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भारत में शिशुओं में रेटिनोपैथी आफ प्रीमैच्योरिटी का खतरा सबसे अधिक
दिल्ली एनसीआर न्यूज़: समय से पहले जन्म लेने शिशुओं में रेटिनोपैथी आफ प्रीमैच्योरिटी (आरओपी) का खतरा अधिक रहता है। जन्म के वक्त शिशु का वजन कम होने पर रेटिना प्रभावित होती। शिशु के दृष्टिहीन होने की आशंका होती है। नोएडा आइकेयर अस्पताल के डॉ. सौरभ चौधरी का कहना है कि आरओपी नवजात शिशुओं के आंख के पर्दों को प्रभावित करने वाली एक विशेष बीमारी है। इस बीमारी में आंख के पर्दों की खून की नलियां सिकुड़ जाती हैं। हर साल पांच हजार बच्चे पूरी तरह से अंधत्व का शिकार हो जाते है। जिनको नेत्रहीनता से बचाने के उपाय किए जा सकते है। अगर समय से पहले पैदा होनेवाले नवजात शिशुओं की आंखों की जांच चार से छह सप्ताह के भीतर कर ली जाए तो इससे आरओपी के खतरे का आसानी से पता चल सकता है। लेकिन भारत में आरओपी प्रशिक्षण प्राप्त आप्थालमोलाजिस्ट और शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी एक बहुत बड़ी चुनौती है।
अभिभावकों, स्वास्थ्यकर्मियों और काउंसलर में आरओपी के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। भारत में एक हजार में से एक बच्चा दृष्टिहीन पैदा होता है। एक अनुमान के मुताबिक, नवजात शिशुओं में होनेवाले 20 प्रतिशत अंधत्व के मामलों के लिए आरओपी जिम्मेदार है। जन्म लेने वाले हर पांचवें शिशु की दृष्टिहीनता के लिए आरओपी जिम्मेदार है। डा. प्रियंका ने बताया कि समय रहते इलाज होने से बीमारी का इलाज संभव है। आरओपी के लिए समय से पहले जन्म लेना, जन्म के समय वजन का सामान्य से कम होना, सांस लेने में तकलीफ, एक से अधिक बार गर्भधारण है।