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भारतीय ज्ञान परंपरा की खोज का आधार बुद्ध ने दिया: प्रो. इंद्रा नारायण सिंह

Gulabi Jagat
6 May 2024 3:26 PM GMT
भारतीय ज्ञान परंपरा  की खोज का आधार बुद्ध ने दिया: प्रो.  इंद्रा नारायण सिंह
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नई दिल्ली: इण्डियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के द्वारा शाम 4 बजे ‘भारतीय ज्ञान परंपरा: एक दार्शनिक दृष्टिकोण’ विषय पर व्याख्यान आयोजिय किया गया । इस व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर इन्द्र नारायण सिंह ( वरिष्ठ प्राध्यापक, बुद्धिष्ट स्टडी सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय) उपस्थित रहे । प्रोफेसर सिंह दर्शन के क्षेत्र में भारत में ही नहीं अपितु विश्व में एक जाना पहचना नाम है। बौद्ध दर्शन नें अपनी अलग पहचान रखनें वाले प्रोफेसर नारायण नें इण्डियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के अभाषी मंच में सारगर्भित व्याख्यान दिया । उन्होनें अपने व्याख्यान के प्रारंभ में ज्ञान को अनेक आयामों में परिभाषित किया जिसमें बौद्ध, चार्वाक, आधुनिक और यांत्रिक ज्ञान के अनेक प्रयोजनों को स्पष्ट किया और उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन भारतीय ज्ञान परंपरा की एक नवीन पहल थी जिसमें विश्व कल्याण की भावना फलीभूत होती है । यदि बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों की बात करे तो उन्होनें काभी अपने आप को भगवान नहीं माना । बुद्ध नें सदैव अपनें आपको मनुष्य के रूप में दिखाया है ,परंतु उनके उपदेशों की उपादेयता अद्वितीय है जिनका अनुसरण करके साधारण मनुष्य भी मोक्ष के द्वारा पर जा सकता है। प्रोफेसर इन्द्र नारायण नें यह भी कहा कि बौद्ध दर्शन के अनुसार प्रत्येक प्रकार का प्राणी सांसारिक जीवन में रहते हुए भी आत्म चेनत से विश्व चेतना की परिकल्पना कर सकता है ,क्योंकि यह दर्शन मनुष्य के चेतना और ज्ञान पर आधारित है ।कार्यक्रम के शुरुआत में विकास कुमार,शोधार्थी, राजनीति विज्ञान एवं मानवाधिकार विभाग,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक द्वारा स्वागत व्यक्तव्य दिया गया।
उन्होंने हमारे अतिथि का स्वागत एवं अभिनंदन किया तथा कार्यक्रम के स्वरूप को व्याख्यायित किया। इस व्याख्यान की समन्वयक आशा राजपुरोहित रही , सह- समन्वयक साक्षी एवं देवेन्द्र रहे तथा कार्यक्रम सचिव अंकिता शुक्ला रहीं। प्रोफेसर इन्द्र नारायण सिंह ने कहा कि भारत को भारत बौद्ध दर्शन के रूप में के महसूस करने की आवश्यकता है - भारत समय के साथ बह रहा है, समय के साथ एक गतिशील और ध्यानपूर्ण आंदोलन है जो सह-बोध की ध्यान क्रियाओं को मूर्त रूप देता है। बौद्ध धर्म दुखों की मुक्ति व निर्वाण प्राप्ति का मार्ग बताने वाला धर्म है, जिसमें महात्मा बुद्ध के उपदेश ही केंद्रीय हैं. ये नैतिक नियमों के आधार पर आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाते हैं. महात्मा बुद्ध ने दुख के कारणों की खोज कर उनका निदान करते हुए निर्वाण के लिए इन नियमों को बहुत महत्वपूर्ण माना, जिनमें चार आर्य सत्य व द्वादश निदान चक्र दुख व भव चक्र से संबंध रखते हैं, जबकि अष्टांगिक मार्ग व दस शील सिद्धांत उन दुखों व चक्र से मुक्ति का मार्ग बताते हैं. बौद्ध धर्म में अष्टांगिक मार्ग के साथ दस शील सिद्धांत भी दैनिक आचरण के नियम है, जिनका पालन बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है । इंडिया जो कि भारत है, भारत वर्ष है और साथ ही अल-हिंद भी है। इसलिए बौद्ध दर्शन और भारतीय परंपराओं के साथ संवाद हमें भारत को भारत हिंद भारत के रूप में साकार करने के लिए आमंत्रित करता है। चूंकि यह दुनिया का हिस्सा है इसलिए हमें भारत को भारत हिंद भारत विश्व-विश्व के रूप में महसूस करने की जरूरत है।
प्रोफेसर नारायण नें नागार्जुन के ग्रंथों की व्याकलहया करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन संदर्भ-विशिष्ट सामाजिक ज्ञान नहीं होगा, यह वैश्विक दर्शन के साथ के साथ इंटरैक्टिव दर्शन भी होगा।" भारत की ऐसी बहुलवादी अनुभूति हमें भारतीय ज्ञान की बहुलवादी धाराओं - हिंदू, बौद्ध, इस्लामी, ईसाई, जैन, स्वदेशी, और भारत की छह दार्शनिक धाराओं और कई अन्य को समझने की चुनौती देती है। भारत और भारतीय ज्ञान प्रणालियों के इस बहुवचन बोध के साथ, मैं उपनिषद और दर्शन के बीच संवाद पर चर्चा करता है और उपनिषदिक दर्शन के रास्ते विकसित करता है और फिर मैं इसे आशा की एक नई पारिस्थितिकी से जोड़ता हूं - अभिन्न दार्शनिक ज्ञान की आशा के साथ-साथ हमारी जीवन साधना भी। स्वयं, संस्कृति, समाज, राज्य, विश्व और ब्रह्मांड। यहाँ आत्मा केवल ज्ञान की वस्तु नहीं है; यह उसका विषय भी है. पांडे स्पष्ट करते हैं कि गहरे अर्थों में, ज्ञान का विषय होने के साथ-साथ यह पूरी तरह व्यक्तिपरक भी नहीं है। ज्ञान की खोज के व्यक्तिपरक और वस्तुनिष्ठ आयाम के बीच आत्मा एक मध्यस्थ स्थान रखती है। लेकिन फिर भी नैतिकता, सौंदर्यशास्त्र और जिम्मेदारी की चुनौती सहित आत्मा के अभिन्न विविध संबंधों पर ध्यान दिए बिना स्वयं और समाज के आत्मा आयाम पर ध्यान फंस सकता है, जिसे दया कृष्ण आत्म-केंद्रित दुर्दशा कहते हैं। बोद्ध धर्म में आध्यात्मिक साधना के लिए मध्यमा प्रतिपद् यानी मध्यम मार्ग को अपनाया गया है. जो भोग विलास और कठोर तपस्या के बीच का मार्ग है.
इसके लिए महात्मा बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग यानी सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्मान्त, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति व सम्यक समाधि को सीढ़ी रूप में बताया है.। हमारे मुख्य वक्ता के विचारों से सभी श्रोता लाभान्वित हुएं।इस व्याख्यान में कई शोधार्थी-विद्यार्थी एवं श्रोता उपस्थित रहे। गनेशी लाल,शोधार्थी,अश्विनी,शोधार्थी,नैना प्रसाद,शोधार्थी, नेहा प्रसाद,शोधार्थी,कोलकाता आदि जुड़े रहे। इस व्याख्यान का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से संपन्न हुआ।
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