COVID-19

87 देशों में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू, जाने दुनिया के वो हिस्से जहां अब तक नहीं पहुंची वैक्सीन

jantaserishta.com
22 Feb 2021 3:47 AM GMT
87 देशों में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू, जाने दुनिया के वो हिस्से जहां अब तक नहीं पहुंची वैक्सीन
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फाइल फोटो 

ऐसे वक्त में जब दुनिया के कई हिस्सों में कोरोना वायरस का संक्रमण वापसी कर रहा है. केस बढ़ रहे हैं, वायरस के नए-नए स्ट्रेन ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका, ब्राजील, भारत, जापान, फिनलैंड समेत कई देशों में लगातार सामने आ रहे हैं. जो कि पहले के वेरिएंट से ज्यादा घातक भी हैं. ऐसे वक्त में दुनिया के देशों में एक और लड़ाई जारी है वैक्सीन को लेकर. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस इसे वैक्सीन नेशनलिज्म का नाम देते हैं और आने वाले खतरे को लेकर आगाह भी कर रहे हैं.

दुनिया में अभी 87 देशों में कोरोना वैक्सीनेशन का काम शुरू हुआ है और 20 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डोज दी भी जा चुकी है लेकिन इससे भी कई गुणा ज्यादा आबादी अभी वैक्सीन की पहुंच से दूर है. रोज दुनिया में वैक्सीनेशन का औसत 6,502,853 है और अगर इस स्पीड में वैक्सीन लगाने का काम चलता रहा तो भी दुनिया भर की 75 फीसदी आबादी को दो डोज वैक्सीन लगाने में 4.8 साल का वक्त लग सकता है. एक्सपर्ट इसी समस्या को लेकर चिंता जता रहे हैं. इससे महामारी से निजात पाने में लंबा वक्त लग सकता है.
वैक्सीन नेशनलिज्म क्यों बताया जा रहा है खतरा?
यूएन महासचिव गुटरेस ने इस बारे में चेताते हुए कहा कि 130 से अधिक देश ऐसे हैं जहां वैक्सीन की एक भी डोज अबतक नहीं पहुंची है. जबकि दुनिया में इस्तेमाल के लिए मंजूर वैक्सीन की 75 फीसदी डोज पर सिर्फ 10 देशों का कब्जा है. कोरोना वैक्सीनेशन में अभी सबसे आगे अमेरिका है जहां 5 करोड़ 70 लाख लोगों को वैक्सीन की डोज अबतक दी जा चुकी है. अमेरिका के बाद इस रेस में चीन और फिर यूरोपीय यूनियन के देश हैं.
आबादी के हिस्से के मुताबिक देखा जाए तो यूनाइटेड अरब अमीरात ने अपनी आबादी के 81 फीसदी हिस्से और इजरायल ने आबादी के 54 फीसदी हिस्से को वैक्सीन की एक डोज लगा दी है.
अफ्रीका को लेकर दुनिया में क्यों हैं चिंता?
लेकिन वर्ल्ड कम्युनिटी को अब असल चिंता उन गरीब और मध्यम आय वाले देशों की है जहां कोरोना का प्रसार देर से पहुंचा है और अभी तेजी के फेज में है, लेकिन उनकी पहुंच अभी वैक्सीन तक नहीं है. दुनिया में ऐसे करीब 130 देश हैं जहां वैक्सीन की एक भी डोज अभी तक नहीं पहुंची है. ऐसे देशों तक सस्ते में वैक्सीन पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने COVAX नामक पहल की है लेकिन बड़े देशों द्वारा बड़ी कंपनियों की वैक्सीन डोज की ओवर बुकिंग के कारण ऐसा अभी संभव नहीं हो सका है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है वैक्सीन की होर्डिंग के कारण महामारी की रोकथाम में लगने वाला समय बढ़ जाएगा और दुनिया को अभी और नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा.
क्या है खतरा?
वैक्सीन के असमान वितरण को लेकर आने वाले खतरे पर चेताते हुए नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ के प्रोफेसर ब्रूक बेकर कहते हैं- एक देश के एक हिस्से के लोगों को वैक्सीन लगाने या दुनिया के कुछ देशों के लोगों को वैक्सीन लगा देने से इस खतरे का खात्मा नहीं हो सकता. जबतक कि वायरस के प्रसार का खतरा कहीं और मौजूद हो.'
प्रोफेसर बेकर कहते हैं- 'इस तरह के वैक्सीनेशन से आप अपनी आबादी को प्रोटेक्शन नहीं दे रहे हैं बल्कि उन्हें प्रोटेक्शन देने का एक भ्रम भर दे रहे हैं.'
खासकर अफ्रीकी देशों को लेकर विश्व स्तर पर सबसे अधिक चिंता जताई जा रही है. दक्षिण अफ्रीका इस महाद्वीप में कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है. जहां 15 लाख लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं जबकि 50 हजार मौते हो चुकी हैं. कोरोना के नए वेरिएंट ने साउथ अफ्रीका में संकट को और बड़ा कर दिया है. यहां इसी हफ्ते वैक्सीनेशन का काम शुरू हुआ है लेकिन बहुत सीमित संख्या में डोज आए हैं. संकट जारी रहने के और भी खतरे हैं. वायरस का संकट जितना लंबा खिंचेगा उतना ही संकट भी लंबा खिंचेगा. साउथ अफ्रीका में पिछले साल मार्च में शुरू लॉकडाउन के बाद से 30 फीसदी बेरोजगारी दर बढ़ चुकी है, रिलीफ के लिए सरकार की ओर से घोषित करोड़ों की राशि करप्शन के आरोपों में घिरकर रह गई और आम लोगों की मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं. महामारी जारी रही तो ये संकट और बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा.
17 देश रेड जोन में
अफ्रीका में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर दुनियाभर में चिंता है. बढ़ते केस और नए वेरिएंट को लेकर अफ्रीका के 17 देशों को ब्रिटेन ने रेड जोन में डाल दिया है. अंगोला, बोत्सवाना, बुरुंडी, केप वेरडे, डीआरसी, एसवैतिनी, लेसोथो, मलावी, मॉरिशस, मोजाम्बिक, नामीबिया, रवांडा, सेशेल्स, साउथ अफ्रीका, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बॉब्वे समेत कई देशों में बढ़ता खतरा और वैक्सीन तक पहुंच नहीं होना दूसरे देशों के लिए भी खतरे की बात साबित हो सकती है.
तंजानिया का संकट और भी अलग
अफ्रीका में कोरोना को लेकर एक नए तरह का संकट भी है. यहां के कई देश कोरोना संकट को लेकर अब भी खतरे को टालने के लिए आंकड़ों को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहे. डब्ल्यूएचओ की अपील के बावजूद तंजानिया की सरकार कोरोना के आंकड़े शेयर नहीं कर रही बल्कि देश में कोरोना की मौजूदगी को ही नकार रही है. तंजानिया में उपराष्ट्रपति के शेफ की मौत हुई जिसे कोरोना से मौत बताया जा रहा है लेकिन सरकार खुले रूप में कोरोना संक्रमण को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
तंजानिया में नामीबिया की थर्ड सेक्रेटरी की मौत का कारण भी कोरोना को बताया जा रहा है लेकिन इसे भी कोरोना से जोड़ने को एजेंसियां तैयार नहीं हैं. पिछले साल अप्रैल में 509 केस आने के बाद से वहां की सरकारी वेबसाइट पर भी कोरोना के आंकड़े अपडेट नहीं हुए हैं. तंजानिया के राष्ट्रपति वैक्सीनेशन को खतरनाक बताते हैं और कहते हैं कि अगर वैक्सीनेशन होता तो एड्स, मलेरिया, कैंसर की वैक्सीन कब की बन चुकी होती.
अफ्रीका के अलावा दुनिया के कई इलाके और भी हैं जिन्हें लेकर दुनिया में चिंता है. जी7 देशों में ये चर्चा शुरू हुई है कि अपने कोटे से 4 से 5 फीसदी वैक्सीन डोज ऐसे देशों को दिए जाएं जहां अभी वैक्सीन नहीं पहुंची है. यूरोप में ये मांग तेज हो रही है कि मिडिल ईस्ट के देशों और बाल्कन राष्ट्रों को वैक्सीन लगाए बिना अपनी इकोनॉमी और विमान सेवाओं को खोलने का कोई फायदा नहीं होगा. वायरस का प्रसार होता ही रहेगा.
कब और कैसे मिलेगी गरीब देशों को वैक्सीन?
आबादी और आर्थिक हालात पर काम करने वाली संस्था ONE के अनुसार अमीर देशों ने अपनी आबादी की जरूरतों से भी एक अरब अधिक वैक्सीन डोज बुक कर रखा है. जैसे कनाडा ने अपनी आबादी से 500 फीसदी अधिक, ब्रिटेन 327 फीसदी अधिक, चिली 244 फीसदी अधिक, न्यूजीलैंड 242 फीसदी और ऑस्ट्रेलिया ने 226 फीसदी डोज अधिक बुक कर रखे हैं.
इस समस्या के बीच वैक्सीन होर्डिंग पर संयुक्त राष्ट्र की अपील के बाद ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने अपनी आबादी के इस्तेमाल के बाद बची वैक्सीन डोज को कोवैक्स पूल के लिए देने का ऐलान किया है.
कम और मध्यम आय के देश अब बड़ी कंपनियों से वैक्सीन के लिए बातचीत कर रहे हैं लेकिन कंपनियों के लिए पहले से बुक डोज की सप्लाई ही अभी चुनौती है. नए ऑर्डर की सप्लाई तो उसके बाद के फेज में होने की संभावना है. मॉर्डना जैसी कंपनी जिसकी वैक्सीन की डिमांड सबसे ज्यादा है लेकिन किसी नए देश के लिए सप्लाई शुरू होने में 12 महीने से कम समय नहीं लगेगा. लेकिन जिस तरह से खतरा बढ़ रहा है उसमें इंतजार और संकट को बढ़ाएगा ही.
वैक्सीनेशन के बावजूद खतरा बरकरार
भारत में भी एक करोड़ से अधिक आबादी को कोरोना वैक्सीन की डोज लग चुकी है. इसके बावजूद कोरोना के केस एक बार फिर बढ़ते दिख रहे हैं. भारत में खासकर महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश के इंदौर आदि कई स्थानों पर कोरोना के कहर की वापसी होती दिख रही है. इसी तरह दुनिया भर में कोरोना के सवा दो करोड़ एक्टिव केस हैं. 4 लाख से ऊपर नए केस रोज आ रहे हैं जबकि मौतों का आंकड़ा भी रोज 11 हजार से ऊपर रह रहा है. भारत, रूस, अमेरिका, ब्राजील, ब्रिटेन जैसे कई मुल्कों में कोरोना के नए मामले अभी भी चिंता का विषय बने हुए हैं. Live TV
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