दिल्ली-एनसीआर

दिल्ली हाईकोर्ट: बच्ची को दुर्लभ बीमारी गौचर का इलाज मुहैया कराये दिल्ली एम्स

Renuka Sahu
21 Jan 2022 4:28 AM GMT
दिल्ली हाईकोर्ट: बच्ची को दुर्लभ बीमारी गौचर का इलाज मुहैया कराये दिल्ली एम्स
x

फाइल फोटो 

दुर्लभ और आनुवांशिक बीमारी गौचर से पीड़ित साढ़े चार साल की बच्ची को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश से इलाज का अधिकार मिला।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुर्लभ और आनुवांशिक बीमारी गौचर से पीड़ित साढ़े चार साल की बच्ची को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश से इलाज का अधिकार मिला। इस बीमारी पर लगभग 57 लाख रुपये खर्च होने हैं पर बच्ची के पिता के पास इतने पैसे नहीं थे।

हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली एम्स को आदेश दिया कि बच्ची का इलाज तुरंत शुरू किया जाए और पैसे का हिसाब-किताब बाद में होता रहेगा। बच्ची के पिता और मूलरूप से श्रीनगर निवासी इरशाद अहमद सैफी ने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर निशुल्क इलाज की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि बच्ची की तुरंत एंजाइम रिप्लेसमेंट थैरेपी की जानी है और इस पर करीब 57 लाख से अधिक खर्च आएगा।
नहीं मिला निशुल्क इलाज : इरशाद के वकील अशोक अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि बच्ची के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, ऐसे में उनके लिए इलाज का खर्च उठाना संभव नहीं है। तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार व अस्पताल ने निशुल्क इलाज नहीं दिया। यह उसके जीवन जीने और स्वास्थ्य के अधिकार का हनन है। इस पर जस्टिस वी. कामेश्वर राव ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण है कि अभी बच्ची का इलाज शुरू किया जाए, जहां तक खर्च का भुगतान सरकार द्वारा किए जाने का सवाल है तो इस पर बाद में निर्णय लिया जाएगा। हाईकोर्ट ने केंद्र व दिल्ली सरकार, जम्मू कश्मीर सरकार और एम्स प्रशासन को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई एक फरवरी से पहले जवाब पेश करने को कहा।
क्या है गौचर : गौचर एक आनुवांशिक बीमारी है। इसमें ग्लूकोसर ब्राइट एंजाइम (लिपिड) की गड़बड़ी के कारण स्पलीन और लीवर काफी बढ़ जाता है। साथ ही हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं।
महंगी दवाई
इस आनुवांशिक बीमारी के इलाज में एंजाइम रिप्लेसमेंट थैरेपी की जानी है। सेरेजाइम की 52 वायल दवाई चढ़ाई जानी है और एक वायल की कीमत 110668 रुपये है। अन्य चीजों को मिलाकर इलाज पर कुल 57 लाख 68 हजार रुपये खर्च होने का अनुमान है।
बचपन से बीमारी
इरशाद ने बताया कि जन्म के छह माह बाद ही उनकी बेटी बीमार रहने लगी। श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज व अन्य अस्पताल में 2018 में इलाज शुरू किया, लेकिन 2019 में उसे एम्स में भेज दिया गया। पता चला कि गौचर नाम की बीमारी है तभी से परेशान हैं।
महामारी में सब छूटा
सैफी बताते हैं कि वह पहले रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा करते थे पर लॉकडाउन लगा तो रिक्शा भी छूट गया और अब दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार चलाता है। बेटा किसी तरह 3000 हजार रुपये महीना कमाता है, ऐसे में खर्च उठाना मुश्किल है।
Next Story