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Raipur रायपुर: कहते हैं जो भारत आया वो यहीं का होकर रह गया। भारत की संस्कृति ने किसे प्रभावित नहीं किया है। इस देश के रंग में सभी रंग जाते हैं। सन् 2016 की बात है कनाडा से एक विदेशी काम के सिलसिले में भारत आता है और यहाँ की मिट्टी की खुशबू उसके अजनबीपन को अपनत्व में बदल देती है। भारत को जानने की उसकी इच्छा दिन पर दिन बलवती होती जाती है और वह फिर से सन् 2018 में अपने बेटे डेगन के साथ भारत घूमने आता है. ये विदेशी हैं टॉड टर्टल जो कनाडा के मशहूर ब्लॉगर और लेखक हैं।
टॉड को खाना बनाने का बहुत शौक है. उन्हें अलग-अलग देशों के व्यंजनों को चखना भी भाता है. भारत आकर वे भारतीय संस्कृति से प्रभावित तो थे ही उन्होंने भारतीय रसोई को भी करीब से जानने का प्रयास किया. भारतीय व्यंजनों की किताब उनके हाथ आई और यहीं से भारतीय भोजन को बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. उस पुस्तक के पीछे लिखे भारतीय मसालों के नाम हिंदी में पढ़कर हिंदी भाषा के प्रति उनकी रूचि जाग्रत हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे हिंदी भाषा सीखेंगे. सप्ताहांत की छुट्टियों में उन्होंने कनाडा में ही हिंदी सिखने की शुरुआत की।
अपनी पहली भारत यात्रा में टॉड ने दिल्ली, बैंगलोर, बनारस, जयपुर तथा मुंबई की यात्रा की| वो कहते हैं- “ मैंने बैंगलोर का ट्रेफ़िक देखा, जयपुर में महलों की खूबसूरती, मुंबई की लोकल ट्रेन तो बनारस की आध्यात्मिकता. सच कहूँ तो भारत एक देश नहीं कई देशों का समूह जैसा लगता है. इतनी विभिन्नता मैंने किसी देश में नहीं देखी.” भारत की पहली यात्रा में ही न जाने कितने दोस्ती के हाथ उनकी ओर बढ़े और आज टॉड के ढेर से भारतीय मित्र हैं.टॉड चाहते थे कि उनका बेटा भी इस अनोखे देश की यात्रा करे इसलिए अपनी अगली यात्रा में वे अपने बेटे ‘डेगन’ को साथ लेकर आये. यहाँ बताना बहुत आवश्यक होगा कि टॉड की जीवनसंगिनी ‘सेज’ नार्थ अमेरिका की मशहूर स्टोरीटेलर हैं तथा बेटा भी चित्रकार है. टॉड का पूरा परिवार कला को समर्पित है.
टॉड हिंदी तो सीख रहे थे पर उतनी गंभीरता से नहीं. वे छोटे-छोटे शब्द तथा वाक्य बोल सकते थे. एक बार टॉड साईकिल यात्रा पर क्यूबेक गए. उस समय वे थोड़ी बहुत फ्रेंच बोल सकते थे. वहाँ के लोगों से बात करके अचानक उनके मन में यह विचार कौंधा कि यदि मैं हिंदी भाषा अच्छे से बोल और समझ सकता हूँ तो भारत के गाँवों में भी साईकिल यात्रा कर सकता हूँ. हिंदी समझने और बोलने के कारण मैं भारत के ग्रामीण परिवेश को और करीब से महसूस कर सकता हूँ. इस विचार ने उनकी हिंदी सिखने की यात्रा को गति प्रदान की.
सन् 2019 में वे भारत आए और दिल्ली से राजस्थान के झुंझुनू तक साईकिल यात्रा की| यात्रा के बीच में पड़ने वाले गाँवों को जाना वहाँ के लोगों से बातचीत की| टॉड के अनुसार- “ये मेरे जीवन के सुखद अनुभवों में से एक था लोग मुझे अपने घर बुलाते थे, मेरे हिंदी के बारें में सवाल पूछते थे. कुछ मेरे परिवार के बारें में जानना चाहते थे. वहीं कुछ मदद का प्रस्ताव रखते और कुछ मुझे सुरक्षा संबंधी सलाह भी देते. यात्रा बहुत रोमांचक थी और भारत के लोगों का प्यार और सहयोग मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा.” इसी प्यार के कारण टॉड बार-बार भारत आना चाहते हैं।
टॉड से मेरी पहचान लेखन संबंधी एक परियोजना के कारण हुई. हिंदी शिक्षण से भी मैं वर्षों से जुड़ी हुई हूँ. आज टॉड मेरे छात्र हैं. मेरे बहुत से विदेशी छात्र रहें जो हिंदी सीखना चाहते थे पर टॉड ने जिस प्रकार हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति से प्रेम किया वैसा ज़ज्बा किसी में नहीं था. टॉड मुझसे मिलने छत्तीसगढ़ भी आये थे और यहाँ की सादगी ने उनका भी मन मोह लिया. आमतौर पर विदेशी भारत आते हैं, भारत की सुंदरता के उनके वर्णन में शिकायतें भी खूब होती हैं परन्तु टॉड कनाडा जाकर यहाँ की संस्कृति, यहाँ के अपनेपन की कहानी लिखते हैं. वे कहते हैं कि सभी देशों में कुछ अच्छी कुछ बुरी बातें होती हैं. वे अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लिखते हैं और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं. हम सबकी शुभकामना है कि इस हिंदी बोलने वाले इस विदेशी को भारत से यूँ ही सदा प्यार और सम्मान मिलता रहे।
डॉ. मिताली खोडियार
रायपुर, छत्तीसगढ़
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Gulabi Jagat
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