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ऑफ द रिकॉर्ड' शुरूआत करके 'ऑन द रिकॉर्ड' लाशें बिछा डालीं
पुलिस कहीं की भी हो, यह मेरा इलाका- वह तेरा इलाका, मतलब थानेदारों के बीच अपनी-अपनी हदों या सीमाओं को लेकर उठा-पटक हमेशा ही मची रहती है. थानों की इस बेजा लड़ाई के चलते लावारिस लाशें घंटों सीमा-विवाद में पड़ी रहती हैं. चलिए कोई बात नहीं. आज मैं आपको इसके एकदम उलट, सच्चे और रूह कंपाते किस्से को बयान कर रहा हूं, जिसे अब से करीब 21 साल पहले मैंने खुद भी घटनास्थल पर जाकर देखा और फिर उसकी रिपोर्टिंग की थी. यह किस्सा थाने-चौकी के सीमा-विवादों से एकदम हटकर मतलब उलटा ही है. मगर यादगार और रोमांचक. जिसका मैं चश्मदीद रहा.
इसमें ऑपरेशन को सर-ए-अंजाम चढ़ाने की जिम्मेदारी सीबीआई की थी. सीबीआई द्वारा जारी ऑपरेशन की संवेदनशीलता को देखते हुए मगर, सीबीआई का हल्का सा इशारा होते ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल शुरूआती दौर में मय हथियार "ऑफ द रिकॉर्ड" ही जा डटी. बाद में सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से सफल रहे इसी ऑपरेशन को नाम दिया था "ऑपरेशन डेज़र्ट सफारी."सीबीआई और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के बीच आपसी सामंजस्य का अगर यह ऑपरेशन दो दशक पहले मिसाल बना था. तो इसका एक दुखद पहलू यह भी रहा कि दौरान-ए-एनकाउंटर एक बेकसूर युवक भी गोलियों से भून डाला गया.
अबू धाबी से दिल्ली का खतरनाक सफर
थेक्कट सिद्दीकी अबू धाबी में रहते थे. वे दक्षिण भारत के मूल निवासी (केरल के कालीकट) थे. कई साल पहले वे बिजनेस के लिए भारत से निकले तो अबू धाबी में ही जाकर रहने भी लगे. 11 मार्च सन् 2001 को अबू धाबी से दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर यहां (दिल्ली में) उनका अपहरण कर लिया गया. उन्हें रातों-रात किसी बिजनेस के जरिए धन्नासेठ बनाने का लालच देकर सात समुंदर पार से धोखे से दिल्ली बुलवाया था. थेक्कट को जिस शख्स ने झांसे में फांसकर दिल्ली बुलाया था, उसने खुद को भारत का बड़ा बिजनेसमैन विजय राठौर बताया था. दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचते ही अनजान मुसीबत के जाल में फंसने से एकदम अनजान थेक्कट सिद्दीकी ने अबू धाबी में हवाई अड्डे से ही फोन करके सूचित कर दिया कि वह जल्दी ही अबू धाबी लौट आएगा.
थेक्कट का माथा तो तब ठनका जब….
फिलहाल वो सुरक्षित दिल्ली हवाई अड्डा पर पहुंच चुका है. यहां तक तो सब कुछ नार्मल रहा. थेक्कट का दिमाग तो 11 मार्च 2001 को तब ठनका जब उसे कार से ले जाकर, दक्षिणी दिल्ली के एक अंधेरे से फ्लैट में धक्के मारकर ठूंस दिया गया. उस भुतहे फ्लैट के भीतर पहुंचते ही सामना हुआ गली के कुछ गुंडों से. जो देखने में ही डरावने लग रहे थे. पलक झपकते ही थेक्कट सिद्दीकी समझ गया कि, उसका भारत बुलाकर मोटी आसामी बनाने का झांसा देकर अपहरण कर लिया गया है. जब तक यह सब उसे पता लगा तब तक देर हो चुकी थी. अब थेक्कट अबू धाबी से सात समुंदर पर अपने ही देश की राजधानी दिल्ली की सर-जमीं पर बेगानों की सी हालत में एक बंधक था. चारों ओर मौजूद बदमाशों के हाथों में बंदूकें, पिस्तौल देखकर थेक्कट थर-थर कांप रहा था. उस पर भी वे गुंडे बार-बार उसे हथियारों की नालें उसकी ओर करके और डरा-धमका रहे थे.
बार-बार बे-वजह ही हथियार लहराते
जिससे थेक्कट को लग रहा था कि गुंडों का क्या भरोसा? बाकी साथियों की नजर में अपनी बदमाशी चमकाने को कब उसके (थेक्कट) सीने में गोली झोंक दें और समझिए काम तमाम. मतलब यह कि चारों तरफ से अकाल मौत थेक्कट को घेरे हुए खड़ी थी. एक दिन की जबरदस्त मारपीट के बाद थेक्कट को बताया गया कि अगर वो जिंदा छूटना चाहता है तो 20 लाख डॉलर करीब 12 करोड़ रुपए का इंतजाम कर ले. अपहरणकर्ताओं ने थेक्कट की बात उसकी बीवी से भी करा दी. जिससे उसके अबू धाबी स्थित घर में और केरल में रहने वाले परिजनों में कोहराम मच गया. बात किसी तरह से जब थेक्कट परिवार के एक आईपीएस अधिकारी के कानों तक पहुंची तो उन्होंने सीधे सीबीआई से संपर्क करना मुनासिब समझा. क्योंकि यह इंटरनेशनल किडनैपिंग का मैटर था. इस तरह के बड़े मामलों की विस्तृत तफ्तीश करने का सीबीआई का कानूनी हक भी था.
पांच दिन बाद भी रिजल्ट जीरो था
राज्य पुलिस सिर्फ सीबीआई को मदद कर सकती थी. न कि राज्य पुलिस किसी देश की हुकूमत से सीधे संपर्क साध सकती थी. जबकि सीबीआई विदेश-गृहमंत्रालय और इंटरपोल की सीधे ही मदद लेने में सक्षम थी. बात अबू धाबी में मौजूद भारत के राजदूत के सी सिंह के कानों तक भी पहुंची. उन्होंने तत्काल ब-जरिए फैक्स घटना की जांच में प्राथमिकता से सीबीआई टीम को जुटाने के लिए सीबीआई डायरेक्टर आर के राघवन को लिखित में सूचना भेज दी. यह सब करते-धरते आ गई 15 मार्च 2001 यानी थेक्कट का अपहरण हुए पांच दिन बीत चुके थे. इसके बाद भी उसका कोई पता ठिकाना नहीं मिला था. इस सबके साथ ही अबू धाबी में भारत के राजदूत के सी सिंह ने उन दिनों सीबीआई में संयुक्त निदेशक पद पर तैनात, आईपीएस नीरज कुमार को भी ब-जरिए टेलीफोन इस काम में अविलंब लगने का आग्रह किया.
पुरानी पहचान ने उसकी जान बचाई
केसी सिंह, नीरज कुमार और उनके काम करने के स्टाइल को मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के दौर से ही बखूबी जानते-पहचानते थे. जबका यह किस्सा है तब नीरज कुमार सीबीआई की आर्थिक अपराध निरोधक शाखा में ज्वाइंट डायरेक्टर हुआ करते थे. नीरज कुमार के सामने यक्ष प्रश्न यह था कि वे के सी सिंह को इनकार नहीं कर सकते थे. और सीवीआई की जिस आर्थिक अपराधक निरोधक शाखा के वे (नीरज कुमार) संयुक्त निदेशक थे, वो सीबीआई का अनुभाग इस खतरनाक अपहरण कांड के जाल को भेदने की गलती नहीं कर सकती थी. नीरज कुमार अभी इस यक्ष प्रश्न का सवाल खोजने की माथापच्ची में थे कि इत्तिफाकन वहां, तब दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल में तैनात एसीपी राजवीर सिंह आ पहुंचे. देश के टॉप टेन पुलिस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट में शुमार एसीपी राजवीर सिंह लंबे समय तक आईपीएस नीरज कुमार के साथ दिल्ली पुलिस में काम कर चुके थे.
ऑफ द रिकॉर्ड शुरू हुआ ऑपरेशन
बातचीत के दौरान राजवीर ने कहा कि अगर थेक्कट अपहरण कांड की जांच आप (नीरज कुमार) अपने हाथ में लेते हैं सीबीआई की ओर से, तो मैं (दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के एसीपी राजवीर सिंह) इस ऑपरेशन में साथ हो सकता हूं. बात चूंकि दे देशों की सरकार के बीच की और किसी एनआरआई की सकुशल रिहाई की. लिहाजा आनन-फानन में ऑपरेशन नीरज कुमार के ही हाथों में सौंप दिया गया. अधिकृत रूप से जांच हाथ में आते ही एसीपी राजवीर सिंह के साथ दिल्ली पुलिस के दबंग इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को भी नीरज कुमार ने साथ ले लेना ही मुनासिब समझा. हालांकि आज दुनिया में यह दोनो ही जाबांज अब मौजूद नहीं हैं. एसीपी राजवीर सिंह का 24 मार्च 2008 को दिल्ली से सटे हरियाणा के गुरुग्राम में कत्ल कर दिया गया.
सीबीआई-दिल्ली पुलिस की ही कुव्वत
जबकि इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा उसके चंद महीने बाद ही यानी 19 सितंबर 2008 को दुनिया भर में बदनाम रहे, बटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हो गए. 18 मार्च 2001 (रविवार) का वो भी दिन अंतत: आ ही गया जब ऑपरेशन डेजर्ट सफारी की ऑफ द रिकॉर्ड शुरू हुई शुरूआत को 'ऑन द रिकॉर्ड' पर लाकर बंद कर दिया गया. क्योंकि यह सब कानूनी रुप से भी अपहरणकर्ताओं को कोर्ट में सजा दिलाने के लिए बेहद जरूरी था. दिल्ली पुलिस के हथियारों और जांवांजों के बलबूते सीबीआई सी पड़ताली एजेंसी ने 20 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण किए गए थेक्कट को सकुशल रिहा करवा लिया. दिल्ली के सर्वप्रिय विहार के जिस फ्लैट में उसे छुड़ाया गया वहां सीबीआई के इशारे पर दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा संभाले गए उस खूनी मोर्चे में, अपहरणकर्ता राकेश सराहा जिंदा पकड़ा गया. जबकि मुठभेड़ वाले फ्लैट के भीतर मुख्य अपहरणकर्ता वीरेंद्र पंत उर्फ छोटू उर्फ संजय खन्ना उर्फ चंकी व सुनील नैथानी की लाश पड़ी थी.
बे-वजह मौजूदगी अकाल मौत बनी
सीबीआई जांच में बाद में पता चला कि सुनील नैथानी बेकसूर था. उसके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस नहीं था. मगर वो अपहरणकर्ताओं के साथ मुठभेड़ के दौरान मौजूदगी को चलते दुखद मौत अनजाने में ही मारा गया. जिस ऑपरेशन डेजर्ट सफारी में दो दो लाशें बिछा दी गई हों. वहां से भी पीड़ित को जिंदा बचा लाने वाले सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर नीरज कुमार कहते हैं, "उस खतरनाक ऑपरेशन की सफलता में किस किसके सहयोग का शुक्रिया न करूं. बहुत लंबी फेहरिस्त है. डरता हूं कि कहीं कोई छूट न जाए. राजवीर हो, इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मेहताब सिंह, इंस्पेक्टर राजेंद्र बख्शी, गली के नुक्कड़ पर खड़ा वो धोबी जिसने हमारी मदद की थी… या फिर तब सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर रहे पीसी शर्मा जी जो. खबर सुनकर खुद ही हम सबकी पीठ थपथपाने घटनास्थल पर जा पहुंचे थे."