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सालाना रिपोर्ट जारी: दिल्ली एम्स में ओपीडी-सर्जरी एक तिहाई हुईं, मौतें डेढ़ गुना बढ़ीं
Renuka Sahu
10 Feb 2022 3:32 AM GMT
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फाइल फोटो
कोरोना संक्रमण के चलते देश के सबसे बड़े अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर असर पड़ा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना संक्रमण के चलते देश के सबसे बड़े अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर असर पड़ा है। महामारी के कारण एम्स में ओपीडी और सर्जरी एक तिहाई हुईं, जबकि मरीजों की मौत डेढ़ गुना तक बढ़ गई।
बुधवार को जारी एम्स की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार, एक साल में अस्पताल में संक्रमण भी बढ़ा है। भर्ती मरीजों के अस्पताल में रुकने की अवधि में भी इजाफा हुआ। इसके अलावा पूरे साल एम्स में 56 फीसदी बिस्तरों पर ही मरीजों को भर्ती किया जा सका।
साल 2020-21 के दौरान ओपीडी में 15.42 लाख रोगी पहुंचे। इस दौरान 3194 बिस्तरों पर 1.40 लाख मरीजों को भर्ती किया गया। इनमें से 72,737 मरीजों के ऑपरेशन किए गए। इसी साल में छह माह के लिए देश में लॉकडाउन भी लगाया गया था।
साल 2019-20 और 2020-21 के बीच भर्ती मरीजों की मृत्युदर 1.7 से बढ़कर तीन फीसदी तक पहुंच गई है। एम्स के कार्डियो और न्यूरो सेंटर में यह मृत्युदर 2.6 से 6.9 फीसदी यानी करीब तीन गुना बढ़ी है।
एम्स के ट्रॉमा सेंटर में नौ फीसदी मरीजों की मौत हुई है। इसी ट्रॉमा सेंटर में कोरोना संक्रमित मरीजों का उपचार भी चल रहा था। अस्पताल में संक्रमण 5.6 से बढ़कर 8.9 फीसदी तक पहुंचा है।
इसके अलावा अस्पताल में मरीज के रुकने की अवधि औसतन 9.9 से बढ़कर 10.4 दिन तक पहुंच गई, जबकि कोरोना मरीजों को भर्ती करने वाले ट्रॉमा सेंटर में यह अवधि एक दिन यानी 10 से घटकर नौ दिन पर पहुंच गई है। इस आधार पर देखें तो गैर संक्रमित रोगियों की तुलना में कोरोना मरीज अस्पताल में कम रुके हैं लेकिन उनमें मृत्युदर अधिक रही।
रिपोर्ट में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि राष्ट्रीय लॉकडाउन घोषित होने के एक सप्ताह के भीतर एम्स ने ट्रॉमा सेंटर और झज्जर स्थित राष्ट्रीय कैंसर संस्थान को कोरोना संक्रमित रोगियों के लिए आरक्षित किया। इसके साथ चिकित्सीय व वैज्ञानिक शोध में भी एम्स ने पूरा सहयोग किया।
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