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मानव और कृत्रिम बु‌द्धिमत्ता: मानव के 'मन' व मस्तिष्क को माना जाता है चल प्रकृति और अदृश्य ईश्वर के समकक्ष

Gulabi Jagat
5 April 2024 10:18 AM GMT
मानव और कृत्रिम बु‌द्धिमत्ता: मानव के मन व मस्तिष्क को माना जाता है चल प्रकृति और अदृश्य ईश्वर के समकक्ष
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नई दिल्ली: मानव के 'मन' व मस्तिष्क को चल प्रकृति और अदृश्य ईश्वर के समकक्ष माना जाता है। क्या, एक मशीन के द्वारा इसे समझा जाना संभव हैं? क्या एक मशीन (कृत्रिम बुद्धधि) के द्वारा मानव के मन व मस्तिष्क को प्रति स्थापित किया जा सकता हैं?
क्या आगामी शताब्दी में कृत्रिम बुद्धि वाली स्वतः संचालित मशीनों के समाज का युग होगा ।
जैसे-जैसे 'कृत्रिम बु‌द्धि' से संचालित मानव सदृश मशीनों संफलता पर हो रहे अनुसंधानों में सफलता का ग्राफ बढ़ रहा हैं वैसे-वैसे स्वयं मानव के अस्तित्व / क्षमता / विकासीय संभावनाओं पर रहा है। पर प्रश्नचिह्न / संदेह का दायरा बढ़ रहा हैं।
यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण हैं कि यदि मशीन की प्रोग्रामिंग और अन्य तकनीकी व्यवस्थाएँ उपयुक्त हैं तो बुदिधमत्ता से सुसज्जित ये मशीने किसी कार्य स्थल से मानव को प्रतिस्थापित करने का एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। विचारणीय है कि उपर्युक्त विचार के आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण इन मशीनों का सबसे पहला प्रभाव कार्य स्थलों पर दिखाई देगा। यहाँ यह कहना समीचीन होगा कि कार्यस्थल पर प्रभाव का सीधा-सीधा अर्थ हैं मानव के सामाजिक स्वरूप पर प्रभाव । समाज पर कृत्रिम बुद्धिमता के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के तहत समझा जा सकता हैं:
① कार्यस्थलों पर मशीनों के विस्तार से वहाँ मानव अस्तित्व व संवेदनाओं का अभाव या पूर्णतया विलोपन हो जाना।
② बहुसंख्या में मानव आबादी बेरोजगारी की स्थिति की चपेट में आएगी।
3 समाज में वृहत स्तर पर मानव समुदाय के लोगों की अनुत्पादक कार्यों में संलग्न होने की संभावना बढ़ जाएगी ।
4. कार्यस्थलों की उत्पादकता में विविधता का अभाव हो जाएगा।
5 एक समाज को जीवंत बनाने वाली संस्कृति का ह्रास होगा।
मशीनें (कृत्रिम बुद्धिमता) की कार्यप्रणाली और चिंतन एक 'प्रोग्राम' की व्यवस्था के तहत चलता है। जिसमें रचनात्मकता और नवाचार का पूर्णतया अभाव होता हैं। ऐसे में कहीं न कहीं एक स्थिति भी उत्पन्न होती हैं जहाँ मानव और कृत्रिम बुद्धिमत्ता दोनों की विकास करने या होने की स्थितियाँ अवरुद्ध हो जाएगी। यहाँ यह समझना भी महत्वपूर्ण होगा कि अगर मशीन की प्रोग्रामिंग में किसी भी स्तर पर, किसी भी पक्ष में तकनीकी खराबी आने से संपूर्ण मानव सभ्यता के अस्तित्व के खतरे में आने की संभावना भी रहेगी । अतः मानवीय हित में सुरक्षा और संरक्षा के मानक पूर्ण रूप से सुनिश्चित करने के बाद ही हमें कृत्रिम बुद्धिमता के क्षेत्र में आगे बढ़ने की दरकार होगी ।
संजय सोंधी ( उप सचिव, भूमि एवं भवन विभाग, दिल्ली सरकार)
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