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दिल्ली: सीआरपीएफ ने सरदार पोस्ट के नायकों को 57वें वीरता दिवस पर याद किया
दिल्ली न्यूज़: हर वर्ष 9 अप्रैल को वीरता दिवस (शौर्य दिवस) मनाती है। इस अवसर पर बल ने कर्तव्य की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि दी जाती है। शनिवार को भी इस अवसर पर चाणक्यपुरी स्थित राष्ट्रीय पुलिस स्मारक पर सीआरपीएफ डीजी कुलदीप सिंह ने माल्यार्पण कर बल के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। शौर्य सीआरपीएफ इंस्टीट्यूट में आयोजित अलंकरण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने सरदार पोस्ट के योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए युद्धभूमि की मिट्टी से भरे कलश पर माल्यार्पण किया। समारोह में उन्होंने वीरता पदक प्राप्तकर्ताओं और उन बहादुरों के परिवारों को सम्मानित किया जिन्हें मरणोपरांत वीरता पदक से सम्मानित किया गया था। इस समारोह में सरदार पोस्ट बैटल के जीवित वयोवृद्ध किशन सिंह को भी सम्मानित किया गया।
अपने संबोधन में गृह सचिव ने राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए कई और विविध चुनौतियों से निपटने में बल की तत्परता, बहुमुखी प्रतिभा और उपयुक्तता की सराहना की। राष्ट्र की सेवा में अपनी असाधारण भूमिका को बनाए रखने के लिए बल की क्षमताओं में अपना अटूट विश्वास व्यक्त किया। महानिदेशक कुलदीप सिंह ने कहा कि सीआरपीएफ कर्तव्य की वेदी पर सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर जवानों और उनके परिवारों के प्रति ऋणी है। बल ने हमेशा राष्ट्र की सेवा में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और अपने गौरवशाली इतिहास के 83 वर्षों में कई मील के पत्थर हासिल किए हैं, जिसका प्रमाण हर साल बल के बहादुरों को बड़ी संख्या में वीरता पदक प्रदान किया जाना है।
9 अप्रैल को दो कंपनियों ने एक पाकिस्तानी ब्रिगेड को मार भगाया था: पाकिस्तान के एक ब्रिगेड के हमले के खिलाफ 9 अप्रैल, 1965 को सीआरपीएफ की 2 कंपनी के द्वारा 9 अप्रैल, 1965 को गुजरात के कच्छ के रण में सरदार पोस्ट पर अनुकरणीय वीरता, अद्वितीय साहस प्रदर्शन के उपलक्ष्य में हर साल वीरता दिवस मनाया जाता है। इस युद्ध में दुश्मनों द्वारा युद्ध में इस्तेमाल किए गए आधुनिक हथियारों और काफी कम संख्या में होने बावजूद सीआरपीएफ के बहादुरों ने न केवल हमले को विफल कर दिया, बल्कि पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया। इस दौरान 34 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और 4 को जिंदा पकड़ लिया। इस लड़ाई में, सीआरपीएफ के 6 बहादुरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।