भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और विदुर उतरे मैदान में, हस्तिनापुर बचाने को
क्या बोलती प्रेस क्लब की राजनीति ❓ कौन है प्रेस क्लब के भीष्म,द्रोणाचार्य कृपाचार्य और विदुर❓ द्रोपती की लाज बचाने क्यों नहीं आए भीष्म❓ क्यों जरूरी है हस्तिनापुर बचाना ❓ अर्जुन के खिलाफ अकशोंणी सेना विस्तार से पढ़े जनता से रिश्ता पर रायपुर। इन दिनों प्रेस क्लब के चुनाव हो रहे हैं और इस चुनाव …
- क्या बोलती प्रेस क्लब की राजनीति ❓
- कौन है प्रेस क्लब के भीष्म,द्रोणाचार्य कृपाचार्य और विदुर❓
- द्रोपती की लाज बचाने क्यों नहीं आए भीष्म❓
- क्यों जरूरी है हस्तिनापुर बचाना ❓
- अर्जुन के खिलाफ अकशोंणी सेना
- विस्तार से पढ़े जनता से रिश्ता पर
रायपुर। इन दिनों प्रेस क्लब के चुनाव हो रहे हैं और इस चुनाव में प्रेस क्लब को बचाने का आह्वान करते हुए कभी समाजिक स्तर पर बने दिग्गजो ग्रुप ने चुनावी कमान संभाल ली है,, अपनी एकता और राजनीतिक कौशल् की वजह से प्रेस क्लब के सबसे पुराने पत्रकारों का ग्रुप की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है एक स्थान विशेष से शुरू हुआ ये ग्रुप इन 35 -40 सालो मे एक पैनल का विधिवत आकार लेकर प्रेस जगत में काम कर रहा है।
प्रेस क्लब के चुनाव में अब तक इस ग्रुप का अप्रत्यक्ष दखल हर बार रहा है लेकिन पहली बार है कि इस ग्रुप में सार्वजनिक रूप से विधिवत बैठक आहुत कर,, अपने पसंदीदा उम्मीदवार को जीतने का आह्वान कर दिया है,, वजह बताई गई है प्रेस क्लब को बचाना है,, एक धार्मिक स्थल पर सामाजिक समीकरण के आधार स्तंभ दिग्गज पत्रकार नेताओं ने यह बैठक बुलाई। जिसमे ये फरमान सुना दिया गया कि पैनल के लोगों को जिताकर प्रेस क्लब बचाना है, बैठक की खबरें सार्वजनिक की गई। फोटो वायरल कर ताकत का एहसास कराया गया,ये सब प्रेस क्लब के चुनाव के मद्देनज़र नजर किया गया।
पूरे घटनाक्रम को अगर सिलसिले वार देखें तो बरबस महाभारत के युद्ध की याद आ जाता है जिसमें अक्षौणी सेना के साथ कर्तव्य पथ का हवाला देकर भीष्म द्रोणाचार्य, कृपाचार्य युद्ध मैदान में कूद पड़ते हैं धर्म अधर्म सब कुछ जानते हुए भी दिग्गज महाभारत का युद्ध लड़ते हैं उसे समय उनका एक मात्र उद्देश्य हस्तिनापुर को बचाना होता है।
पर महाभारत के युद्ध में लड़ने वाले इन महान लेकिन वरिष्ठतम योद्धाओं के इस शौर्य भरे कदम की आलोचना इसलिए भी होती है क्यूंकि इन योद्धाओं ने अपना यह साहस, उसे समय नहीं दिखाया जब द्रोपती को धृत क्रीड़ा मे दांव पर लगाया जा रहा था। द्रोपदी का चीर हरण होता रहा था उस समय ये दिग्गज मौन रहते है। लेकिन युद्ध लड़ने में यही लोग सामने रहते हैं।
ऐसा ही घटनाक्रम इन दिनों प्रेस क्लब में भी होता दिख रहा है चुनाव है तो दिग्गजों ने अस्त्र-शस्त्र तैयार कर,सेना के साथ मैदान में उतर कर शंखनाद कर दिया है जीत की हुंकार भरी जा रही है,, पर यह लोग उस समय ऐसी बैठक करते हुए नहीं दिखाई दिए जब पिछली कार्यकारिणी का कार्यकाल खत्म होने के बावजूद एक, नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं पांच साल ऐसे गुजर गए थे। कोई बोलने सामने नहीं आया। किसी ने एकता दिखाने की बैठक नहीं की। इन दिग्गजो की ओर से एक वक्तव्य नहीं आया। द्रोपती की तरह की हालत प्रेस क्लब की रही,, लेकिन लाचार भीष्म,द्रोणाचार्य और कृपाचार्य, विदुर चुप रहे। आज सामने सत्ता सिंहासन बचाने की लड़ाई दिख रही है तो सब आ गए हैं।
यही साहस अगर पहले दिखाया होता तो प्रेस क्लब 5 साल पीछे नहीं चला गया होता। ऐसे में भले ही इन दिग्गजों का उद्देश्य अपने अनुजो की सत्ता प्राप्ति का हो पर इन दिग्गजों के इस प्रयास को ""देर आये पर दुरुस्त आए"" ही कह सकते हैं।
बहरहाल सबसे मजबूत पैनल के सबसे मजबूत खिलाड़ियों ने मोर्चा संभाल लिया है,, अब देखना है कि चुनाव में जीत भीष्म की होती है या फिर अर्जुन की।