Covid-19: शोध के अनुसार, दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा घुलने-मिलने के लिए उकसाता है कोरोना
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना सहित अन्य जानलेवा संक्रमण का सबब बनने वाले वायरस मानव मस्तिष्क पर कब्जा कर संक्रमित का बर्ताव बदल सकते हैं। स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क का हालिया अध्ययन तो कुछ यही बयां करता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक सार्स-कोव-2 वायरस 'एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स (एसीसी)' को अपने इशारों पर नचाता है। 'एसीसी' मानव मस्तिष्क का वह हिस्सा है, जो भावनाओं के नियंत्रण और सामाजिक प्रवृत्ति के निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है। इससे संक्रमित सोशल डिस्टेंसिंग को नजरअंदाज करने और दोस्तों-रिश्तेदारों से ज्यादा घुलने-मिलने के लिए प्रेरित होते हैं।
चिंता की बात तो यह है कि कोरोना वायरस लक्षण उभरने से पहले ही लोगों के बर्ताव में बदलाव लाने लगता है। इससे संक्रमण के तेजी से फैलने का जोखिम बढ़ जाता है।मुख्य शोधकर्ता डॉ. फ्रैंक रेयान की मानें तो कोविड-19 ही नहीं, फ्लू और रेबीज के मामले में भी वायरस की यही प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
दरअसल, वायरस अपनी प्रजनन दर बढ़ाने के लिए 'एसीसी' को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इससे उनका प्रसार तेज होने के साथ ही मारक क्षमता में भी वृद्धि आती है। रेयान के अनुसार सार्स-कोव-2 वायरस ज्यादातर 'इंक्युबेशन (रोगोद्भवन) काल' में 'एसीसी' को अपनी गिरफ्त में लेता है।
यह वह काल है, जिसमें संक्रमण शरीर में अपनी संख्या बढ़ाने की कवायद में जुटा होता है। इसमें सर्दी-जुकाम, बुखार, सांस लेने में तकलीफ सहित अन्य लक्षण उभरने की गुंजाइश कम ही होती है। अध्ययन के नतीजे 'जर्नल मेडिकल हाइपोथेसिस' के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
फ्लू वायरस भी कम खतरनाक नहीं
-2010 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कुछ वयस्कों को फ्लू वायरस के संवर्द्धित रूप से लैस टीका लगाया
-02 दिन के भीतर ही सभी प्रतिभागियों के सामाजिक व्यवहार में बड़ा बदलाव देखने को मिलने लगा
-54 लोगों से औसतन मुलाकात की थी इन लोगों ने टीकाकरण से पहले, बाद में 101 हो गई यह संख्या