अतुल्य चौबे
तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी इन राज्यों में मुख्यमंत्री तय करने के लिए संगठन के नेताओं और राज्य के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ विचार विमर्श में जुटी है। पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री रहे नेताओं के साथ कई अन्य दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय और सांसद गोमती साय के नाम प्रमुख दावेदारों में शामिल है। इन नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से भी मुलाकात की है।
चर्चा है कि पीएम और राष्ट्रीय नेतृत्व राज्य में किसी नए चेहरे को मौका देने पर विचार कर रहे हैं। ऐसी भी खबर है कि राज्य में जातीय समीकरण के साथ प्रशासनिक और सांगठनिक दक्षता रखने वाले को मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपा जा सकता है जो आने वाले 15-20 सालों तक राज्य में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के साथ सरकार का सफलता पूर्वक संचालन कर सके। छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत में आदिवासी वोटर्स का बड़ा रोल रहा है। सरगुजा और बस्तर दोनों ही आदिवासी बाहुल्य इलाके के 26 में से 21 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। वहीं मध्य क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में ओबीसी वर्ग के बड़े तबके ने भी भाजपा को समर्थन दिया है। जबकि शहरी क्षेत्रों में ओबीसी के साथ सामान्य व सवर्ण वोटर्स भी बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ रहे हैं। इसे देखते हुए कहा जा रहा है कि इस बार किसी आदिवासी या फिर किसी ओबीसी वर्ग के विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यही कारण है कि दावेदारों में कुछ आदिवासी नेताओं के साथ पिछड़ा वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का नाम लिया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि पहले भी छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आदिवासी और ओबीसी वोटर्स के दम पर ही बनती रही है बावजूद सामान्य वर्ग से आने वाले डॉ. रमन सिंह ने सफलता पूर्वक 15 साल सरकार का नेतृत्व किया। वर्तमान में भी राज्य में ऐसे ही नेतृत्व की दरकार है जिसमें राजनीतिक, सांगठनिक और प्रशासनिक अनुभव के साथ जनता का भी विश्वास प्राप्त हो। ऐसे में राज्य परिस्थितियों का समुचित आंकलन कर भाजपा नेतृत्व को जातिय आधार के बजाय किसी अनुभवी नेता को ही मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपना चाहिए, डिप्टी सीएम और मंत्रियों के चयन में जातिय समीकरण को आधार बनाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि उसके पास आदिवासी और ओबीसी वर्ग में कोई ऐसा नेता मौजूद नहीं है जिसके पास राजनीति के साथ सांगठनिक और प्रशासनिक अनुभव हो। वैसे तो इन वर्गो से कई वरिष्ठ विधायक है जिन्होंने चार-पांच बार अपने विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है।
कई पिछले सरकारों में मंत्री भी रहे। कुछ केन्द्रीय मंत्री भी रहे इसके बावजूद उनकी छवि किसी दमदार लीडर की नहीं बन पाई है। इनमें प्रशासनिक दूरदर्शिता और विकास को लेकर विजन नजर नहीं आता। ऐसे में राज्य में जिस तरह के आईएएस और आईपीएस अफसरों की लाबी काबिज है ये उनके इशारे और सलाह पर ही फैसला लेंगे। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में मजबूत विपक्ष है कांग्रेस के 35 विधायक चूनकर आए हैं ऐसे में उनके प्रतिकारों का जवाब देना और विधानसभा में उन्हें पटखनी देने के लिए बुद्धि कौशल के साथ कुशल रणनीतिक चातुर्य की भी जरूरत होगी। इन हालातों को देखते हुए केन्द्रीय नेतृत्व को जातिय संतुलन के बजाय मजबूत नेतृत्व के लिए हर तरह से मजबूत और योग्य नेता को ही प्रदेश का नेतृत्व सौंपना चाहिए। छत्तीसगढ़ के हालातों के अनुरूप वर्तमान में भी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की ही दावेदारी हर तरह से मजबूत है। उन्हें केन्द्रीय मंत्री के साथ 15 साल तक मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाने का अनुभव है। भाजपा में अगर जातिय आधार को किनारे कर मजबूत नेतृत्व के बारे में विचार किया जाता है तो कुछ और भी बड़े चेहरे हैं जो सरकार का सफलता पूर्वक नेतृत्व कर सकते हैं उनमें बृजमोहन अग्रवाल एक मजबूत दावेदार हो सकते हैं जिनपर केन्द्रीय नेतृत्व भरोसा कर सकता है। बृजमोहन राज्य में भाजपा के सबसे मजबूत जनाधार वाले नेता है। बृजमोहन अग्रवाल के बारे में कहा जाता है कि विगत 40 वर्षों से सभी धर्म समुदाय के लोगों को साथ लेकर चलने वाले सर्वमान्य नेता हैं। उन्होंने मुस्लिम बहुल क्षेत्र से लीड लेकर साबित भी कर दिया। उनकी कार्यकर्ताओं में जमीनी पकड़ है। वे लगातार आठ बार से हर बार से ज्यादा लीड के साथ चुनाव जीतते रहे हैं। उनकी चुनावी रणनीति का सब लोहा मानते हैं।
कार्यकर्ताओं के साथ राज्य के तमाम नेता विधायक भी उन्हें न सिर्फ पसंद करते हैं बल्कि सम्मान भी देते हैं। उनमें राजनीतिक, प्रशासनिक कौशल के साथ सत्ता और संगठन में संतुलन बिठाकर सरकार चलाने का अनुभव भी है। साथ ही राज्य में काम कर रहे ब्यूरोक्रेट्स की नब्ज भी समझते हैं और उन पर कैसे नियंत्रण किया जाए यह भी समझते हैं। वैसे भी कांग्रेस सरकार ने जिस तरह राज्य को कर्ज में डूबोया है उससे राज्य की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। ऐसे में राजस्व बढ़ाने के साथ संकल्प पत्र के घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी आर्थिक तौर पर भी ठोस निर्णय लेने वाले नेतृत्व की जरूरत होगी। उनमें राजनीतिक, प्रशासनिक दक्षता के साथ पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश सरकार और छत्तीसगढ़ बनने के बाद 15 साल रहे सरकार में केबिनेट मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव है। वह सत्ता और संगठन में तालमेल बिठाने में भी निपुण है। ब्यूरोक्रेट्स पर वैसे भी उनका जबर्दस्त प्रभाव और नियंत्रण है। तमाम नजरिए से वह राज्य में बेहतर सरकार देने में सक्षम हैं। हालाकि उनके बनिया समुदाय से होने के कारण उन्हें हमेशा हाशिये पर रखा जाता है। इसके लिए उत्तरप्रदेश के 1999 के दौर को याद किया जाना चाहिए जब भाजपा ने रामप्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया था और उसका देश भर में भाजपा को फायदा हुआ था। जो भी हो उम्मीद यही है कि केन्द्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ को हर लिहाज एक मजबूत कंधों में सौंपेगा जो राज्य को सही दिशा देकर विकास को गति देगा और लोगों की भावनाओं और अपेक्षाओं को पूरा करेगा।