे।”
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने एसआईटी के गठन का विरोध करते हुए कहा है कि जांच में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होना एक “अतिवादी दृष्टिकोण” होगा।