दिल्ली-एनसीआर

लॉकडाउन की आहट से घबराए होटल व्यवसायी, दिल्ली में घटी मेहमानों की संख्या, दो साल में 200 गेस्ट हाउस हुए बंद

Renuka Sahu
7 Jan 2022 2:23 AM GMT
लॉकडाउन की आहट से घबराए होटल व्यवसायी, दिल्ली में घटी मेहमानों की संख्या, दो साल में 200 गेस्ट हाउस हुए बंद
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फाइल फोटो 

राजधानी दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लागू है, जिसके चलते छुट्टी वाले दिन आसपास के राज्यों से दिल्ली आने वाले सैलानी होटलों में की गई बुकिंग रद्द कर रहे हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजधानी दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लागू है, जिसके चलते छुट्टी वाले दिन आसपास के राज्यों से दिल्ली आने वाले सैलानी होटलों में की गई बुकिंग रद्द कर रहे हैं। साथ ही लगातार बढ़ती पाबंदियों से व्यवसायियों और आने वाले लोगों को लॉकडाउन का भी डर सता रहा है। इससे वे अपनी यात्रा तय योजना से पहले खत्म कर वापस अपने गृह जनपद लौट रहे हैं। इसे लेकर जब होटल संचालकों से बात की तो उन्होंने बताया कि वे ओमिक्रॉन को लेकर सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन पाबंदियों से लोग कम दिनों के लिए आ रहे हैं। अमित कसाना की रिपोर्ट...।

दो वर्ष में 200 गेस्ट हाउस बंद
दिल्ली होटल एंड रेस्टोरेंट ऑनर एसोसिएशन के चेयरमैन संदीप खंडेलवाल के मुताबिक, राजधानी में बीते दो वर्ष में करीब 200 गेस्ट हाउस बंद हो चुके हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन की गलत नीतियों के चलते ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि पर्यटन राजधानी समेत देशभर में राजस्व का बड़ा स्रोत हैं, लेकिन पिछले वर्ष लॉकडाउन में होटल बंद रहे।
होटल मालिकों को सरकार की ओर से सालाना लाइसेंस फीस समेत बिजली, पानी बिल आदि में कोई छूट नहीं दी गई। इसके अलावा होटल कर्मचारियों का वेतन, रखरखाव में खर्च होने वाली रकम ने कारोबार करने वालों की कमर तोड़ दी। होटल संचालकों की लगातार आमदनी कम हुई है और खर्चे बढ़े हैं। ओमिक्रॉन के चलते फिर से पाबंदियां लगा दी गई हैं। ऐसे में होटलों में आने वालों की संख्या कम हो रही हैं। अगर ऐसा लगातार जारी रहा तो कई होटल बंद हो जाएंगे।
लगातार बोझ बढ़ रहा
होटल संचालकों के मुताबिक होटल खाली पड़े हैं। स्वास्थ्य, व्यवसाय आदि बेहद जरूरी कारण वाले लोग ही यहां आ रहे हैं। उनकी भी संख्या बेहद सीमित है। इससे नुकसान हो रहा है। रोजमर्रा का खर्च, कर्मचारियों का वेतन निकालने की चिंता सताने लगी है। नए वर्ष पर पहले नाइट कर्फ्यू, अब वीकेंड कर्फ्यू और आगे लॉकडाउन का डर सता रहा है। अगर पाबंदियां और बढ़ीं तो होटल बंद करने पड़ेंगे, क्योंकि लाइसेंस फीस, बिजली, पानी, साफ-सफाई आदि बुनियादी खर्च के लिए पैसे नहीं हैं, जिससे लगातार आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
'प्रतिबंध कम होने चाहिए'
दिल्ली होटल महासंघ के सचिव सौरभ छाबड़ा के मुताबिक, वीकेंड कर्फ्यू के बाद मेहमानों की संख्या में कमी आई है। साथ ही आने वाले लोग कम दिनों के लिए यात्रा कर रहे हैं। जो व्यवसायी या दूसरे लोग दिल्ली आ रहे हैं वे बाजारों में सम-विषम नियम या अन्य प्रतिबंधों के चलते जल्दी लौट रहे हैं।
बाजार बंद होने या सीमित संख्या तय होने के चलते लोगों का काम नहीं हो पा रहा है। इससे होटल संचालकों समेत अन्य लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उनका कहना है कि होटलों में सरकार द्वारा तय दिशा-निर्देशों का पालन हो रहा है। आने वाले लोगों को भी दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा घोषित नियमों के बारे में जानकारी दी जा रही है। ओमिक्रॉन संक्रमण से बचाव के पर्याप्त उपाए अपनाए गए हैं।
2500 के करीब होटल
दिल्ली के पहाड़गंज, करोलबाग, राजेंद्र नगर, पटेल नगर, आजादपुर, महिपालपुर सहित कई दूसरे इलाकों में छोटे-बड़े गेस्ट हाउस और होटल मौजूद हैं। इनकी संख्या करीब ढाई हजार है। अकेले पहाड़गंज में 800 से अधिक गेस्ट हाउस और होटल हैं। करोलबाग में 275, महिपालपुर में 150, दक्षिणी दिल्ली में 150 और बाकी होटल दूसरे इलाकों में संचालित होते हैं।
ये एहतियात बरते जा रहे
-जगह-जगह स्पर्श रहित हैंड सैनेटाइजर, प्रवेश गेट, स्वागत डेस्क, लिफ्ट का सैनेटाइजेशन
-प्रत्येक दिन साफ-सफाई के अलावा हर सप्ताह पूरे होटल को सैनेटाइज किया जा रहा है
-आने वालों की स्वास्थ्य जांच, प्रत्येक व्यक्ति के तापमान की जांच। उसका रिकॉर्ड रखा जा रहा
-आने वाले लोगों को डीडीएमए की ओर से जारी दिशा-निर्देशों की जानकारी दी जा रही है।
-कर्मचारियों की भी कोरोना जांच की जा रही है।
बुकिंग नहीं मिल रही
चालक कमलजीत के मुताबिक, वीकेंड कर्फ्यू लग चुका है। अगर ओमिक्रॉन की संक्रमण दर और बढ़ी तो लॉकडाउन का खतरा है। ऐसे में होटल से मिलने वाले सवारियों की बुकिंग नहीं मिल रही है। पहले तो होटल संचालक खुद फोन कर मेहमानों को घुमाने के लिए बुकिंग करते थे लेकिन अब पूछने पर भी बुकिंग नहीं मिल रही है। होटलों में बहुत कम लोग हैं।
दिनभर बैठे रहने पर एक या दो फेरे लग पाते हैं। जिससे तेल, सीएनजी और दिनभर का खर्च निकालना मुश्किल है। ऐसे में फिर पिछले साल जैसे हालत बनते नजर आ रहे हैं। कैब में दो से अधिक सवारी बैठाकर चलाने की अनुमति नहीं है। लोग कैब की जगह मेट्रो का रुख कर रहे हैं, क्योंकि कैब उन्हें मंहगी पड़ती है।
'पाबंदियां और बढ़ीं तो क्या करेंगे'
रखरखाव का काम करने वाले शकील के मुताबिक पिछले साल लॉकडाउन में आर्थिक रूप से काफी परेशानी हुई थी। किसी तरह खुद को संभाला और फिर काम शुरू किया। फिर धीरे-धीरे हालत लॉकडाउन की तरफ बढ़ रहे हैं। पाबंदियों के साथ ग्राहकों की संख्या कम हो रही है। संक्रमण का खतरा बना हुआ है। इस बात का डर है कि पाबंदियां और बढ़ गईं तो क्या होगा? काम भी पहले से कम हो गया है, जिसके आगे और कम होने की आशंका बनी हुई है।
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