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दिल्ली का प्रदूषित जल अब यमुना में नहीं गिरेगा, जानिए कैसे होगा ये सब
वर्तमान में भले ही यमुना का सर्वाधिक प्रदूषित हिस्सा राजधानी में पड़ता हो, लेकिन निकट भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा। डेढ़ साल से भी कम समय में यमुना में दिल्ली का प्रदूषित जल गिरना पूर्णतया बंद हो जाएगा। इसके लिए दिल्ली सरकार ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता बढ़ाने का प्लान तैयार किया है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने दो दिन पहले ही केंद्रील जल शक्ति मंत्रालय को भेजी जनवरी 2022 की रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में हर रोज 744 मिलियन गैलन (एमजीडी) सीवरेज निकलता है। कहने को इसका शोधन या उपचार करने के लिए 34 एसटीपी हैं, जिनकी शोधन क्षमता 577.26 एमजीडी है मगर शोधन केवल 514.7 एमजीडी का ही हो पाता है। यानी 30.82 प्रतिशत सीवरेज शोधित ही नहीं होता और नालों के जरिये यमुना में गिरता रहता है। हालांकि, यह भी सिर्फ कागजी सच है। अगर डीपीसीसी की ही दिसंबर 2022 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो मौजूदा स्थिति और बदतर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में वजीराबाद से ओखला तक यमुना का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा, जो नदी की कुल लंबाई के दो प्रतिशत से भी कम है, में प्रदूषण का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा है। शाहदरा, नजफगढ़ एवं बारापुला सहित 18 प्रमुख नाले हैं, जो नदी में गिरते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अनुपचारित अपशिष्ट जल और एसटीपी से निकलने वाले अपशिष्ट की खराब गुणवत्ता ही दिल्ली में नदी में प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
80 प्रतिशत एसटीपी क्षमता से कम कर रहे काम : हैरत की बात यह भी कि 80 प्रतिशत एसटीपी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं। 34 सीवेज उपचार संयंत्रों में से 22 कुल घुलनशील ठोस, रासायनिक आक्सीजन मांग, जैविक आक्सीजन मांग, भंग फास्फेट और अमोनिकल नाइट्रोजन के संबंध में निर्धारित अपशिष्ट जल मानकों को पूरा नहीं करते।
इसी स्थिति में सुधार के लिए दिल्ली सरकार ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता और संख्या बढ़ाने का विस्तृत प्लान बनाया है। इस प्लान के तहत मौजूदा एसटीपी को अपग्रेड करने के साथ-साथ उनकी शोधन क्षमता भी बढ़ाई जाएगी। इसके अलावा बाहरी दिल्ली में 48 नए एसटीपी और डीएसटीपी लगाए जाएंगे। एक एसटीपी दिल्ली गेट और एक सोनिया विहार में लगाया जाएगा। इस रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2022 तक एसटीपी की क्षमता 577 एमजीडी से बढ़कर 707 एमजीडी हो जाएगी जबकि जून 2023 तक 903 एमजीडी पहुंच जाएगी। मतलब, जितना सीवरेज रोज निकलता है, उससे भी 159 एमजीडी ज्यादा। इसके बाद दिल्ली से निकलने वाले सारे सीवरेज का शोधन हो पाएगा। जब नालों में शोधित पानी जाएगा तो यमुना में प्रदूषित जल भी नहीं गिरेगा।