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भारत-चीन के बीच तीसरे साल में सीमा विवाद, कितनी कामयाब 15 दौर की वार्ता, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ
Renuka Sahu
29 April 2022 1:48 AM GMT
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फाइल फोटो
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा गतिरोध अब तीसरे साल में प्रवेश करने जा रहा है लेकिन इस दौरान विवादित क्षेत्र को लेकर पूर्ण रूप से कोई समझौता नहीं हो सका है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा गतिरोध (India and China conflict) अब तीसरे साल में प्रवेश करने जा रहा है लेकिन इस दौरान विवादित क्षेत्र को लेकर पूर्ण रूप से कोई समझौता नहीं हो सका है. हालांकि दोनों पक्षों की ओर से कई दौर की चली लंबी बातचीत के दौरान लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (Line of Actual Control) पर कुछ विवादित क्षेत्रों से प्रतिद्वंद्वी सैनिकों को पीछे हटाने में आंशिक सफलता जरूर मिली है. दोनों देशों के बीच गतिरोध (bilateral relationship) बने होने के बीच विवाद को खत्म करने को लेकर बातचीत का दौर जारी है.
वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक एलएसी गतिरोध की निगरानी करने वाले अधिकारियों ने अपनी पहचान जाहिर नहीं करने की बात करते हुए कहा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर हिंसक झड़प होने और उसके बाद पिछले दो सालों के दौरान चीन के साथ बातचीत ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर तनाव को कम करने में मदद की है और भविष्य की बैठकों में कुछ सकारात्मक परिणामों की उम्मीद भी रखती है.
'समाधान मिलने तक बातचीत जारी रहेगी'
अधिकारी ने कहा. "आप यह कह सकते हैं कि समझौतों को लेकर प्रगति धीमी रही है. लेकिन ऐसा नहीं है कि गतिरोध को हल करने में कोई प्रगति नहीं हुई है. हम समाधान मिलने तक चीनियों से बात करना जारी रखेंगे." दोनों देशों के बीच मई 2020 की शुरुआत से बॉर्डर लॉक्ड कर दिया गया है, और गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से सैनिकों के पीछे हटाए जाने के बावजूद, दोनों सेनाओं से अभी भी करीब 60,000 सैनिक मौजूद हैं और लद्दाख क्षेत्र में उन्नत हथियारों के साथ तैनात हैं.
भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने सीमा पर तनाव को शांत करने के लिए अब तक 15 दौर की सैन्य वार्ता की है, लेकिन कोंगका ला के पास पेट्रोल प्वाइंट-15, दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में देपसांग बुलगे और डेमचोक सेक्टर में चारडिंग नाला जंक्शन (सीएनजे) में समस्याएं बरकरार हैं, अभी इसको लेकर बातचीत जारी है.
मामले से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने कहा, "यह मान लेना अनुचित है कि हर दौर की बातचीत का एक ठोस परिणाम निकलेगा. महत्वपूर्ण बात यह है कि हम पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए अभी भी सैन्य और राजनयिक स्तर पर बात कर रहे हैं."
'हमें जो हासिल करना था वो कर लिया'
पिछले हफ्ते, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी सैनिकों का पीछे हटने और चीन के साथ सीमा संघर्ष को कम करना आगे का रास्ता है, और गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए चल रही बातचीत तब भी जारी रहेगी जब भारतीय सैनिक जमीन पर डटे रहेंगे.
लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (रिटायर), एक सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और लेह स्थित मुख्यालय 14 कोर के पूर्व कमांडर ने कहा, "जहां तक बातचीत की बात है, भारतीय सेना ने वह हासिल कर लिया है जो उसे करना था. हम वर्तमान स्थिति में तब तक बने रह सकते हैं जब तक कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक मेल-मिलाप न हो जाए. पीएलए लद्दाख सेक्टर में एक सौम्य सीमा (benign border) बनाना चाहता है और उसने अपने फायदे के लिए ऐसा किया है. लद्दाख में विवादित क्षेत्रों को तथाकथित बफर जोन बनाकर आराम दिया गया है."
राकेश शर्मा ने कहा कि यह चीन के लिए उपयुक्त है कि वह एलएसी पर अपनी सेना को हमेशा के लिए बनाए रखते हुए भारत पर भू-रणनीतिक दबाव बनाए और सीमा पार से बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण पीएलए के वहां रहने के इरादे का संकेत भी देता है. उन्होंने कहा, "दोनों पक्षों के बीच विश्वास की कमी है जिसे आसानी से दूर नहीं किया जा सकता है और सावधानी बरतने की आवश्यकता है. हम अपने गार्ड को कम नहीं होने दे सकते."
पिछले दो सालों में, भारत और चीन ने सीमा के दोनों ओर सैन्य गतिविधियों में वृद्धि, आधुनिक हथियारों की तैनाती, बुनियादी ढांचे के विकास और उनकी सेनाओं द्वारा युद्धाभ्यास की एक सीरीज के साथ एलएसी पर अपना रुख सख्त कर रखा है. सैन्य अभियानों के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (रिटायर) ने कहा कि गतिरोध जितना लंबा चलेगा, चीन को फायदा होगा.
'हमने सामरिक श्रेष्ठता दिखाई'
भाटिया ने कहा, "चीनी एलएसी बन जाता है तो वास्तव में, इस पर उनका प्रशासनिक नियंत्रण हो जाएगा. हालांकि, हमने रणनीतिक संकल्प, परिचालन और सामरिक श्रेष्ठता दिखाई है और गतिरोध शुरू होने के बाद से पीएलए की कार्रवाइयों के लिए तेजी से और आनुपातिक निर्माण के साथ प्रतिक्रिया भी दी है."
सकारात्मक पक्ष को लेकर उन्होंने कहा, "मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में विवादित क्षेत्रों में कोई वृद्धि नहीं हुई. हमें राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य बातचीत के जरिए लद्दाख सेक्टर की समस्याओं का समाधान करना ही होगा."
15 जून, 2020 को गलवान घाटी में उनके सैनिकों के क्रूर संघर्ष में शामिल होने के बाद भी भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच विश्वास की खासी कमी बनी हुई है, और एक-दूसरे में विश्वास की कमी ने पीछे हटने की प्रक्रिया में रुकावट डाली है.
भाटिया ने कहा कि गलवान घाटी में भारत की प्रतिक्रिया मजबूत है और यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी कोई घटना दोबारा न हो. यह पांच दशकों से अधिक समय में एलएसी के साथ भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पहली बड़ी हिंसक झड़प थी, और इसने द्विपक्षीय संबंधों को बेहद खराब कर दिया. इस संघर्ष 20 भारतीय सैनिक और बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए.
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