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दिल्ली हाईकोर्ट ने एसिड अटैक मामले में दो की उम्रकैद की सजा रखी बरकरार

Admin Delhi 1
26 Oct 2022 3:22 PM GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने एसिड अटैक मामले में दो की उम्रकैद की सजा रखी बरकरार
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दिल्ली कोर्ट रूम न्यूज़: दिल्ली हाईकोर्ट ने 2014 के तेजाब हमले के मामले में दो पुरुषों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने पीड़िता को मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये दिये जाने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने एक निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील खारिज करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत 'एसिड' शब्द न केवल उन पदार्थों को संदर्भित करता है जिन्हें वैज्ञानिक रूप से अम्ल या तेजाब कहा जाता है। बल्कि इसमें उन सभी पदार्थों को शामिल किया जाता है, जिनमें अम्लीय या संक्षारक गुण या झुलसाने की प्रकृति होती है। साथ ही जो निशान छोड़ने या चेहरे में विकृति पैदा करने के साथ ही अस्थायी या स्थायी विकलांगता पैदा करने में सक्षम होते हैं।

10 साल की सजा भी रखी बरकरार: अदालत ने मामले के एक अन्य आरोपी को सुनाई गयी 10 साल के सश्रम कारावास की सजा भी बरकरार रखी। मथुरा में अंजाम दिये गये अपराध की गंभीरता और पीड़िता के जीवन और आजीविका पर इसके व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए जस्टिस मुक्ता गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि निचली अदालत द्वारा दोषियों पर लगाए गए ढाई-ढाई लाख रुपये के जुर्माने की पूरी राशि पीड़िता को दी जाएगी। पीठ में जस्टिस अनीश दयाल भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं द्वारा जुर्माना के रूप में भुगतान किए गए और पीड़िता द्वारा प्राप्त मुआवजे के आधार पर, यह अदालत उत्तर प्रदेश पीड़ित मुआवजा योजना, 2014 के तहत (कुल 5,00,000 रुपये के मुआवजे में से) पीड़िता को शेष राशि का भुगतान करने का निर्देश देती है।'

8 साल पहले मंदिर से घर लौटते समय फेंका था तेजाब: जून 2014 में जब महिला एक मंदिर से घर लौट रही थी, तब दोषियों ने महिला पर तेजाब फेंक दिया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तेजाब हमले से पहले भी, पीड़िता को एक दोषी द्वारा परेशान किया जा रहा था और उसने उस दोषी के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई थी। दोषियों ने अपनी जेल की सजा को इस आधार पर हाईकोर्ट में चुनौती दी कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि पीड़िता पर फेंका गया पदार्थ तेजाब या कोई संक्षारक पदार्थ था।

पीड़िता की तरफ से फंसाने के दावे को किया खारिज: अदालत ने अपीलकर्ता के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि पीड़िता ने फंसाने के लिए यह मामला दर्ज किया था। अदालत का कहना था कि यह स्वीकार करना असंभव है कि किसी को झूठे मामले में फंसाने के लिए कोई भी व्यक्ति खुद इस तरह के जबरदस्त दर्द और गहन चिकित्सा प्रक्रिया से गुजरेगा।

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