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केंद्र सरकार ने डिजिटल उपकरणों की जब्ती पर दिया हलफनामा
दिल्ली कोर्ट रूम न्यूज़: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निजता का अधिकार व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता की अवधारणा में निहित है, मगर यह एक संपूर्ण अधिकार नहीं है। जनहित के लिए इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। सरकार ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियां मानक संचालन प्रक्रिया के तहत कार्रवाई कर डिजिटल उपकरणों को जब्त करती हैं और इनकी वापसी के लिए हर मामले में एक जैसा आदेश नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार ने कुछ अकादमिक शख्सियतों और शोधार्थियों के समूह की ओर से दायर याचिका के जवाब में हलफनामा दिया है। याचिका में शीर्ष कोर्ट से मांग की गई है कि सरकारी जांच एजेंसियों को निजी डिजिटल व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनकी सामग्री की जब्ती, परीक्षण व संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश जारी करे। याचिका में यह भी मांग की गई है कि शिक्षाविदों और शोधार्थियों के जब्त उपकरणों की वापसी के लिए सामान्य आदेश जारी किया जाए। इस मांग का विरोध करते हुए केंद्र ने हलफनामे में कहा कि कई मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए जांच के दायरे में आए उपकरणों की वापसी का कोई सामान्य आदेश जारी नहीं दिया जा सकता। केंद्र ने कहा कि कुछ मामलों में जांच एजेंसियां, आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 451 के तहत उपकरण के हार्ड ड्राइव में सुरक्षित डाटा की प्रति बनाकर जरूर दे सकती हैं।
केंद्र ने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं की जताई गई अधिकांश आशंकाओं को उसने नोट किया है और सीबीआई मैनुअल, 2020 का पालन कर इन आशंकाओं का समाधान हो सकता है। केंद्र ने आगे कहा, इस मामले में अधिकांश जांच एजेंसियों के पास अपनी मानक संचालन प्रक्रिया है। सीबीआई मैनुअल में देश के वैधानिक व सांविधानिक प्रावधानों के अनुरूप डिजिटल साक्ष्य के विषय में सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया तैयार की गई है। हलफनामे में कहा गया है कि इस मामले में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए सामान्य दिशा-निर्देश जारी करने से पहले राज्यों समेत सभी हितधारकों से व्यापक परामर्श जरूरी है। इसके लिए केंद्र ने देश के संघीय ढांचे और संविधान की 7वीं अनुसूची की प्रविष्टियों का हवाला दिया है।
याचिका में कहा गया है कि जिन उपकरणों में किसी नागरिक के निजी और पेशेवर जीवन की जानकारियां दर्ज हों उन्हें जब्त करने में जांच एजेंसियां पूरी तरह गैर-निर्देशित शक्ति का उपयोग करती हैं, इसलिए इस मामले में शीर्ष अदालत के निर्देशों की जरूरत है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि अकादमिक समुदाय इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल उपकरणों में अपने शोध और लेखन को दर्ज और जमा करता है। इन उपकरणों की जब्ती की स्थिति में इस डाटा को क्षति, नुकसान पहुंचने या समय से पहले ही उजागर हो जाने का जोखिम बहुत अधिक है।