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हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है मकर संक्रांति पर्व

12 Jan 2024 11:34 PM GMT
हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है मकर संक्रांति पर्व
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धमतरी। भारत की संस्कृति और सभ्यता में पर्व का विशेष स्थान माना जाता है।यहाँ की प्राचीन संस्कृति यहाँ के लोक-पर्व,रीति-रिवाज,परम्पराएँ, मान्यताएँ, ये सब हमारे धर्म,आस्था,विस्वास का प्रतीक है।हमारे देश मे अनेक जाति,धर्म,संस्कृति,भाषा-भाषी व सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं,बाउजूद इसके इनमें आपस मे प्रेम,सद्भावना,भाईचारे और अनेकता में एकता की मिशाल देखने को मिलती है।यही हमारे …

धमतरी। भारत की संस्कृति और सभ्यता में पर्व का विशेष स्थान माना जाता है।यहाँ की प्राचीन संस्कृति यहाँ के लोक-पर्व,रीति-रिवाज,परम्पराएँ, मान्यताएँ, ये सब हमारे धर्म,आस्था,विस्वास का प्रतीक है।हमारे देश मे अनेक जाति,धर्म,संस्कृति,भाषा-भाषी व सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं,बाउजूद इसके इनमें आपस मे प्रेम,सद्भावना,भाईचारे और अनेकता में एकता की मिशाल देखने को मिलती है।यही हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता है।और यही विशेषता हमे पूरे विश्व मे अलग पहचान दिलाती है।यही विशेषता और पहचान दिलाने में हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों में अन्यान्य प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं,और सभी पर्वों का अपना अलग-अलग मास के हिसाब से महत्व और विशेषता भी है।जैसे पौष मास पूर्णिमा में छत्तीसगढ़ प्रांत में छेरछरा पर्व का विशेष स्थान है जिसमे यहाँ के जनमानस नया फसल आने की खुशी में दान देने और लेने को पुण्य का काम समझते हैं।और पुनः आगामी अच्छी फसल की कामना कुल देवता से करते हुए पर्व धूमधाम से मनाते हैं।

इसी प्रकार उत्तर दक्षिण प्रांत में बिहू लोहड़ी,और मकर संक्रांति का पर्व धूम-धाम से मनाते हैं।

बात करें लोहड़ी का तो यह पंजाब,हरियाणा का प्रमुख पर्व है जिसको पौष मास के एकादशी अर्थात मकर संक्रांति के पूर्व संध्या को मनाया जाता है।जिसमे यहाँ के लोग सायं काल से लेकर रात्रि में आसपास व पूरे घर के लोग इकट्ठे होते हैं,और लकड़ियों की ढेरी बनाकर उसमें आग जलाकर,उसके चारों तरफ इकट्ठे होकर नाचते- गाते हैं और लोहड़ी पर्व की खुशियाँ मनाते हैं।आग की ढेरी में गुड़ से बनी चीजें अर्पित करते हैं,और एक दूसरे को बांटकर खाते-खिलाते हैं।यही प्रेम और सद्भावना का सबसे बड़ा प्रतीक और उदाहरण माना जाता है।

लोहड़ी के शाब्दिक अर्थ में जाएँ तो

इसमें ल +ओह +ड़ी = 'लोहड़ी' अर्थात लकड़ी की सुखी ओपलें और रेवडी के प्रतीक हैं।इसके ठीक दूसरे दिन "मकर सक्रांति" का पर्व आता है।और यह माना जाता है कि श्वतुर्यज्ञ(अवशेष) का मकर संक्रांति पर ही होता है। और इस प्रकार से लोहड़ी पर्व को उसी का अवशेष है माना जाता है।मकर के दिन पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य देव का ध्यान, दान, पुण्य के कार्य किये जाते हैं।इस दिन दान करने से इसका सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है ऐसा माना जाता है।इस दिन तील गुड़ के दान का अत्यधिक महत्व है। मकर सक्रांति का भी अपना महत्व है,इसी दिन से सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करता है।और फिर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर अग्रसर होता है।इससे प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन शुरू हो जाता है।ठंड में गिरावट आ जाती है। मकर सक्रांति उत्साह उमंग का का पर्व है।इस पर्व से एक नई शक्ति और ऊर्जा का संचार होता है।इस प्रकार से यह कहा जा सकता है की हमारे हिन्दू संस्कृति में पर्व का हमारे जीवन से बहुत कुछ संबंध है जो हमारी आस्था, विस्वास को मजबूती प्रदान करता है।

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