बिलासपुर। सिम्स चिकित्सालय की बदहाली पर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को बताया गया है कि यहां पर अधिकांश डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में रुचि लेते हैं, मरीजों पर ध्यान नहीं देते। साथ ही यहां कार्य करने की संस्कृति भी नहीं है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने सिम्स चिकित्सालय में व्याप्त अव्पयवस्थाओं पर स्वतः संज्ञान लेकर जनहित याचिका अपनी कोर्ट में ली है, जिस पर लगातार सुनवाई हो रही है।
गुरुवार की सुनवाई में कोर्ट की ओर से नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर सूर्य कवलकर डांगी, संघर्ष पांडेय और अपूर्व त्रिपाठी की ओर से निरीक्षण के बाद तैयार की गई रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सिम्स की व्यवस्था में काफी सुधार आया है। साफ सफाई की स्थिति ठीक हुई और पहली बार बरसों से जाम नालियों से मलबा निकाला गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बावजूद सिम्स में सुधार के लिए वृहद स्तर पर प्रयास किया जाना जरूरी है। यहां हर दिन औसतन 1174 मरीज आते हैं और पौने दो सौ मरीज भर्ती होते हैं। रोजाना सात लोगों की मौत हो जाती है। यहां आने वाले मरीजों के परिजनों के लिए बैठने की व्यवस्था नहीं है, उन्हें फर्श में बिठाया जाता है। कोर्ट कमिश्नर अधिवक्ताओं की ओर से फोटोग्राफ्स सहित बिल्डिंग की स्थिति, विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता, स्टाफ की कमी, साफ सफाई, जांच के लिए मशीनों की स्थिति, सुरक्षा व्यवस्था, बजट आदि की जानकारी भी दी गई।
हाईकोर्ट के निर्देश पर नियुक्त किए गए ओएसडी, आईएएस आर प्रसन्ना ने भी कहा कि सिम्स में वर्क कल्चर ही नहीं है। कोई भी अपना काम जिम्मेदारी के साथ नहीं करना चाहता। प्रसन्ना ने बंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सिम्स की व्यवस्था में सुधार लाने का सुझाव देते हुए रिपोर्ट सौंपी है। मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी।