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नफीस यानी नेशनल ऑटोमैटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम, अपराधियों का काल बनकर आएगा
दिल्ली न्यूज़: आमतौर पर पुलिस मेहनत कर बदमाश पकड़ती है। उसकी फोटो खींची और नाम पता और उसके पूरे कुनबे का ब्यौरा रजिस्टर में दर्ज कर जेल भेजने की कार्रवाई पूरी कर देती है लेकिन जमानत पर छूटते ही बदमाश दूसरे शहर या राज्य में डेरा डाल कर अपना नाम पता और हुलिया बदल कर अपराध पर अपराध करने लगता है। जब वहां वह पकड़ा जाता है तो नाम पता और कुनबे का नाम ही पूरी तरह से बदल कर लिखवा देता है। ऐसे में एक ही अपराधी खासकर बवारिया और घूमंतू जाति गिरोह जो न जाने कितने शहरों में अपराध कर पुलिस की आंखों में धूल झोंक रहे है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। नफीस ऐसे अपराधियों की कुंडली में बैठने जा रहा है। जहां जिला पुलिस हो या फिर एसटीएफ या एटीएस या देश की अन्य जांच एजेंसियां। नफीस की मदद से चंद मिनटों में ही अपराधी का पूरी कुंडली खंगाल लेगी और नाम पता बदल कर भी पूछताछ में अपने आप को बेगुनाह या पहली बार पकड़े जाने की दुहाई देने वाला बदमाश झूठ नहीं बोल पायेगा। इसके लिए यूपी की एसटीएफ और एटीएस की सभी यूनिटों और जिले में नफीस का शुरू करने के लिए जरूरी उपकरण, कम्प्यूटर, थंब इंप्रेशन मशीन,स्कैनर पहुंंच चुकी है। जल्द ही नफीस को संचालित करने वाले पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग होने जा रही है। एसटीएफ की नोएडा यूनिट में भी नफीस के संचालन के लिए सभी साजो समान पहुंच चुका है। जल्द ही एसटीएफ कर्मियों की इसको लेकर एक ट्रेनिंग सेंशन का आयोजन किया जा रहा है। इसकी पुष्टि नोएडा यूनिट के एएसपी राजकुमार मिश्रा ने करते हुए बताया कि नफीस से बावरिया या अन्य घूमंतू जाति के अपराधियों पर शिकंजा कस जायेगा। जो वारदात के बाद जमानत पर बाहर आते ही अपना नाम पता और हुलिया बदल लेते है और दुबारा पकड़े जाने पर पूछताछ में अपना असली नाम पता कभी नहीं बताते है।
क्या है नफीस: नफीस यानि नेशनल ऑटोमैटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम। जो गृह मंत्रालय के निर्देश पर एसीआरबी (नेशनल रिकार्ड ब्यूरो) के अधीन शुरू किया जा रहा है। जो पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जनवरी 2022 से 18 राज्यों में शुरू किया गया है। इसके लिए जरिए 18 राज्यों की पुलिस टीम को एक-दूसरे के राज्यों के लगभग 23 लाख अपराधियों के रिकॉर्ड दिए गए हैं। राज्यों में कितने अपराधी एक्टिव हैं, उनके नाम-पते के अलावा उनके फिंगर प्रिंट नफीस में अपलोड किए हैं। इसका फायदा यह होता है कि अपराधी इनमें से किसी भी राज्य में अपराध करता है, तो अपराध नफीस में दर्ज किए जाते हैं। अपराधी का ब्यौरा सिस्टम में दर्ज होता है, तो नफीस से उसकी पहचान हो जाती है कि अपराधी कौन है। कहां का रहने वाला है। इस नफीस में घटना के बाद स्पॉट से मिले फिंगर प्रिंट अपलोड किए जाते हैं। जैसे ही, वह अपराधी देश में कहीं भी दूसरी वारदात करता है। वहां उसके फिंगर प्रिंट मैच होते हैं, तो पहला मामला खुद ही ट्रेस हो जाता है। इसकी मदद से केस को सॉल्व करने में मदद मिलेगी।
इन राज्यों को जोड़ा गया: अभी शुरुआती तौर पर देश के सभी बड़े राज्य इसमें शामिल किए गए हैं। उनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, कोलकाता, आंध्र प्रदेश, दिल्ली आदि शामिल हैं। जल्द ही इसमें अन्य राज्यों और केंद्र शासित राज्यों को शामिल किया जाएगा।
102 साल बाद नया अपराधिक प्रक्रिया (पहचान) पर जल्द होगा शुरू काम: कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि अब अपराध किया तो बच नहीं सकोगे। नफीस से एक कदम आगे बढ़ाते हुए केन्द्र सरकार ने संसद से आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित करा लिया है। यह 102 साल पुराने कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लेगा। पुराने कानून में केवल फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट और फोटो लेने का अधिकार था। इसके लिए भी मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती थी। नए विधेयक से पुलिस अपराधियों की फोटो के अलावा उनकी अंगुलियों की छाप (फिंगरप्रिंट), पैरों-तलवों की छाप (फुटप्रिंट), हथेलियों की छाप, आंखों के आइरिस व रेटिना का बायोमीट्रिक डाटा तथा खून, वीर्य, बाल व लार आदि तमाम प्रकार के जैविक (बायोलाजिकल) नमूने ले सकेगी। हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य तरह का डाटा भी लिया जा सकेगा। पूरे डाटा का डिजिटलीकरण करके उसे केंद्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटाबेस में जमा किया जाएगा। डाटा 75 साल तक सुरक्षित रखा जाएगा।