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जानिए भारत में दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या पर क्या कहता है कानून
दिल्ली: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल के एक फैसले में कहा है कि विवाहित महिला को घर का काम करने के लिए कहा जाना उसके प्रति क्रूरता नहीं कही जा सकती। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई शादीशुदा महिला घर का काम करती है तो उसकी तुलना नौकरानी के काम से नहीं हो सकती है। महिला ने अर्जी दाखिल कर कहा था कि उसके साथ क्रूरता की जा रही है और उसके साथ नौकर की तरह व्यवहार हो रहा है। हाई कोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज कर दी और कहा कि अगर पारिवारिक मकसद से काम के लिए कहा जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि नौकर की तरह उसके साथ पेश आया जा रहा है। हाई कोर्ट के फैसले से साफ है कि इस तरह का व्यवहार क्रूरता नहीं है। आईपीसी की धारा-498 ए के तहत केस के लिए यह आरोप अपने आप में काफी नहीं है। क्रूरता ऐसी होनी चाहिए कि साथ रह पाना असंभव हो। बता दें कि आईपीसी की धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) के तहत पत्नी को प्रताड़ित करने के मामले में सजा का प्रावधान किया गया है।
क्या कहता है दहेज प्रताड़ना पर कानून?
1961 में बने दहेज निरोधक कानून में दहेज लेना और देना जुर्म बनाया गया है। हालांकि 1983 में आईपीसी में संशोधन कर धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) बनाई गई, जिसके तहत पत्नी को प्रताड़ित करने के मामले में सजा का प्रावधान किया गया। धारा-498 ए के तहत दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने पर पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। दहेज प्रताड़ना का मामला गैर जमानती है और यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल कैद का है।
दहेज हत्या पर क्या कहता है कानून: दहेज हत्या का मामला भी गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है और इस मामले में दोषी पाए जाने पर मुजरिम को कम के कम 7 साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। खास बात यह है कि शादी के 7 साल के दौरान अगर महिला की किसी भी संदिग्ध परिस्थिति में मौत होती है तो पति और अन्य ससुरालियों पर दहेज हत्या मामले में आईपीसी की धारा-304 बी के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है।
दहेज प्रताड़ना का केस कब नहीं माना जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को अपने एक अहम फैसले में कहा था कि 498 ए (दहेज प्रताड़ना) मामले में पति के रिश्तेदार के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसी तरह 14 जनवरी को कोर्ट ने कहा था कि बहू की जूलरी सुरक्षा के लिए अपनी सेफ कस्टडी में रखना कानून के तहत दहेज प्रताड़ना नहीं है। अलग रह रहे अपने भाई को कंट्रोल करने में विफल रहना और उसे सामंजस्य बनाने की सलाह देने में विफलता दहेज प्रताड़ना नहीं है।
कोर्ट ने झूठी शिकायत पर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर महिला ने झूठी शिकायत की हो तो उसे क्रूरता माना जाएगा। क्रूरता केस की परिस्थितियों पर निर्भर होती है। हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि क्रूरता साबित करना क्रूरता को आधार बनाकर तलाक के लिए याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता की जिम्मेदारी है। ये भी तयशुदा कानून है कि क्रूरता ऐसी होनी चाहिए कि साथ रह पाना असंभव हो। सिर्फ हताशा और निराशा तलाक का आधार नहीं हो सकती।