रिसर्च में खुलासा : कोरोना मरीजों की जान बचाने के कगार पर होगी ये छोटी-सी चीज
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | कोरोना महामारी से दुनिया एक साल से ज्यादा वक्त से जूझ रही है. 210 से ज्यादा देश इस महामारी की चपेट में हैं. लेकिन इस महामारी से जंग में भारत समेत कई देशों को कोरोनावायरस के खिलाफ एक बड़ा हथियार मिल चुका है. वह हथियार है, इसकी वैक्सीन. भारत में बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान जारी है, जबकि अन्य देशों में भी लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है.
कोरोना महामारी पर नियंत्रण में और इससे बचाव के लिए वैक्सीन काफी असरदार बताई जा रही है. हालांकि कोरोना का टीका बचाव के लिए उपाय है, न कि इस बीमारी का इलाज. यही कारण है कि महामारी की शुरुआत से वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में तो लगे ही हुए थे, इसके इलाज के लिए भी दवाओं और थेरेपी पर रिसर्च कर रहे थे. शोध अब भी जारी हैं.
कोरोना के इलाज के लिए अब तक कई तरह की दवाएं आ चुकी हैं, जबकि कई तरह की थेरेपी के जरिए भी मरीजों का इलाज हो रहा है. अब कनाडा की एक यूनिवर्सिटी ने गांजे में कोरोना के इलाज की उम्मीद दिखाई है.
क्या है शोधकर्ताओं का दावा?
कनाडा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि गांजे के इस्तेमाल से कोरोना के प्रति सबसे अधिक जोखिम वाले आयुवर्ग के लोगों और गंभीर मरीजों को मौत से बचाया जा सकता है. रिसर्च के मुताबिक शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए गांजा का इस्तेमाल किया जा सकता है.
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा की लेथब्रिज यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च टीम ने यह दावा किया है. रिसर्चर्स के मुताबिक, इम्यून सिस्टम में खराबी की वजह से शरीर में 'साइटोकाइन स्टॉर्म' की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस प्रक्रिया में वायरस के साथ-साथ शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं भी शिकार हो जाती हैं.
कोविड के कई गंभीर मामलों में यही 'साइटोकाइन स्टॉर्म' की प्रक्रिया मौत का कारण बनती है. शोधकर्ताओं का दावा है कि गांजे के पेड़ से मिले तत्व साइटोकाइन स्टॉर्म को रोक सकते हैं. शोधकर्ताओं को ऐसे स्ट्रेन मिले हैं जो इसे पैदा करने में मदद करने वाले दो केमिकल्स interleukin-6 (IL-6) और tumour necrosis factor alpha (TNF-a) की मात्रा को काफी हद तक कम कर सकते हैं.
साइटोकाइन स्टॉर्म को रोकने से कम होंगी मौतें
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही वैज्ञानिक साइटोकाइन स्टॉर्म को रोकने के तरीके खोजने में जुटे थे. वायरस के शरीर से निकलने के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रहती है, जिससे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो सकता है और जान भी जा सकती है. सरल शब्दों में समझें तो इस प्रक्रिया में लंग फाइब्रोसिस हो सकता है, जिससे फेफड़ों के टिश्यू खराब होकर काम करना बंद कर सकते हैं. रिसर्चर्स का दावा है कि कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार लोगों पर गांजा से मिले तत्वों का इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है.
दावे पर कितना भरोसा किया जा सकता है?
शोधकर्ताओं ने गांजे के 200 से ज्यादा स्ट्रेन्स का अवलोकन किया और उनमें से 7 स्ट्रेन पर स्टडी की. इस स्टडी में ऐसे तीन नए स्ट्रेन पाए गए हैं जबकि पूर्व में हो चुकी स्टडीज में भी ऐसे स्ट्रेन्स का पता चला है. इन स्ट्रेन्स को नंबर 4, 8 और 14 कहा गया है. इन्हें ICU में भर्ती कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए टेस्ट करने की योजना है.
कनाडा के शोधकर्ताओं द्वारा की गई यह रिसर्च फिलहाल 'रिसर्च स्क्वेयर' में प्री-प्रिंट हुई है, जबकि इसे पियर रिव्यू नहीं किया गया है. पियर रिव्यूड जर्नल में प्रकाशित होने के बाद रिसर्च को पुख्ता माना जाता है. एक्सपर्ट्स की मानें तो अभी इस पर और अग्रेतर अध्ययन की जरूरत है.