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दिल्ली विश्वविद्यालय : 60 से अधिक शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कुलपति से कोरोना व अन्य बीमारी से मरने वाले शिक्षकों के परिजनों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने की मांग की है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय व उससे संबद्ध कॉलेजो में पढ़ाने वाले 60 से अधिक शिक्षकों की अभी तक कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो चुकी है। इनमें स्थायी शिक्षक, सेवानिवृत्त शिक्षक व एडहॉक टीचर्स शामिल हैं। शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह से मांग की है कि पिछले दो साल में कोरोना व अन्य बीमारी से मरने वाले शिक्षकों के परिवारों को आर्थिक मदद के साथ एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाए। उन्होंने कुलपति को बताया है कि हाल ही में पीजीडीएवी कॉलेज ( सांध्य ) के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.अनिल कुमार सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्हें दो बार कोरोना भी हुआ था। डॉ. सिंह न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत आते है, उनकी उम्र 48 वर्ष थीं और उनके दोनों बच्चे छोटे हैं। परिवार में कमाने वाले ये अकेले सदस्य थे।
अनिल सिंह की तरह कोरोना संक्रमण से मरने वाले सभी शिक्षकों के परिवारों को आर्थिक मदद व परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर रोजगार दिए जाने की मांग की जा रही है। डीटीए ने बताया है कि मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज शिक्षकों की है। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. हंसराज सुमन का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को कोरोना के दौरान बीमारी से मरने वाले शिक्षकों के विश्वविद्यालय को एक कमेटी गठित करनी चाहिए, जिसमें पूर्व एकेडमिक काउंसिल मेंबर, वर्तमान एकेडमिक काउंसिल मेंबर, ईसी मेंबर व डूटा के सदस्यों को शामिल किया जाए । उन्होंने दो साल में शिक्षकों के मरने के आंकड़े कॉलेजों से मंगवाने की भी मांग की है और जल्द ही यह कमेटी अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने संबंधी सकरुलर जारी करे। उन्होंने बताया है कि बहुत से परिवार बहुत ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, उनके परिवार में कोई दूसरा सदस्य कमाने वाला नहीं है वह मरने वाले पर ही आश्रित थे, इसलिए इस मुद्दे पर जल्द निर्णय लिया जाए ।
डीटीए के अध्यक्ष डॉ. हंसराज 'सुमन ' ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कोरोना संक्रमण से मरने वालों में कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रोफेसर थे। इनमें हमारे कुछ युवा शिक्षक जिनकी उम्र 35 से 45 के बीच स्थायी, अस्थायी और गैर - शैक्षिक कर्मचारियों को जिन्हें समय रहते मेडिकल सुविधा मिल जाती तो आज वे अपने छोटे-छोटे बच्चों और परिवार के साथ होते। जिन्हें अभी परिवारजनों की जिम्मेदारी निभानी थी, अकेले आर्थिक स्थिति से गुजर रहे थे ऐसे में उनका चले जाना परिवार के सामने आर्थिक संकट उपस्थित हो गया है। उन्होंने कोरोना संक्रमण के दौरान हुई शिक्षकों की मृत्यु शिक्षकों के परिजनों को आर्थिक सहायता राशि देने की मांग करते हुए परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर रोजगार देने की मांग दोहराई है ।