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दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने कहा है कि स्कूलों की तरह छुट्टी पर अदालतों के जाने को लेकर जनता की धारणा सही नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालतों की कड़ी मेहनत को प्रदर्शित करने के लिए एक सही सिस्टम होना चाहिए ताकि छवि बदल सके। न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने मंगलवार को अपने रिटायरमेंट भाषण में यह बात कही। न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित अपने विदाई समारोह में कहा कि पिछले काफी समय से लंबित मामलों के साथ अदालतों का अधिक बोझ एक ज्ञात तथ्य है, लेकिन देरी का कारण सिर्फ अदालतें नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अदालतों और वकीलों द्वारा 'अथक प्रयासों' के बावजूद मामले लंबित हैं। न्यायाधीश ने कहा, 'यह एक ज्ञात तथ्य है कि अदालतें लंबे समय से लंबित मामलों के बोझ तले दबी हैं। दुर्भाग्य से, एक आम आदमी की धारणा मामलों के निपटारे में देरी के लिए अदालत को दोष देना है। अदालतों के छुट्टियों पर जाने के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, इसकी तुलना स्कूल की छुट्टियों से की जाती है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि लोगों के बीच यह छवि सही नहीं है।' उन्होंने कहा, 'देरी के कारण कई हैं लेकिन वास्तव में उनके लिए अदालतें जिम्मेदार नहीं हैं। मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि अदालत को उपयुक्त तंत्र के माध्यम से इस कठिन और अच्छे काम को बताने के लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत है।'
जस्टिस जयंत नाथ ने अदालतों की आम लोगों के बीच बनी छवि को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि मुझे इस पर और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि छवि में कुछ बदलाव उपयोगी होगा। अपने विदाई संबोधन में न्यायमूर्ति नाथ ने वकीलों को अपने पेशे और मुवक्किल के प्रति 'ईमानदार' रहने की सलाह दी और याद दिलाया कि सफलता का कोई 'शॉर्टकट' नहीं है। इस दौरान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल ने कहा कि न्यायमूर्ति नाथ एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश हैं, जिन्हें उनकी प्रतिष्ठा और उत्कृष्टता के लिए याद किया जाएगा। न्यायमूर्ति नाथ अप्रैल 2013 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 18 मार्च 2015 को स्थायी न्यायाधीश बने थे।