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खुद की नैया भंवर में, कैसे होते 75 पार…

Nilmani Pal
4 Dec 2023 6:27 AM GMT
खुद की नैया भंवर में, कैसे होते 75 पार…
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छत्तीसगढ़ में अहंकारी, बदजुबानी सरकार का अंत

‘मोदी की गारंटी’ पर जनता ने जताया पूरा भरोसा, 2023 की हैट्रिक 2024 चुनावों में बनेगी जीत की गारंटी

नई दिल्ली (ए/नेट डेस्क)। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में प्रंचड जीत हासिल कर भाजपा ने हैट्रिक लगा दी है। इस जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज की हैट्रिक में 2024 की हैट्रिक की गारंटी है। बीजेपी ने आज ऐसी हैट्रिक मारी है, जहां कांग्रेस के पंजे से दो राज्यों को खींचकर कमल खिला दिया। मध्य प्रदेश में दो दशक के शासन के बावजूद बीजेपी जीत गई है। हैट्रिक बीजेपी ने लगााई है, क्योंकि चुनाव में मोदी की गारंटी ही घोषणा पत्र बनी और अब जीत को उदघोष की वजह भी बन चुकी है। आज की हैट्रिक इसलिए लग पाई क्योंकि मोदी के नाम और काम पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में अलग-अलग मिलाकर कुल 35 फीसदी वोट पड़ा है। हैट्रिक के साथ ही 2014 से अब तक 32 राज्यों का चुनाव बीजेपी या बीजेपी गठबंधन नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जीत चुका है। हैट्रिक के साथ ही अब देश में 58 फीसदी इलाके और 57 फीसदी आबादी पर बीजेपी या बीजेपी गठबंधन का शासन है। चुनावी नतीजों में बीजेपी की हैट्रिक ने ये भी बता दिया कि विपक्ष का ओबीसी आरक्षण और जाति गणना का सियासी कार्ड नहीं चलने वाला। तीन राज्यों की हैट्रिक में कैसे 2024 जीतने की हैट्रिक की गारंटी है। इसे समझने के लिए हमने पीएम मोदी के भाषण को समझना जरूरी है। जिसमें प्रधानमंत्री ने साफ किया कि हैट्रिक की गारंटी 2024 में इसलिए है क्योंकि जाति में बांटने का सियासी कार्ड अगर विपक्ष के पास तो राष्ट्रनिर्माण में चार जातियों के विकास की गारंटी का कार्ड उनके पास है। पीएम ने कहा, इस चुनाव में देश को जातियों में बांटने की बहुत कोशिश हुई। लेकिन मैं लगातार कह रहा था। मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं। चार जाति की बात करता हूं। नारी शक्ति, युवा शक्ति, हमारे किसान और हमारे गरीब परिवार इस चार शक्तियों को ही सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है।

जिस वक्त कांग्रेस सिर्फ जाति गणना और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाकर अपने दो शासन वाले राज्यों और मध्य प्रदेश में बीजेपी को हराना चाहती थी। वहां नरेंद्र मोदी की गारंटी के आगे ये कार्ड बुरी तरह फ्लॉप हुए हैं। पीएम को 2024 में भी हैट्रिक का भरोसा : यही वजह है कि पीएम को भरोसा है अभी हैट्रिक लगवाने वाली जनता 2014, 2019 के बाद 2024 में सत्ता की तीसरी जीत दिलाकर हैट्रिक लगवाएगी। राजस्थान में पीएम की 14 रैली, 2 रोड शो : एक साथ तीन राज्य जीतना या फिर लगातार लोकसभा चुनाव जीतना, आसान तो नहीं होता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तीन राज्यों में जीत के बाद एक बात कहते हैं। उन्होंने कहा कि जहां लोगों की बाकी पार्टियों से उम्मीद खत्म होती है, वहां से मोदी की गारंटी शुरू होती है। मध्य प्रदेश में बहुत से लोग कांटे की टक्कर बताते थे। राजस्थान-छत्तीसगढ़ में लोग कहते थे कि कांग्रेस अपनी योजनाओं से मजबूत खड़ी है। लेकिन सबसे बड़ा भरोसा वोटर के बीच नरेंद्र मोदी का बना। जिसके लिए राजस्थान में प्रधानमंत्री ने 14 रैली कीं, 2 रोड शो किए। राजस्थान के 16 जिलों में 8 दिन के भीतर प्रचार प्रधानमंत्री ने किया। इसका नतीजा बीजेपी की सीटें बहुमत के पार हैं। मध्य प्रदेश में 14 रैली और 1 रोड शो प्रधानमंत्री मोदी ने किया। 15 जिलों तक प्रचार किया। नतीजा 18 साल से लगातार सरकार के बावजूद कहीं कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं नजर आई। फिर से बीजेपी सरकार बनी। छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने पांच जिलों में पांच रैलियां कीं। नतीजा जितनी सीटें कांग्रेस जीत पाई, उससे ज्यादा की बढ़त बीजेपी ने इस बार हासिल की। अब तक नतीजों को देखने के बाद पता चला है कि प्रधानमंत्री ने जहां प्रचार किया, वहां पर बीजेपी की जीत के साथ स्ट्राइक रेट 65 फीसदी से ज्यादा का है। जिसमें सबसे बड़ी वजह बनी है- मोदी की गारंटी। विपक्ष की तरफ से फ्री का कार्ड था। जाति गणना का राग था। ओबीसी को आबादी मुताबिक आरक्षण का अलाप था। मप्र के लिए क्या था कांग्रेस का वादा?: मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से 2 लाख की कर्जमाफी का वादा था। महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए देने का इरादा था। 100 यूनिट बिजली माफ, 200 यूनिट बिजली पर बिल हाफ की घोषणा थी। कांग्रेस पुरानी पेंशन के वादे से टेंशन देने की सोच रही थी। पांच सौ में सिलेंडर देने का ऐलान था। जाति गणना करा देंगे और पिछड़ों को आरक्षण देने का प्लान था। राजस्थान में नहीं चली गहलोत की जादूगरी : राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत की जादूगरी का दांव था। महिलाओं को मुफ्त मोबाइल बांटना सरेआम था। 500 में सिलेंडर बंटने लगा। 100 यूनिट मुफ्त बिजली के साथ 200 यूनिट तक बिल घटने लगा। छात्राओं को फ्री लैपटॉप-टैबलेट की गारंटी दी। ओल्ड पेंशन लागू करके ज्यादा पैसे की वॉरंटी दी। लेकिन नहीं चला राजस्थान में जादूगर का कोई डिजाइन। चली तो चली सिर्फ मोदी की गारंटी ! छत्तीसगढ़ की जनता का ध्यान किसने खींचा? : छत्तीसगढ़ में तो मोदी की गारंटी ऐसी चली कि पोस्ट पोल सर्वे कहता है कि हर सौ में तेरह लोग सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर वोट करने पहुंचे। महिलाओं ने साल के बारह हजार रुपए देने वाली गारंटी पर भरोसा किया। सिलेंडर से लेकर रामलला के मुफ्त दर्शन की गारंटी पर वोट दिया। नतीजा आपके सामने है। दो नए प्रदेश- राजस्थान, छत्तीसगढ़ जोड़कर मध्य प्रदेश में फिर से सरकार बनाकर बीजेपी गठबंधन की 16 प्रदेशों में सरकार बन चुकी है। अकेले अपने दम पर 12 विधानसभाओं में बीजेपी की सरकार है। रणनीति साफ थी, एक तरफ मोदी ने अपने काम को जनता के बीच ले गए, जो स्कीम थी, उसके बारे में वोटर से जिक्र किया।

मध्य प्रदेश के चुनावी नतीजे से इस बात को समझिए ठ्ठ मध्य प्रदेश में महिला वोटर बाहुल्य सीट पर ज्यादातर बीजेपी को जीत मिली। ठ्ठ दलित वर्ग की 35 में से 26 सीट मध्य प्रदेश में बीजेपी जीती है। ठ्ठ आदिवासी समुदाय की 35 में से 21 सीटों पर बीजेपी जीती है। ठ्ठ ओबीसी वोटर वाली प्रमुख 18 में से 11 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई है। ठ्ठ जबकि पोस्ट पोल सर्वे कहता है कि ओबीसी वोट भी बीजेपी को कांग्रेस से 24 फीसदी ज्यादा मिला है। ठ्ठ ऐसा ही लगभग राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी रहा है। जहां महिलाओं, आदिवासियों, ओबीसी वर्ग, दलित समुदाय का वोट प्रमुखता से हासिल करके बीजेपी जीती है।

छत्तीसगढ़ के रिजल्ट ने सबसे ज्यादा चौंकाया, वहां किन फैक्टर्स पर चूक गई कांग्रेस! छत्तीसगढ़ चुनावों के मद्देनजऱ दुष्यंत कुमार का शेर बहुत मौजूं है। एक्सपर्ट से लेकर आम लोग तक जिस राज्य के बारे में एकमत हों कि यहां तो कांग्रेस ही जीतेगी। वहां ना सिर्फ भाजपा की जीत होती है, बल्कि जीत भी नेक टू नेक न होकर अच्छे खासे मर्जिन से होती हो… तो इसे क्या कह जाए? आखिर कांग्रेस से चूक कहां हुई है? वैसे तो पुलिस की भाषा में कहें तो सब कंट्रोल में ही था। सीएम भूपेश बघेल बेहद पॉपुलर… ओबीसी का चहेता चेहरा… आदिवासियों में भी खास क्रेज… सरकारी विकास योजनाएं सरपट दौड़ रही थीं। विपक्षी पार्टी भाजपा पिटी हुई हालत में थी। मुकाबले के लिए तैयार तक नहीं दिख रही थी, यहां तक कि किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने तक में इंट्रेस्ट नहीं दिखाया गया था। मानो, सब लगभग अनिच्छा से किया जा रहा हो, तब आखिर कांग्रेस से गलती हो कहां गई? एक पार्टी जिसने पिछले चुनावों में बंपर जीत हासिल की हो। इस बार के चुनावों में कहां गच्चा खा गई। जहां उसकी जोरदार जीत की संभावना को धता बताकर भाजपा प्रदेश की 90 सीटों में से 55 सीटें निकालकर सरकार बनाने जा रही हो। तब यह जरूरी हो जाता है कि पता लगाया जाए कि इस हार के पीछे कौन से फैक्टर्स जिम्मेदार हैं। खोजा जाए कि बाहर से सबकुछ कंट्रोल में दिखने वाले इस चुनाव में कांग्रेस से कहां, क्या चूक हो गई? महतारी वंदन योजना का इंपैक्ट: भाजपा जहां राज्य में महतारी वंदन योजना के तहत विवाहित महिलाओं को 12,000 रुपये सालाना की आर्थिक मदद का वादा कर रही हो। राज्य की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 50,000 से अधिक फॉर्म भरवाए रही हो। राज्य की अच्छी खासी आबादी को प्रभावित करने वाली इस योजना को गहराई से समझने में शायद भूपेश बघेल चूक कर गए। जब तक वे इस योजना को समझे और उसकी काट के रूप में 15 हजार रुपये साल देने का वादा किया तब तक काफी देर हो चुकी थी। दीपावली के समय की गई इस घोषणा की जानकारी भी ठीक ढंग से लोगों तक नहीं पहुंच पाई। इस योजना का ही इंपैक्ट रहा कि महिलाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया। मप्र में जिस तरह से लाडली बहना योजना गेमचेंजर साबित हुई कुछ उसी तरह का इंपैक्ट छत्तीसगढ़ में इस योजना का रहा। किसान-मजदूरों को 10 हजार सालाना, युवाओं को 2 लाख नौकरियां: बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भूमिहीन किसानों और मजदूरों को 10,000 रुपये सालाना देने का वादा किया था। यह वादा सीधे तौर पर एक ऐसे वर्ग को एड्रेस था, जिसकी जनसंख्या छ्त्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा युवाओं को जोडऩे के लिए भी बीजेपी ने 2 लाख सरकारी नौकरियों देने का भी वादा किया था। युवा वर्ग ने इस वादे को बहुत पॉजिटिव तरीके से लिया। इस वर्ग ने पीएम मोदी और बीजेपी पर पूरा भरोसा जताया। इन योजनाओं के काउंटर में बघेल ने अपनी पुरानी योजनाओं को ही जारी रखा। नतीजा-एक अन एक्सपेक्टेड रिजल्ट के रूप में सामने आया। सोशल इंजीनियरिंग में इस बार भाजपा ने किया कमाल: पिछली बार भूपेश बघेल ने कमाल की सोशल इंजीनियरिंग की थी। ओबीसी की सभी जातियों को साथ लाने में कामयाब हुई थी। लेकिन इस बार भाजपा ने साइलेंटली ओबीसी की अलग-अलग जातियों को धीरे से अपने साथ जोड़ लिया। टिकट का बंटवार भी जातियों के इसी समीकरण के तहत किया। बघेल शायद मुगालते में रहे, जैसी सोशल इंजीनियरिंग भाजपा ने यूपी में की थी उसी तरह की कलाकारी यहां दोहरा दी। भाजपा की गांव-शहरों में की गई इस महीन कारीगरी को भूपेश बघेल शायद समझने में भूल कर बैठे। सबसे बड़ी बात भूपेश बघेल खुद अपनी ही साहू जाति का बड़ा समर्थन कांग्रेस को नहीं दिलवा पाए। साहू जाति ने इस बार भाजपा को जबर्दस्त समर्थन देकर बड़ी जीत हासिल करने में मदद की। छापे; प्रताडऩा का आरोप, छाप नहीं छोड़ पाए: भूपेश बघेल ने श्वष्ठ-ढ्ढञ्ज के छापों को अपनी सरकार के खिलाफ प्रताडऩा के रूप में प्रोजेक्ट किया। इन छापों के खिलाफ हवा बांधने में ही लगे रहे। वहीं, भाजपा महादेव ऐप, गोबर घोटाला, शराब घोटाले को बघेल की इमेज के साथ चिपका पाने में सफल हो गई। संदेश देती रही कि राज्य में बहुत भ्रष्टाचार हो रहा है। पीएम मोदी सहित भाजपा के बड़े नेता अमित शाह, जेपी नड्डा तक। तक इसी मुद्दे पर कांग्रेस और बघेल सरकार को घेरते नजर आए। भाजपा इस मुद्दे को लगातार उछालती रही। भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के बीच भी मैसेज गया। बघेल अपनी सरकार की छवि को नीट एंड क्लीन बनाए रख पाने में सफल होते नहीं दिखे। सांसदों को उतारने का दांव चल गया: बीजेपी ने यहां भी मप्र, राजस्थान की तरह सांसदों को उतारा। रेणुका सिंह, अरुण साव, विजय बघेल और गोमती साय को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया। नतीजे बता रहे हैं कि विजय बघेल को छोड़ बाकी सांसदों ने न सिर्फ अपनी सीटों को निकाला बल्कि आसपास की कई सीटों को भी प्रभावित किया। यानी सांसदों को उतारने का दांव बीजेपी के पक्ष में गया। बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल भारी पड़ी: राजस्थान के पायलट-गहलोत झगड़े की तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल चल रही थी। दोनों के बीच लंबे समय से रस्साकशी चल रही थी। मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर यह विवाद हुआ था। जो बाद में आलाकमान के समझाने पर सीजफायर में बदला था, लेकिन राख के नीचे चिंगारी हमेशा से रही। इस गुटबाजी का असर सरकार पर भी दिखाई दिया। टिकट वितरण खूब खींचतान हुई। टिकट वितरण में भी यह गुटबाजी दिखाई दी। अपने-अपने कैंडिडेट्स के लिए खूब साम-दाम किया गया। कांग्रेस को टिकट वितरण की इसी खामी की वजह से कई सीटें गंवानी पड़ीं। हालात यहां तक पहुंची की खुद सिंहदेव अपनी सीट हार गए। जबकि पिछली बार उन्होंने सरगुजा की सभी 14 सीटों पर कांग्रेस की जीत पक्की की थी, इस बार सभी 14 सीटों पर कांग्रेस की पराजय हुई। एकमुश्त धान की खरीदी, लोकलुभावन योजनाओं की झड़ी: भाजपा ने राज्य में एक से एक योजनाओं की झड़ी लग दी। 21 क्विंटल धान की एकमुश्त खरीदी का वादा किया, 500 रुपए में सिलेंडर, कांग्रेस की कर्ज माफी के तोड़ के लिए दो साल का बचा हुआ बोनस देने की बात भी भाजपा की तरफ से कही गई। कहीं न कहीं इन बातों ने गरीब तबके को सीधे तौर पर प्रभावित किया। भाजपा के मुकाबले कमजोर रहा कांग्रेस का कैडर: जहां भाजपा और आरएसएस का कैडर राज्य में बहुत सक्रिय रहा। लोगों तक भाजपा के वादे पहुंचाने उन्हें प्रभावित करने, अपने पक्ष के वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने में इस कैडर की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। भाजपा के कांग्रेस से बहुत पीछे रह जाने की भविष्यवाणी के बाद यह कैडर जबर्दस्त तरीके से सक्रिय हुआ। इसकी सक्रियता की बदौलत गांव-शहर के भाजपा के परंपरागत वोटर बाहर निकले। जो निश्चित सी बताई जाने वाली हार की तरफ बढ़ती भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहे। वहीं, कांग्रेस का कैडर और संगठन इस मुगालते में था कि हमारी सरकार बनने जा रही है। इस वजह से संगठन निष्क्रय सा रहा। सरकारी योजनाओं को उन तक पहुंचाने से लेकर वोटरों को घर से निकालने में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई जितनी भाजपा के कैडर ने दिखाई। इसका साफ असर रिजल्ट के रूप में सामने दिखा। अमित शाह-ओम माथुर की मेहनत रंग लाई: अमित शाह ने छ्त्तीसगढ़ की कमान संभाली थी। लगातार राज्य के दौरे किए। उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक लिया। भाजपा उम्मीदवारों की सूची सबसे पहले फाइनल कर घोषित की। 47 नए चेहरों पर दांव लगाया जिसमें से 30 चुने भी गए। उनके साथ ओम माथुर और मनसुख मंडाविया ने काम किया। बिना किसी शोर-शराबे के एक-एक सीट पर किए गए कामों ने भाजपा की जीत पक्की कर दी।

हैट्रिक की गारंटी इसलिए प्रधानमंत्री मोदी दे रहे हैं…

बीजेपी अब हर चुनाव के लिए अलग अलग रणनीति बनाकर उतरने लगी है।

जैसे अगर हर राज्य में मोदी की गारंटी को घोषणा पत्र में इस्तेमाल किया।

तो संभव है कि मध्य प्रदेश में दो दशक से सरकार होने की वजह से एक नया नारा गढ़ा गया। एमपी में पूरा कैंपेन इस बात पर फोकस किया गया कि मोदी के मन में एमपी और एमपी के मन में मोदी।

मध्य प्रदेश में तो पांच महीने पहले ही अपने लाखों पन्ना प्रमुखों को लेकर सीधे पीएम ने सभा की। ठ्ठ इसके अलावा तीनों राज्यों में सांसदों, और केंद्रीय मंत्रियों तक को उतारकर दो लक्ष्य साधे।

सांसद-केंद्रीय मंत्री उतारकर एक तो क्षेत्रीय स्तर पर किसी भी तरह की गुटबाजी होने से रोकी।

दूसरा सांसद और केंद्रीय मंत्री उतारकर तीनों राज्यों में 2024 का लिटमस टेस्ट। यानी एक परीक्षण कर लिया। ये परीक्षण काफी हद तक सफल भी रहा है।

मध्य प्रदेश के लिए समय से काफी पहले उम्मीदवार उतार दिए गए।

जिन सीटों पर लंबे अरसे से एमपी में हार रहे थे, उन पर पहले ही कैंडिडेट घोषित करके फोकस किया गया।

नरेंद्र मोदी की गारंटी थी तो अमित शाह ने एमपी-छत्तीसगढ़ में रणनीति संभाली।

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुद सीधे राजस्थान में मोर्चा संभाला।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ये दो राज्य हैं। जहां चुनौती चुनाव के दौरान कठिन मानी गई थी। क्या था शाह का माइक्रोमैनेजमेंट? मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अमित शाह ने वोटर को साधने वाला माइक्रो मैनेजमेंट किया। वोटर लिस्ट के एक पन्ने पर तीस मतदाता का नाम होता है। मध्य प्रदेश में ऐसी रणनीति तैयार हुई, जहां वोटर लिस्ट के एक पेज में शामिल 30 में से पांच लोगों को पन्ना समिति का सदस्य बनाया गया। यानी वोटर लिस्ट के हर पन्ने का छठा सदस्य बीजेपी की पन्ना समिति का सदस्य होता। इस तरह ज्यादा से ज्यादा वोटर तक पहुंचने का लक्ष्य बीजेपी ने मध्य प्रदेश में हासिल किया। छत्तीसगढ़ के लिए अमित शाह ने अलग तरह की रणनीति बनाई। छत्तीसगढ़ में मारे गए भुवनेश्वर साहू के गरीब पिता ईश्वर साहू को उम्मीदवार बनाकर ओबीसी वर्ग के मजबूत वोटबैंक साहू पर फोकस किया गया। महतारी वंदन योजना के तहत हर साल बारह हजार रुपए देने के लिए लाखों फ़ॉर्म बीजेपी ने भरवाए।

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