COVID-19

कोरोना की दूसरी लहर का बच्‍चों पर कितना असर?

Gulabi
5 Jun 2021 12:48 PM GMT
कोरोना की दूसरी लहर का बच्‍चों पर कितना असर?
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कोविड 19 की दूसरी लहर का असर भारत में अभी तक है. केसेज की संख्या तो कम हुई है लेकिन

कोविड 19 की दूसरी लहर का असर भारत में अभी तक है. केसेज की संख्या तो कम हुई है लेकिन इसके बाद भी लोगों में इसका संक्रमण देखा जा सकता है. इस लहर ने बच्‍चों को भी नहीं बख्‍शा है और इस दौरान ज्‍यादा से ज्‍यादा बच्‍चे संक्रमण की चपेट में आए हैं. बच्‍चों पर कोविड के प्रभावों और इसके खतरों को लेकर सरकार भी काफी सजग है. इसी को ध्‍यान में रखकर सीएसआईआर की नई शाखा सीएसआईआर- नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस कम्‍युनिकेशन और पॉलिसी रिसर्च (एनआईएससीपीआर) की तरफ से एक खास वेबिनार आयोजित किया गया था. जो कि कोविड-19 की दूसरी लहर के खतरों और बच्चों पर इसके प्रभाव, खतरों और बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी प्रोटोकॉल पर केन्द्रित था.

बच्‍चों को जागरूक करने की जरूरत
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक डॉ. रंजना अग्रवाल ने इस दौरान 'जिज्ञासा' का जिक्र किया. 'जिज्ञासा' की शुरुआत साल 2017 के मध्य में हुई थी और इसके तहत छात्रों और वैज्ञानिकों को जोड़ने की पहल की गई. इसका मकसद स्कूली छात्रों में 'वैज्ञानिक चेतना' पैदा करना और उन्हें विज्ञान के लिए जागरुक बनाना है.
उन्होंने आगे कहा कि 'जिज्ञासा' ने वास्तव में न केवल छात्रों के बीच एक सराहनीय प्रभाव पैदा किया है, बल्कि वैज्ञानिकों में भी उत्साह जगाया है. उन्होंने कहा कि 'जिज्ञासा' छात्रों को सीधे वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है और इस तरह युवा दिमाग को नवीन सोच और दृष्टिकोण की ओर प्रेरित करता है. दीर्घकालिक स्तर पर, विशेष रूप से समाज के लिए फायदेमंद विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के संदर्भ में इस पहल से प्रभावशाली परिणाम मिलने की उम्मीद है.
बच्‍चों के दिमाग पर महामारी का असर
केंद्रीय विद्यालय की एडीशनल कमिश्‍नर डॉ. वी. विजयलक्ष्मी ने कहा कि 'जिज्ञासा' छात्रों के लिए एक सपने के सच होने जैसा है क्योंकि यह वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने और उनके काम को करीब से देखने का एक मंच प्रदान करता है. यह संबंध उनके संस्थान के लिए काफी सफल रहा है क्योंकि इसके जरिए पूरे साल चलने वाली विभिन्न प्रकार की संलग्नता को लेकर छात्र उत्साहित हैं.
डॉ विजयलक्ष्मी ने कहा कि अभूतपूर्व कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. इसने सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक जीवन और बच्चों के दिमाग को निष्क्रिय रूप से प्रभावित किया है. इसकी वजह से उन्हें पढ़ाई के अलावा खेलने के अधिकार से वंचित होना पड़ा है, भले ही वह उनके साथियों के साथ ही क्यों न हो. उन्होंने इस बात की याद दिलाई कि कैसे हमारे शिक्षक बच्चों को शिक्षित करने के दबाव से निपटने के लिए रातोंरात आईटी-प्रेमी तकनीकी विशेषज्ञ बन गए.
कैसे पहचानें बच्‍चों में महामारी के लक्षण
एसबीएमसीएच, चेन्नई के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर और आईएपी केईबी सदस्य प्रो. आर. सोमशेखर, ने सूक्ष्म विवरणों को शामिल करते हुए 'बच्चों में कोविड-19: खतरे और सावधानियां' विषय पर एक व्यापक मुख्य भाषण दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों में कोविड-19 का अभी भी मध्यम असर है. भले ही बच्चे सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में हैं, फिर भी उनमें से अधिकांश बिना लक्षण वाले हैं और मात्र 1-2% को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.
डॉ. सोमशेखर ने माता-पिता को वयस्कों से संक्रमण के संचरण की संभावना और इन दिनों बच्चों में बढ़ते गैस्‍ट्रो इंटेस्‍टाइन संबंधी लक्षणों के बारे में आगाह किया. उन्होंने समझाया कि अन्य फ्लू और सामान्य सर्दी के बीच कोविड -19 लक्षणों की पहचान और अंतर कैसे करें.
वैक्‍सीनेशन है जरूरी
डॉ. सोमशेखर ने कहा कि कोविड -19 ने अब तक कर्नाटक को छोड़कर भारत में बच्चों को ज्यादा प्रभावित नहीं किया है. उन्होंने बच्चों के लिए कोविड-19 के उपचार के विभिन्न विकल्पों पर चर्चा की. सत्र को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने हमारे दैनिक जीवन में अपनाए जाने लायक कुछ उपायों के बारे में सुझाव दिया: शारीरिक व्यायाम, बच्चों के साथ खेलना, स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों से बचना, अच्छी नींद, मास्क पहनना, संतुलित आहार और उम्र के अनुसार टीकाकरण. सबसे महत्वपूर्ण बात के रूप में, उन्होंने लक्षणों और बच्चे के व्यवहार में बदलाव पर कड़ी नजर रखने की सलाह दी.
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