रूचिर गर्ग और विनोद वर्मा की रायपुर प्रेस क्लब में इंट्री की तैयारी

रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद से हर जगह परिवर्तन दिखाई दे रहा है, इसी कड़ी में प्रेस क्लब में सदस्यों के अथक प्रयास के बाद 5 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है जिसके तहत 17 फरवरी को मतदान होंगे । मतदान के लिए अभी से चुनावी …
रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद से हर जगह परिवर्तन दिखाई दे रहा है, इसी कड़ी में प्रेस क्लब में सदस्यों के अथक प्रयास के बाद 5 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है जिसके तहत 17 फरवरी को मतदान होंगे । मतदान के लिए अभी से चुनावी समीकरण बनने लगे हैं, जिसमें परंपरागत पुराने पैनल और सक्रिय लोग तो पीछे हैं लेकिन पिछली सरकार मे सत्ता की भागीदारी संभालने वाले पत्रकारों ने प्रेस क्लब में एंट्री का मोर्चा संभाल लिया है।
जिसके तहत वामपंथी पत्रकारों का दल और कांग्रेस सरकार के करीबी लोग किसी भी तरीके से प्रेस क्लब में घुसकर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते है क्योंकि वर्तमान में बड़े -बड़े कांग्रेसियों पर ईडी की नजर है इसी से बचने के लिए पे्रस क्लब अध्यक्ष के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा किया है चूंकि इनके ऊपर कांग्रेस का साया हट गया है।
इसके कारण वे प्रेस क्लब की शरण में आना चाहते है। उन्होंने अपने वामपंथी विचारधारा से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी के पक्ष में दो अध्यक्ष पद के दावेदारों को बैठा दिया है। बताया जाता है कि पिछले सरकार में सक्रियता के चलते कई दिग्गजों ने प्रेस क्लब से अपने आप को दूर रखा था, लेकिन पीछे से संचालन इनके इशारों पर होता रहा, अब प्रेस क्लब चुनाव की घोषणा के बाद उनकी सक्रियता के चर्चे हैं बताया जाता है कि सरकार में अहम पदों मैं रहते हुए मीडिया मैनेजमेंट और पत्रकारों को मैनेज करने के बड़े गेम को अंजाम देने वाले पत्रकार एक बार फिर सक्रिय हो गए है। सरकार जाने के बाद इन पत्रकारों ने नए पैनल के जरिए प्रेस क्लब में प्रवेश की रणनीति बनाई है। कम्युनिस्ट विचारधारा को पत्रकारिता में फलने फूलने के लिए इन लोगों का प्रेस क्लब जैसी वैचारिक संस्थानों पर कब्जा जमाने की मंशा है। जबकि पिछले 5 साल, नियम विरुद्ध एक कार्यकारिणी के संचालक को इनका अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग रहा।
यही वजह है कि पिछले 5 साल चुनाव भी नहीं हो पाए और सरकार ने चुप्पी साधे रखी थी। बार-बार सरकारी संस्थानों में दरवाजा खटखटाने के बाद भी लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने वाले पत्रकारों को खाली हाथ लौटना पड़ा था। असवैधानिक कार्यकारिणी को 5 साल तक संचालित करवाने में कम्युनिस्ट विचारधारा के कुछ बुद्धिजीवी सत्ताधारी पत्रकारों का ही दिमाग था। बहरहाल प्रेस चुनाव के इस दंगल में ताल ठोकर कई पैनल मैदान में उतर रहे हैं। लेकिन प्रेस क्लब में लंबे समय से सत्ता की चाहत रखने वाले वामपंथी का पैनल बनाकर तैयार हो गया है। यह कम्युनिस्ट गैंग के जरिये एक बार फिर गर्ग वर्मा की एंट्री होगी।
