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सजा दिलाने की दर 2022 तक 75 फीसदी तक ले जाएंगे सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर

Teja
21 Oct 2021 5:11 PM GMT
सजा दिलाने की दर 2022 तक 75 फीसदी तक ले जाएंगे सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर
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हलफनामे में सीबीआई के निदेशक एसके जायसवाल ने कहा कि वर्ष 2020 में सजा दिलाने की दर 69.83 फीसदी थी और 2019 में यह 69.19 फीसदी थी।

जनता से रिश्ता वेबडेसक | सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो की 'सफलता दर' कम होने को लेकर की गई टिप्पणी के बाद गुरुवार को जांच एजेंसी ने शीर्ष अदालत से बड़ा वादा किया। सीबीआई ने एक हलफनामा दायर कर उसे सूचित किया कि उसकी सजा दिलाने की दर 65 से 70 फीसदी है और वह इसे अगस्त 2022 तक बढ़ाकर 75 फीसदी करने के प्रयास करेगी।

शीर्ष कोर्ट में द्वारा दायर हलफनामे में सीबीआई के निदेशक एसके जायसवाल ने कहा कि वर्ष 2020 में सजा दिलाने की दर 69.83 फीसदी थी और 2019 में यह 69.19 फीसदी थी। जायसवाल ने कहा कि सीबीआई निदेशक का पदभार संभालने के तत्काल बाद अक्तूबर 2021 में उन्होंने एक बड़ा कदम यह उठाया कि अभियोजन निदेशालय में सुधार के लिए सभी सहायक लोक अभियोजकों व वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक आयोजित की। इसका मकसद अगस्त 2022 तक मौजूदा सजा दर को बढ़ाकर 75 फीसदी तक ले जाना था।

सीबीआई ने शीर्ष कोर्ट से कहा कि वर्ष 2020 व 2021 में जांच एजेंसी में रहे वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचार विमर्श के बाद सिस्टम की गहन समीक्षा की गई। इसमें केस अदालत में फाइल करने से लेकर उच्च अदालतों में दायर की जाने वाली अपीलों से संबंधित मामलों की निगरानी को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की गईं।

आठ राज्यों ने वापस ली छापे से पहले मंजूरी नहीं लेने की सहमति

यह हलफनामा शीर्ष कोर्ट द्वारा तीन सितंबर को उठाए गए सवालों के जवाब में दायर किया गया है। सीबीआई ने कहा कि वर्तमान में आठ राज्यों बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ व मिजोरम ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (CBI) कानून की धारा 6 के तहत उसे दी गई आम सहमति वापस ले ली है। अब उसे इन राज्यों में केस दर केस आधार पर छापों या जांच के लिए मंजूरी लेना पड़ती है, इसमें काफी वक्त लग जाता है। इससे समय पर व तत्काल जांच नहीं हो पाती है।

हलफनामे में कहा गया है कि यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 से जून 2021 के बीच इन राज्यों में मामलों की जांच के लिए 150 से ज्यादा पत्र भेजे। ये मामले ट्रेप केस, अनुपातहीन संपत्ति, विदेशी मुद्रा के नुकसान, बैंक धोखाधड़ी से संबंधित थे। राज्यों ने 18 फीसदी से भी कम मामलों में उसे जांच की इजाजत दी।

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