पांच साल बाद चुनाव, कई पुराने ऐशबाज मैदान में पिछले दरवाजे से प्रेसक्लब में एंट्री कर वर्चस्व कायम करने के फिराक में रूचिर गर्ग और विनोद वर्मा प्रेस क्लब के जरिए अधिकारी और नेताओं को साधने के जुगाड़ में सत्ता में रहते किसी पत्रकार की पूछपरख नहीं की, अब हाथ जोड़ते फिर रहे रायपुर। छत्तीसगढ़ …
- पांच साल बाद चुनाव, कई पुराने ऐशबाज मैदान में
- पिछले दरवाजे से प्रेसक्लब में एंट्री कर वर्चस्व कायम करने के फिराक में रूचिर गर्ग और विनोद वर्मा
- प्रेस क्लब के जरिए अधिकारी और नेताओं को साधने के जुगाड़ में
- सत्ता में रहते किसी पत्रकार की पूछपरख नहीं की, अब हाथ जोड़ते फिर रहे
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद से हर जगह परिवर्तन दिखाई दे रहा है, इसी कड़ी में प्रेस क्लब में सदस्यों के अथक प्रयास के बाद 5 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है जिसके तहत 17 फरवरी को मतदान होंगे । कल इस संबंध में एक पैनल की बैठक बूढ़ेश्वर मंदिर हाल में हुआ जिसमें सौ से अधिक लोग शामिल हुए। सभी ने एकजुट होकर चुनाव लड़ने की बात कही और चुनाव के उपरांत पिछले कार्यकाल में रह गई कमियों को पूरा करने का वादा किया। साथ ही प्रेस क्लब की गरिमा को बरकरार रखने के लिए आश्वासन दिया। प्रेसक्लब अध्यक्ष बनने के लिए जिस तरीके से होड़ मची हुई है उसे देख कर लगता है कि कुछ लोग वाकई प्रेस क्लब की गरिमा को बचाने के लिए लड़ रहे और कुछ लेग अपने फायदे के लिए लड़ रहे है। चूंकि राजधानी के प्रेस क्लब के अध्यक्ष का पद काफी प्रभावशाली माना गया है।
इस वजह से लोग अध्यक्ष बनने के लिए जी तोड़ मोहनत कर रहे है । वहीं कुछ लोग प्रेस क्लब में जगह नहीं बना पाने के कारण विधानसभा में जाकर मीडिया सलाहकार बनने की जबरदस्ती बैठ गए है और वहां अपनी मनमानी कर रहे है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि सभी अध्यक्षों का एक ही मकसद हो गया है कि अपने परिवार के बीबी-बच्चों, भाई -भाभी , साला -साली को सरकारी नौकरी लगाना है, इसके लिए चाटुकारिता की सभी हदें तक पार कर चुके है। इन सब को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि पत्रकारों की गरिमा बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ रहे है, वही कुछ लोग पिछली सरकार में मलाई दार पदों पर आसीन थे, पद जाने के बाद जलबिन मछली की तरह तड़प रहे है। येनकेन प्रकारेण प्रेसक्लब में एंट्री पाकर शासन और प्रशासन के नजदीकी बनकर अपने खिलाफ होने वाली जांच से बचना चाह रहे है। जिसमें प्रमुख रूप से वामपंथी विचारधारा के पत्रकार है । वहीं मतदान के लिए अभी से चुनावी समीकरण बनने लगे हैं, जिसमें परंपरागत पुराने पैनल और सक्रिय लोग तो पीछे हैं लेकिन पिछली सरकार में सत्ता की भागीदारी संभालने वाले पत्रकारों ने प्रेस क्लब में एंट्री का मोर्चा संभाल लिया है। जो पत्रकार कम नेता की मुद्रा में हाथ जोड़ते नजर आ रहे है। ताकि किसी भी तरह से सदस्यों का समर्थन मिल सके।
जिसके तहत वामपंथी पत्रकारों का दल और कांग्रेस सरकार के करीबी लोग किसी भी तरीके से प्रेस क्लब में घुसकर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते है क्योंकि वर्तमान में बड़े -बड़े कांग्रेसियों पर ईडी की नजर है इसी से बचने के लिए प्रेस क्लब अध्यक्ष के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा किया है चूंकि इनके ऊपर कांग्रेस का साया हट गया है।
इसके कारण वे प्रेस क्लब की शरण में आना चाहते है। उन्होंने अपने वामपंथी विचारधारा से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी के पक्ष में दो अध्यक्ष पद के दावेदारों को बैठा दिया है। बताया जाता है कि पिछले सरकार में सक्रियता के चलते कई दिग्गजों ने प्रेस क्लब से अपने आप को दूर रखा था, लेकिन पीछे से संचालन इनके इशारों पर होता रहा, अब प्रेस क्लब चुनाव की घोषणा के बाद उनकी सक्रियता के चर्चे हैं बताया जाता है कि सरकार में अहम पदों मैं रहते हुए मीडिया मैनेजमेंट और पत्रकारों को मैनेज करने के बड़े गेम को अंजाम देने वाले पत्रकार एक बार फिर सक्रिय हो गए है। सरकार जाने के बाद इन पत्रकारों ने नए पैनल के जरिए प्रेस क्लब में प्रवेश की रणनीति बनाई है। कम्युनिस्ट विचारधारा को पत्रकारिता में फलने फूलने के लिए इन लोगों का प्रेस क्लब जैसी वैचारिक संस्थानों पर कब्जा जमाने की मंशा है। जबकि पिछले 5 साल, नियम विरुद्ध एक कार्यकारिणी के संचालक को इनका अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग रहा।