- Home
- /
- दिल्ली-एनसीआर
- /
- Atul Malikram बोले- इन...
दिल्ली-एनसीआर
Atul Malikram बोले- इन उपायों से कम हो सकती देश की जेलों में साल-दर-साल बढ़ती भारी भीड़
Gulabi Jagat
14 Jun 2024 3:18 PM GMT
x
New Delhi नई दिल्ली: लगभग दो वर्ष पूर्व भारतीय राष्ट्रपति ने जेलों में बंद बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों under trial prisoners की दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया था। हालांकि यह मुद्दा सिर्फ उठा था लेकिन इस पर नाम मात्र काम होता भी नजर नहीं आया। एनसीआरबी की वेबसाइट पर मिले ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में जहां विचाराधीन कैदियों की संख्या 4,27,165 थी, वो वर्ष 2022 में 1.7% बढ़कर 4,34,302 हो गई। साल-दर-साल बढ़ती इन कैदियों की संख्या का नतीजा ये है कि भारतीय जेलें 131 फीसदी ऑक्यूपेंसी रेट के साथ अपनी क्षमता से अधिक कैदियों को रखने पर मजबूर हैं। वर्ष 2022 तक देश के सभी जेल कैदियों में से लगभग 73% विचाराधीन थे। तो क्या इन कैदियों की संख्या को कम करने के लिए कोई उपाय नहीं किया जा सकता? एक कैदी पर रोजाना का खर्च यदि औसतन 100 रुपये भी होता है तो महीने का 3000 और साल का 36000 प्रत्येक विचारधीन कैदी पर खर्च होता हैं। ऐसे में यदि इन कैदियों के लिए कुछ स्पेशल जज नियुक्त किए जाएं, तेजी से ट्रायल लिए जाएं, कैदियों के एक सीमित समूह पर वकीलों की संख्या बढ़ाई जाए और नए जजों के साथ विशेष न्यायालय लगाएं जाएं, तो शायद लाखों कैदियों पर होने वाले करोड़ों के खर्च से कम पैसे में मुकदमों का निपटारा भी जल्द किया सकता है और जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ को भी नियंत्रित किया जा सकता है।New Delhi
एक सत्य ये भी हैं कि हर साल विचारधीन कैदियों under trial prisoners को बेल पर रिहा भी किया जाता हैं, लेकिन इसके उलट रिहा होने वाले कैदियों से अधिक जेलों में पहुँच जाते हैं। ऐसे में जिन कैदियों के मामले दो या तीन साल से अधिक समय से लंबित पड़े हैं, उनके लिए विशेष न्यायालयों की व्यवस्था की जा सकती है। इसके अलावा ऐसे कैदी जो जमानत की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, या किसी छोटे-मोटे मामले में बंदी हैं, उन्हें भी किसी विशेष बांड इत्यादि के माध्यम से बेल देकर बाहर निकाला जा सकता है। ऐसे कुछ सुझाव सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने भी दिए थे लेकिन उन पर भी अभी तक कोई कार्य नहीं हुआ है।
हमें यह ध्यान भी रखने की जरुरत है कि कई गरीब और संसाधनहीन विचाराधीन कैदी भी हैं, जिन्हे असंगत रूप से गिरफ्तार किया जाता है। इसमें से कई ऐसे भी होते हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण, या सामाजिक कलंक के डर से जमानत लेने से कतराते हैं। ऐसे कैदियों को भी अलग से चिन्हित किया जाना आवश्यक है ताकि उनके मामलों का निपटारा भी समय पर किया जा सके। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जेल बहुत से ऐसे कैदियों के लिए जरा भी सुरक्षित नहीं हैं जो किसी परिस्थिति के कारण वहां बंद हैं, जबकि असल में आपराधिक प्रवत्ति के नहीं हैं। इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि कैदियों के खिलाफ जेल अथॉरिटी के किसी भी कदम को अपराध नहीं माना जाता है, जो उन्हें लापरवाही से काम करने की इजाजत भी देता है, जिससे जेल के अंदर कई अप्रिय घटनाएं भी देखने को मिलती हैं।
TagsAtul Malikramदेश की जेलcountry's jailजनता से रिश्ता न्यूज़जनता से रिश्ताआज की ताजा न्यूज़हिंन्दी न्यूज़भारत न्यूज़खबरों का सिलसिलाआज की ब्रेंकिग न्यूज़आज की बड़ी खबरमिड डे अख़बारJanta Se Rishta NewsJanta Se RishtaToday's Latest NewsHindi NewsIndia NewsKhabron Ka SilsilaToday's Breaking NewsToday's Big NewsMid Day Newspaperजनताjantasamachar newssamacharहिंन्दी समाचार
Gulabi Jagat
Next Story