- Home
- /
- दिल्ली-एनसीआर
- /
- जेएनयू ने 1990 में हुए...
दिल्ली-एनसीआर
जेएनयू ने 1990 में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर गोष्ठी की
Rani Sahu
19 Jan 2023 4:28 PM GMT
x
नई दिल्ली, (आईएएनएस)| अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय इकाई ने कश्मीरी हिंदुओं पर हुए नरसंहार को लेकर 19 जनवरी को श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम किए। इसमें कश्मीरी पंडितों पर हुए नृसंश नरसंहार की प्रदर्शनी लगाई गई। इस दुर्दांत घटना के साक्षी रहे परिवारों ने गोष्ठी के माध्यम से अपनी आप बीती सुनाई, और यहां 'कश्मीर फाइल्स' फिल्म की स्क्रीनिंग भी की गई।
इस घटना के गवाह रहे एक परिवार ने बताया, कश्मीरी पंडितों के पलायन का घाव 30 सालों बाद भी भरा नहीं है। जनवरी 1990 में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था। मस्जिदों से घोषणा की गई कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं और उन्हें कश्मीर छोड़ना होगा। हिंसा फैला रहे लोगों को पंडितों के घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया, ताकि उनका धर्म परिवर्तन किया जा सके, डराया-धमकाया जा सके।
घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरूआत 14 सितंबर 1989 से हुई। राजनीतिज्ञ और पेशे से वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटनाक्रम यहीं नहीं रुका। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में हालात बदतर हो गए।
इसके अलावा यहां जेएनयू में एक पैनल डिस्कशन का भी अयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में आयुषी केतकर, सहायक प्रोफेसर, जेएनयू उपस्थित रहीं। उन्होंने कश्मीरी पंडितों पर हुए नरसंहार को लेकर कट्टरपंथी विचारधारे वाले लोगों को आक्रोश दिखाया। उनके अलावा कमल हाक जो वर्तमान में पानून कश्मीर के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, ने बताया कि कैसे उन्हें अपनी ही मातृभूमि और जन्मभूमि से निकाल दिया गया। विथल चौधरी जी जो वर्तमान में यूथ फॉर पानून कश्मीर के सेक्रेट्री हैं, ने बताया कि कैसे उनके कश्मीरी पंडित भाइयों को मौत के घाट उतार दिया गया।
गुरुवार को हुए इस कार्यक्रम के अंतिम प्रवक्ता अमित रैना, जो रूट्स इन कश्मीर के प्रवक्ता हैं, ने बताया कि कैसे वहां से कश्मीरी पंडितों को सात बार अपने ही घर से निष्कासित किया गया। उन्होंने बताया की कैसे कश्मीर में पंडितों पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो। इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।
इनके अलावा फिल्म 'द कश्मीर फाइल' की स्क्रीनिंग करवाई गई और रात को 'निष्कासन का दर्द' गोष्ठी की गई, जिसमें उस समय निष्कासन झेलने वाले आमंत्रित जन ने आकर अपने दर्द और पीड़ा की कहानी जेएनयू के छात्रों के साथ साझा की।
मौके पर विद्यार्थी परिषद जेएनयू के अध्यक्ष रोहित कुमार ने कहा, इनके दर्द और आंसू को शब्दों में बयां करना बहुत ही मुश्किल है। इनके ऊपर क्या बीता है, इस बात का अंदाजा लगाना तकरीबन नामुमकिन है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हरेक कार्यकर्ता इतिहास में भी कश्मीरी पंडितों के साथ खड़ा था, और आने वाले वक्त में भी उनके साथ ही खड़ा रहेगा।
--आईएएनएस
Tagsराज्यवारTaaza SamacharBreaking NewsRelationship with the publicRelationship with the public NewsLatest newsNews webdeskToday's big newsToday's important newsHindi newsBig newsCountry-world newsState wise newsAaj Ka newsnew newsdaily newsIndia newsseries of newsnews of country and abroad
Rani Sahu
Next Story