दिल्ली-एनसीआर

विशेषज्ञों ने दी चेतावनी, मौसम ने बदला रंग...हवा-पानी सब बदरंग

Admin4
30 July 2022 9:24 AM GMT
विशेषज्ञों ने दी चेतावनी, मौसम ने बदला रंग...हवा-पानी सब बदरंग
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news क्रेडिट;amarujala

मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र जेनामणि का कहना है कि मौसमी परिस्थितियों में हुए बदलाव का असर दिखने लगा है। मौसमी दशाएं बदलते ही हवा-पानी सब बदरंग होने लगा है।

केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को संसद में बयान दिया है कि जलवायु परिवर्तन का असर दिल्ली-एनसीआर के मौसम पर पड़ रहा है। इस मसले पर मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र जेनामणि का कहना है कि मौसमी परिस्थितियों में हुए बदलाव का असर दिखने लगा है। मौसमी दशाएं बदलते ही हवा-पानी सब बदरंग होने लगा है।

2021 में 1169.7 मिमी बारिश हुई, जो 1901 के बाद से तीसरी बार सबसे ज्यादा रही। मानसून सीजन के दौरान दिल्ली में आमतौर पर 653.6 मिमी बारिश रिकॉर्ड होती है, जबकि 2020 में 576.5 मिमी बारिश हुई थी। जेनामणि बताते हैं कि मौसम विभाग दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ को एक ही क्षेत्र में रखता है। 2022 में पूरे क्षेत्र में 33 दिन लू वाले रिकॉर्ड किए गए। इसमें से अकेले दिल्ली के सफदरजंग मानक केंद्र पर यह आंकड़ा 10 दिन का रहा। करीब एक तिहाई हिस्सा दिल्ली में ही रहा। यह स्थिति जलवायु परिवर्तन की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन इसे स्थापित करने के लिए विभाग को एक लंबे अध्ययन की जरूरत है। इसके आधार पर ही सटीक नतीजे निकल सकते हैं।

पश्चिमी विक्षोभ निष्क्रिय होने से इस बार पड़ी अधिक गर्मी

मौसम को लेकर एक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि प्री-मानसून सीजन में लंबे समय तक दिल्ली-एनसीआर में दर्ज की गई लू बारिश न होने की वजह से थी। पश्चिमी विक्षोभ निष्क्रिय रहने की वजह से मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैल, मई और जून में भीषण लू चली। वहीं, मौसम विभाग ने स्वास्थ्य विभाग समेत विभिन्न विभागों के साथ मिलकर कार्ययोजना तैयार की थी, जिसके तहत लोगों को मौसमी हलचल व उनके प्रभाव से बचने के लिए सूचित किया जाता है।

इस माह बारिश का कोटा पूरा

जुलाई में ही केवल कुछ दिनों की बारिश ने दिल्ली का बारिश का कोटा पूरा कर दिया है। अभी तक करीब 230 मिमी से बारिश दर्ज हो चुकी है। इसमें से 30 जून और एक जुलाई की रात के बीच 117 मिमी से अधिक बारिश दर्ज हुई थी। इसके कुछ दिनों बाद एक दिन में 50 मिमी से अधिक बारिश हुई थी। वहीं, अन्य दिनों में कुछ देर के लिए बारिश की फुहारें गिरीं। जुलाई में सामान्य तौर पर 210.6 मिमी बारिश रिकॉर्ड की जाती है।

नए सिरे से बनानी चाहिए बोर्ड को योजना

स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रो. एस साहा का कहना है कि शहरीकरण के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक बदलाव भी जरूरी है। वाहनों से प्रदूषण और तापमान की बढ़ोतरी होती है। बेहतर बुनियादी सुविधाएं और नौकरी की तलाश में लोग दिल्ली-एनसीआर के शहरों में बसे। दूसरे राज्यों से आने वालों की जरूरतें पूरी करने के लिए भवनों का खूब निर्माण हुआ और वाहनों की संख्या बढ़ी। इस हालात से बचने के लिए 1985 में स्थापित एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की परिकल्पना को नए सिरे से अमली जामा पहनाने की जरूरत है।

कूल रूफ अपनाने से सुधर सकते हैं हालात

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ डॉ. दिलीप मावलंकर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और हीट आइलैंड मुख्य वजह है। पेड़ों की संख्या में कमी और वाहनों व एसी के कारण तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। शहरी दिल्ली और 50-60 किलोमीटर दूर हरियाणा के निकटवर्ती गांव में तापमान में रात के वक्त तापमान में 20 डिग्री तक का अंतर देखा गया था। ईंधन के जलने से भी तापमान बढ़ने की आशंका बनी रहती है। गुजरात में कुछ भवनों में कूल रूफ (सफेद) रंग की चादर का इस्तेमाल किया जाता है। रिफ्लेटिव रूफ होने से भवनों पर पड़ने वाली किरणें परावर्तित हो जाती हैं। इससे कमरों के अंदर तापमान में बढ़ोतरी नहीं होती है।

समस्या है तो समाधान भी...

जलवायु परिवर्तन के कारण दिल्ली-एनसीआर में चरम मौसमी परिस्थितियां दिख रही हैं। इमारतों के वातानुकूलन और सड़कों से निकलने वाले ताप से भी हीट आइलैंड बन रहा है। हरित क्षेत्र और दिल्ली में जलाशयों की कमी से भी तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्या को कम करने के लिए नए भवनों को ग्रीन बिल्डिंग बनाया जाना चाहिए। इससे एसी के इस्तेमाल की कमी भी आएगी और रोशनी की भी कमी नहीं रहेगी। ग्रीन बिल्डिंग की तर्ज पर भवनों को विकसित करना चाहिए। दिल्ली के लिए भी हीट एक्शन प्लान बनाया जाना चाहिए। - अनुमिता राय चौधरी, कार्यकारी निदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट (सीएसई)

चंद किलोमीटर पर तापमान में फर्क

हीट आइलैंड इफेक्ट के लिए जलवायु परिवर्तन का एक हिस्सा हो सकता है। स्थानीय जलवायु और भौगोलिक कारणों से एक ही क्षेत्र में तापमान में 4-5 डिग्री सेल्सियस तक का फर्क रहता है। विभिन्न स्थानों पर चलने वाली गतिविधियों के कारण तापमान प्रभावित होता है। एक से दूसरी जगह के तापमान में फर्क हो सकता है। क्षेत्र के विकास, वाहनों की बड़ी संख्या के कारण जीवाश्म ईंधनों के जलने और ट्रैफिक सिग्नल प्वाइंट पर वाहनों के जाम से तापमान बढ़ता है। भवनों में सूर्य की किरणें अवशोषित होने के कारण भी तापमान में काफी बढ़ोतरी हो रही है। बचाव के लिए जरूरी है कि जीवाश्म ईंधन के बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों (ग्रीन फ्यूल से चलने वाले) को अपनाएं। - प्रो. गुफरान बेग संस्थापक परियोजना निदेशक, सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग (सफर)

अत्यधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन जलने से बढ़ रहा तापमान

टाटा एनर्जी एवं रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) में जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ प्रो. विनय सिन्हा के मुताबिक, तापमान में बढ़ोतरी तीन स्तर पर हो रही है। हीट आइलैंड के कारण तापमान में सर्वाधिक बढ़ोतरी हो रही है। शहर के भीतर भी अलग-अलग जगहों के तापमान में 3-4 डिग्री सेल्सियस तक का फर्क है। भवनों में इस्तेमाल होने वाली कंकरीट सूर्य की गर्मी को शोषित कर लेती है। इससे गर्मी का असर बढ़ जाता है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से भी तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। रिहायशी क्षेत्रों में इमारतों के बीच हवा के लिए पर्याप्त जगह न मिलने के कारण हवा फंसी रह जाती है। चांदनी चौक में पराठे वाली गली में ज्यादा गर्मी महसूस होती है, क्योंकि हवा के बहने के लिए काफी कम जगह है। इसके विपरीत चाणक्यपुरी में हरित क्षेत्र होने की वजह से तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है।

वाहनों से होने वाले प्रदूषण के कारण एयरोसेल का जलवायु परिवर्तन पर असर पड़ता है। सबसे निचले स्तर (स्किन लेवल) पर सूर्य की किरणों को परावर्तित (रिफ्लेक्ट) करने के विकल्प का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ग्रीन बिल्डिंग से न केवल तापमान में बढ़ोतरी को रोक सकेंगे, बल्कि एयर कंडीशनर के इस्तेमाल में भी कमी लाई जा सकती है। वाहनों से होने वाले प्रदूषण से वातावरण में गर्मी बढ़ने का भी जलवायु पर असर पड़ता है।



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