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दिल्ली: भारत मे प्रचलित सभी चिकित्सा पद्धतियों को एकीकृत कर वैश्विक स्तर पर अपनाने की ज़रूरत
दिल्ली: कोरोना की विभीषिका ने दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ले ली है और जो लोग कोराना संक्रमण से बच गए हैं, वे अभी भी उसके दुष्प्रभावों से जूझ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ विपरित परिस्थितियों में दुनियाभर में आयुर्वेद और योग ही लोगों के लिए रामबाण साबित हुआ है। यह कहना है आयुर्वेदिक पंचकर्मा अस्पताल प्रशांत विहार के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट मनोचिकित्सक एवं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ.आरपी पराशर का। विश्व स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य में उन्होंने कहा कि परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को चिकित्सा की मुख्यधारा में शामिल किए बिना न तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। न ही स्वास्थ्य संबंधी किसी लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के महत्व को समझते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले भी कई मौकों पर विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण की बात की है, लेकिन इस विषय में कोई ठोस प्रयास अब तक नहीं हुए हैं। अब समय आ गया है कि हर देश में प्रचलित सभी चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर एकीकृत चिकित्सा पद्धति को वैश्विक स्तर पर अपनाया जाए।
डॉ.पराशर का कहना है कि यह तथ्य भी पुन: स्थापित हो गया है कि रोगों से बचाव और इलाज में इम्यूनिटी की महत्वपूर्ण भूमिका है और बेहतर इम्यूनिटी सिर्फ ताजी हवा, शुद्ध पानी, स्वास्थ्यवर्धक आहार विहार, पर्याप्त नींद व मानसिक शांति से ही संभव है। विश्व स्वास्थ्य दिवस के इस वर्ष के थीम की गंभीरता को मद्देनजर रखते हुए अब यह जरूरी हो गया है कि भविष्य में सिर्फ सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाए व अनाज, सब्जियों और फलों की पैदावार के लिए रसायनों के प्रयोग को बंद किया जाए। डिब्बाबंद, प्रोसैस्ड फूड, जंक फूड, फास्ट फूड आदि की जगह घर के बने ताजी भोजन का प्रयोग किया जाए व व्यायाम, मेडिटेशन और योग को नियमित रूप से जीवन में शामिल किया जाए। इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स के प्रयोग की समय सीमा को निश्चित किया जाए, स्कूलों में खेलकूद के लिए कम से कम एक घंटा निश्चित किया जाए और स्वास्थ्य रक्षा, पर्यावरण संरक्षण, आयुर्वेद, योग व आयुष की अन्य पद्धतियों से संबंधित ज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रम में आवश्यक रूप से शामिल किया जाए ताकि बचपन से ही बच्चे स्वास्थ्य के प्रति सजग हो जाएं।